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Saturday, September 3, 2022

कौन काटता है आम आदमी की जेब?

3rd September 2022 at 5:53 PM

 कहां जाता है आम आदमी का पैसा?

रविवार से शुरू बैंक मुलाज़िमों के सम्मेलन में खोले जाएंगे कई राज़ 


लुधियाना3 सितंबर 2022: (एम एस भाटिया//इनपुट-कार्तिका सिंह और कामरेड स्क्रीन डेस्क):: 

आम इंसान सिर्फ दुखी है कि आखिर मेहनत करके भी उसका गुज़ारा क्यों नहीं होता। उसकी कमाई उसकी जेब में आने की बजाए किसी और की जेब में क्यों और कैसे चली जाती है। वह कभी कभी सवाल भी करता है कि बैंकों से कर्ज़े ले कर फिर उन्हें अंगूठा दिखा देने वाले लोग दुनिया के सबसे बड़े अमीरों  की सूची में कैसे आ जाते हैं? वे लोग बैंकों से लोन ले कर देश के पब्लिक सेक्टरों को खरीदने की बातें कैसे सिरे चढ़ा लेते हैं? साथ ही उसे अपनी गरीबी का  है और वह सोचता है क्या कभी वह या उसकी औलाद भी अमीर बन भी पाएगी? इस तरह के बहुत से सवाल आम जनता के मन में हैं लेकिन जवाब कोई नहीं देता। आज लुधियाना में बैंक वालों की प्रेस कांफ्रेंस थी। उनका दो दिवसीय सम्मेलन कल रविवार से लुधियाना के गुरु नानक भवन में शुरू हो रहा है। इसमें पहुंच रहे वक्ता प्रवक्ता उन सभी बारीकियों को बताएंगे कि आम इंसान गरीब कैसे होता जा रहा है और सत्ता में  रहने वाले बड़े बड़े लोग दुनिया में बड़े बड़े अमीर कैसे होते जा रहे हैं। मंदहाली की हवा सिर्फ बेबस और गरीब लोगों तक ही क्यों पहुँचती है? वैश्विक मंडी सिर्फ आम जनता के लिए क्यूं? बड़े बड़े धन्ना सेठों के लिए क्यूं नहीं? कोरोना युग में भी कुछ लोग तेज़ी से अमीर हो गए थे और बाकियों में से ज़्यादातर को ख़ुदकुशी का रास्ता चुन्न्ना पड़ा था। बैंक वालों के आज के पत्रकार सम्मेलन में आल  इंडिया बैंक इम्प्लाईज़ एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलन, सचिव बी इस राम बाबू और एक अन्य सचिव संजय कुमार भी मौजूद रहे। आम जनता के प्रतिनिधि बन कर सवाल करने वाले पत्रकार आज भी कम ही थे। 

4  और 5 सितंबर 2022 को लुधियाना में आल इँडिया सेंट्रल बैंक इम्प्लाइज फैडरेशन और ऑल इँडिया सेंट्रल बैंकऑफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सम्मेलन के अवसर पर खोले जाएंगे ऐसे रहस्य जो आपको हैरान कर देंगें। इन लोगों ने अपनी स्वतंत्रता से ही शुरू की। हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ की जय करते हैं: हम अपने बुजुर्गों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हाथों से लड़ने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किए गए बलिदानों को तहे दिल से याद करते हैं। भारत ने पिछले 75 वर्षों में बहुत प्रगति की है और हमें उस पर गर्व भी है लेकिन साथ ही पूरी बेबाकी से बताया कि आज भी हमारा देश धन के असमान वितरण है। 

आज भी कुछ धनी लोगों के हाथों में बढ़ती जा रही है धन की एकाग्रता। आज भी  हमारे लोगों की एक बड़ी संख्या की गरीबी जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। जब हम इस खुशी के अवसर पर सभी को बधाई देते हैं, तो हम सभी के लिए एक बेहतर और समान समाज के लिए लड़ने का संकल्प भी  लेते हैं।

पब्लिक सेक्टर के बैंकों के मौजूदा संकट की चर्चा करते हुए यहां उल्लेखनीय है कि इसी बीच अडानी ग्रुप पर बैंकों का बड़ा कर्ज बकाया है पड़ा है। वित्त वर्ष 2021-22 में अडानी समूह पर कर्ज बढ़ गया है और 40.5 फीसदी बढ़कर 2.21 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।  जबकि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में यह 1.57 लाख करोड़ रुपये था।  फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में अडानी एंटरप्राइजेज का कर्ज 155 बढ़ा है। आप इन लोगों की अमीरी के कारण और स्रोत जान सकते हैं सिर्फ इस तरह के आंकड़ों पर एक नज़र डाल कर। 

बैंकों का निजीकरण न करें: 1969 में, भारत में प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। पिछले 53 वर्षों में, इन राष्ट्रीयकृत बैंकों ने हमारे देश के आर्थिक विकास में बहुत योगदान दिया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों की सेवा के लिए हजारों शाखाएं खोली गई हैं। कृषि, लघु और मध्यम उद्योग, शिक्षा, प्रमुख उद्योग, ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा क्षेत्र आदि को बड़े पैमाने पर ऋण दिया जा रहा है। इन बैंकों द्वारा जनता की बचत को उनकी बचत के लिए सुरक्षा प्रदान करने के लिए जुटाया गया है।

राष्ट्रीयकरण से पहले और 1969 के बाद भी निजी बैंकिंग की सर्विस स्थिति बिगड़ती चली जा रही है। कई निजी बैंक कुप्रबंधन के कारण ध्वस्त हो गए हैं और लोगों की बचत खो गई है। राष्ट्रीयकृत बैंक लोगों की बचत की रक्षा कर रहे हैं। राष्ट्रीयकृत बैंक ही प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण दे रहे हैं।  इसके बावजूद इन्हीं सरकारी बैंकों को निजी सेक्टर के हवाले करने के अभियान चलाए जा रहे हैं। बैंक कर्मी इन नापाक कोशिशों के रास्ते में बार बार खड़े होते आ रहे हैं लेकिन सत्ता के सामने और बड़े ढहना सेठों के सामने उनकी शक्ति सीमित कर दी गई है। 

आज बैंकों की कुल जमाराशियां : रु. 170 लाख करोड़             दिया गया कुल ऋण : रु. 120 लाख करोड़

लोगों की सेवा के लिए इन राष्ट्रीयकृत बैंकों को और मजबूत करना होगा। लेकिन सरकार ने घोषणा की है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण किया जाएगा। यदि बैंकों का निजीकरण किया जाता है, तो ग्रामीण बैंकिंग प्रभावित होगी। निजी बैंक ग्रामीण बैंकिंग को बढ़ावा नहीं देंगे। वे अधिक लाभ में ही रुचि लेंगे। धीरे-धीरे केवल अमीर लोगों को ही खाते रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसलिए एआईबीईए बैंकों के निजीकरण के फैसले का विरोध कर रहा है।

हम अपनी मांग का समर्थन करने के लिए लोगों को शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चला रहे हैं। हम प्रधानमंत्री को एक सामूहिक याचिका दायर करने के लिए लोगों से हस्ताक्षर एकत्र कर रहे हैं।

एआई.बी.ई.ए ने बड़ी कंपनियों से खराब ऋण की वसूली की मांग की: आज बैंकों में एकमात्र बड़ी समस्या बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा डिफ़ॉल्ट रूप से बढ़ते खराब ऋण हैं। हम उनके खिलाफ कर्ज की वसूली के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार उन्हें अधिक से अधिक रियायतें दे रही है।

पिछले 6 वर्षों से, खराब ऋण खातों को दिवाला और दिवालियापन संहिता IBC के तहत न्यायाधिकरणों को संदर्भित किया जाता है। कर्ज वसूली की जगह ये कर्ज कुछ अन्य कंपनियों को सस्ते दर पर बेचे जा रहे हैं जैसे दूकान की वस्तु बिका करती है इस सब कुछ से  और बैंकों को भारी नुकसान हुआ है।

आईबीसी जनता का पैसा लूटने का एक तरीका बन गया है क्योंकि बैंकों को इन सौदों में बड़े पैमाने पर (हेयर कट) घोर घाटे पढ़ते  हैं। और बलिदान देना पड़ता है। चूककर्ता बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के भाग जाते हैं। एक अन्य कॉर्पोरेट कंपनी सस्ते दरों पर इन ऋणों को ले रही है।

एनपीए-आईबीसी (हेयर कट )घाटे पढने की कहानी 

करोड़ों रु में

बैंकों के लिए    ऋण राशि                ऋण राशि का निपटान         और समाधान %         के पक्ष में

एस्सार                    54,000                    42,000                                       23%                    आर्सेलर मित्तल

भूषण स्टील्स         57,000                    35,000                                       38                        टाटा

ज्योति संरचनाएं       8,000                    3,600                                          55                          शरद संघ

डीएचएफएल         91,000                 37,000                                           60                         पीरामल

भूषण पावर               48,000                 19,000                                          60                        जेएसडब्ल्यू

इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स 14,000                   5,000                                            62                       वेदांत

मोनेट इस्पात         11,500                   2,800                                          75                        जेएसडब्ल्यू

एमटेक                     13,500                  2,700                                          80                         डीवीआईएल

आलोक इंडस्ट्रीज    30,000              5,000                                          83                         रिलायंस + जेएम फिन

लैंको इंफ्रा              47,000                5,300                                              88                        कल्याण समूह

वीडियोकॉन            46,000               2,900                                             94                          वेदांत

एबीसी शिपयार्ड       22,000              1,200                                              95                          परिसमापन

शिवशंकरनीउद्योग     4,800                 320                                               95%                            ससुर

लाभ कहाँ जाता हैमार्च, 2022 तक - सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

कुल सकल परिचालन लाभ: 208,654 करोड़

 खराब ऋण आदि के लिए प्रावधान: 1,41,918 करोड़

 प्रावधानों के बाद शुद्ध लाभ: 66,736 करोड़

इस प्रकार, बैंकों द्वारा अर्जित अधिकांश लाभ (लाभ का 68%) खराब ऋणों के प्रावधान और खराब ऋणों को बट्टे खाते में डालने के लिए चला जाता है। इस प्रकार कॉरपोरेट्स द्वारा लोगों का पैसा लूटा जा रहा है।

शाखाओं का बंद होना: जब सरकार समावेशी विकास और सभी लोगों की सेवा लेने की बात करती है, तो वास्तव में शाखाओं की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। हम मांग करते हैं कि अधिक से अधिक नई शाखाएं खोली जानी चाहिए, विशेष रूप से गैर-बैंकिंग क्षेत्रों में।

हम बैंकों के निजीकरण पर पनागरिया रिपोर्ट का विरोध करते हैं:

13-7-2022 को, श्री अरविंद पनागरिया, पूर्व नीति आयोग और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के पूनम गुप्ता ने सभी बैंकों के निजीकरण का सुझाव देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है क्योंकि निजी बैंक अधिक कुशल हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक और प्रतिशोधात्मक रिपोर्ट है।

वे पूरी तरह से भूल गए हैं कि हमारे देश में दक्षता और सरकार के कारण इतने सारे निजी बैंक ध्वस्त हो गए हैं। बैंकों को विलय करना पड़ा और उन्हें बचाना पड़ा।

वे भूल गए हैं कि 90% बैड लोन बड़ी निजी कॉरपोरेट कंपनियों के कारण हैं।

वे भूल गए हैं कि जन धन योजना के 98% खाते सरकार के बैंक द्वारा खोले गए हैं और निजी बैंकों द्वारा नहीं।

वे भूल गए हैं कि कृषि, रोजगार सृजन, गरीबी में कमी, ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि के लिए ऋण केवल सरकार बैंक द्वारा दिया जाता है। और निजी बैंक नहीं।

वे भूल गए हैं कि केवल पीएसबी ने दूरस्थ ग्रामीण गांवों में शाखाएं खोली हैं, निजी बैंकों ने नहीं।

आज भी प्राइवेट बैंकों में बहुत सारी छिपी हुई गड़बड़ियां हैं। निजी बैंकों का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा है।

हम इस रिपोर्ट को खारिज करने की मांग करते हैं-सी.एच. वेंकटचलम, महासचिव ने बहुत ही सादगी से लेकिन स्पष्ट हो कर यह सब कहा। अब देखना है कि आम जनता कब इन बैंक वालों  का साथ देगी, कैसे देगी और जो लोग जनता का धन लूट कर ही अमीर बन रहे हैं उन्हें बेनकाब कब करेगी?

जन सरोकारों से जुड़ा मीडिया चलता रहे इसके लिए आप भी अपना कर्तव्य अवश्य निभाएं। अपनी तरफ से सहायता और सहयोग जारी रखें--

Sunday, July 19, 2020

19 जुलाई को उठाया गया आत्म निर्भरता के लिए दलेरी भरा कदम

बैंक राष्ट्रीयकरण जैसे कदमों से ही आ सकेगी सच्ची आत्मनिर्भरता 
राष्ट्रीयकरण के बाद सुश्री इंदिरा गांधी को बधाई देते हुए कामरेड पी एस सुंदरसेन 
लुधियाना: 18 जुलाई 2020: (*एम एस भाटिया//कामरेड स्क्रीन)::
ज़िंदगी यूं भी गुज़र सकती थी; जैसे आज के नेताओं की गुज़र रही है। गरीब मज़दूर लोग घरों में और सड़कों पर भूख से मरते रहें। बिना किसी दवा दारू के दम तोड़ते रहें, बिना किसी नौकरी के गुलामों की तरह जीवन व्यतीत करते रहें लेकिन उस वक़्त की प्रधानमंत्री सुश्री इंदिरा गांधी को यह सब मंजूर नहीं हुआ। इसलिए 19 जुलाई 1969 का दिन याद दिलाता है सच्ची आत्म निर्भरता की तरफ बढ़ाये गए उस महत्वपूर्ण कदम की।
वह महान दिन और महान फैसला  
लेखक एम एस भाटिया 
उस 19 जुलाई, 1969 का महान दिन जब देश को वास्तव में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उठाया गया साहसी कदम और बैंकों के दरवाज़े आम जनता के लिए खुल गए। यह बिलकुल खुल जा सिमसिम जैसे जादू भरे  हालात ही थे। उस दिन एक निर्णय लिया गया जिसने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को चरम पर पहुंचाया बल्कि हर आम नागरिक को भी प्रभावित किया। हर आम नागरिक बैंक आने जाने में सक्षम हो गया। बहुत कम पैसों के साथ, आम आदमी को बैंकों की मजबूत अर्थव्यवस्था का सहयोग भरा हाथ मिला। इसने देश के हर हिस्से को लंबे समय तक समृद्ध किया। यहां तक ​​कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी जीवन की दयनीय स्थिति को सुधारने के सपने देखने लगा और फिर उसने उन सपनों को साकार होते हुए भी देखा। किसी अगले जन्म के धोखे में नहीं, इसी जन्म में उसने सब कुछ पाया।  समृद्धि की रौशनी गरीब बस्तियों में जानवरों की तरह बस्ते गरीब लोगों के जीवन में भी पहुँचने लगी। मिट्टी के घर जल्द ही पक्के हो गए। पैदल चलने वालों को साइकिल मिलने लगी और साइकिल चालकों को मोपेड और स्कूटर मिलने लगे। जेब में पैसे आये तो उसकी रौशनी उनके चेहरों पर भी दिखाई दी। 
वह असली राष्ट्रवाद था
आम तौर पर सच्चे लोगों की तरफ से तथाकथित राष्ट्रवाद का नारा तब नहीं लगाया गया था बल्कि राष्ट्र के पक्ष में काम करके दिखाया जाता था। आज नारे बहुत लगाए जाते हैं, नाटक बहुत किए जाते हैं, भाषण बहुत दिए जाते हैं लेकिन व्यवहार में देश के बड़े संस्थानों को निजी हाथों में बेचने की दौड़ लगी हुई है। सत्ता में बैठे लोग देश के खजाने में से अपना सब कुछ बेचने की फिराक में हैं। बैंकों को भी लूट का निशाना मान लिया गया है। अपने चहेतों को ऋण दिलवाएं और फिर डिफ़ॉल्टर बनवा कर विदेशों में फुर्र कर दें। इसके बाद उल्टा बैंकों को डांटा डपटा जाये और धोखाधड़ी का शिकार हुए बैंकों पर दिवालिया होने का आरोप लगा जाता है। इसके बाद बैंकों का विलय  उठाए जाते हैं फिर उन्हें अपने पसंदीदा पूंजीपतियों के हाथों सौंप दिया जाता है। 
छोटे छोटे कारोबारी भी निशाने पर हैं 
सिद्धांत यह है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है। इसी सिद्धांत के तहत, बड़े पूंजीपति सरकार का उपयोग करके छोटे पूंजीपतियों को खाने के लिए कर रहे हैं। इस तरह नुकसान केवल गरीबों का ही नहीं, बल्कि छोटे पूंजीपतियों का भी हो रहा है। 
आम जनता अभी भी नहीं समझ पा रही 
आम जनता अभी भी वर्तमान के इस सारे घटनाक्रम  को नहीं समझ पा रही है।  उसे दाल रोटी के चक्क्र में उलझा कर कुछ सोचने लायक छोड़ा ही नहीं जा रहा। अधिकांश लोग अभी तक 19 जुलाई, 1969 को हुए उस ऐतिहासिक चमत्कार को नहीं समझते हैं। जब आम जनता यह सब समझने लगेगी तब वह तत्कालीन प्रधान मंत्री, मैडम इंदिरा गांधी को सलाम करेगी। उसे आज के असली दुश्मन भी नज़र आने लगेंगे। वह महान इंदिरा गांधी जिन्होंने 56 इंच की छाती के रूप में कभी भी हल्के किस्म का प्रचार नहीं किया था।  इस तरह के प्रचार के बिना भी दुनिया मैडम इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहती थी।
कांग्रेस के बैंगलोर अधिवेशन में गरमागरम बहस
19 जुलाई 1969 को 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक ऐसा निर्णय था जिसने साड़ी दुनिया को भारत में समाजवाद के दस्तक की झलक दी। अमेरिका समर्थक लोग मुँह ताकते रह गए। वास्तव में, यह लोगों की सरकार थी, कर्मचारियों की सरकार थी, जो उन लोगों की बात सुनती थी जो उनके खिलाफ आते थे और अपने विरोधी विचारों को खुलकर सरकार के सामने लाते थे। तब बुद्धिजीविओं को जेलों में डालने का चलन इतनी बुरी तरह शुरू नहीं हुआ था। आज तो वरवरा राव जैसे कवि और सुधा भारद्वाज जैसे बुद्धिजीवी भी जेलों में हैं। असहमति को कुचला जा रहा है। पुराने साथियों को याद होगा कि बैंगलोर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक के दौरान बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर गरमागरम बहस हुई थी और इस बात पर जोर दिया गया था कि राष्ट्रीयकरण अनिवार्य है। हालांकि उस समय मोरारजी देसाई इसके पक्ष में नहीं थे। एक तरह से वह  पूंजीपतियों के पक्ष में ही बात कर रहे थे। कांग्रेस के अंदर ही उस समय भी पूंजीवादी लोग मौजूद थे। जैसे-जैसे राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर राजनीतिक बहस तेज़ हुई, लाल बाग-बैंगलोर में चल रही आल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक भी बहुत तनावपूर्ण हो गई। इसी फैसले ने देश के सिस्टम का फैसला करना था--समाजवादी ढांचा या पूंजवादी ढांचा?
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों की जोरदार शुरुआत
12 जुलाई 1969 को कर्नाटक प्रदेश बैंक कर्मचारी महासंघ ने बड़े पैमाने पर राष्ट्रीयकरण के हक में विरोध प्रदर्शन किया। लाल बाग राजनीतिक सभा में पम्फलेट भी वितरित किए गए और बड़ी संख्या में बड़े बड़े    दीवारी पोस्टर भी लगाए गए। राष्ट्रीयकरण की माँग सामने आई। यह वास्तविक राष्ट्रवादी मांग थी जिसमें  न किसी मंदिर को बनाने के बात थी न ही किसी मस्जिद को गिराने की बात ही।  केवल अपने परइ देश भारत के मंदिर को आर्थिक पहलू से मज़बूत बनाने की चाहत थी। 
राष्ट्रियकरण के समर्थन में विरोध प्रदर्शनों की संख्या बड़ी 
मांग में तेजी आई और 17 जुलाई को इस मुद्दे को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। हर तरफ राष्ट्रीयकरण का माहौल तैयार हुआ। कोई मुफ्त बिजली या मुफ्त पानी नहीं मांग रहा था। कोई कर्ज माफी की बात नहीं कर रहा था और कोई नौकरी भी नहीं मांग रहा था। राष्ट्रीयकरण हो बस एकमात्र यही मांग थी। यह वास्तविक देशभक्ति की भावना थी क्योंकि उस समय अंधभक्त बहुत कम संख्या में थे और जागरूक लोग अधिक हुआ करते थे।
सरकार भी प्रभावित हुई
जब राष्ट्रीयकरण की मांग उठी, तो केंद्र में सरकार पर भी इसका असर पड़ा। पुराने साथियों को अभी भी पूरी घटना याद है जब 16 जुलाई 1969 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था। मुरारजी देसाई को उनके पद से अचानक हटा दिया गया था। मैडम इंदिरा गांधी की गति बहुत तेज थी। चलने के मामले में और देश चलाने के संदर्भ में भी। तीन दिन बाद, 19 जुलाई, 1969 को उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाया। एक साहसिक घोषणा की। नए बने माहौल में कार्यवाहक राष्ट्रपति वीवी गिरि ने 14 बड़े बैंकों को सरकारी हाथों में लेने के लिए अध्यादेश जारी कर दिया। इंदिरा गांधी सरकार की यह उपलब्धि वास्तव में पूरे देश की उपलब्धि थी।
14 निजी बैंक राष्ट्रीयकृत हुए थे:
1. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
2. बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
3. पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेड
4. बैंक ऑफ बड़ौदा लिमिटेड
5. संयुक्त वाणिज्यिक बैक लि
6. केनरा बैंक लिमिटेड
7. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
8. सिंडिकेट बैंक लिमिटेड
9. देना बैंक लि।
10. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
11. इलाहाबाद बैंक लिमिटेड
12. इंडियन बैंक लिमिटेड
13. इंडियन ओवरसीज बैंक लि।
14. बैंक ऑफ महाराष्ट्र लिमिटेड
त्वरित आर्थिक विकास
उस समय यानी जुलाई 1969 में इन राष्ट्रीयकृत बैंकों की कुल जमा पूँजी 4,107 करोड़ रुपये थी। भारतीय स्टेट बैंक में उस समय 54,953 कर्मचारी थे। इसके बाद तेजी से विकास हुआ। इन राष्ट्रीयकृत बैंकों की जमा पूँजी में भी वृद्धि हुई। राष्ट्रीकरण के बाद इन बैंकों की शाखाएँ भी बढ़ीं और कर्मचारी भी बढ़े।
नए सलाहकार बोर्ड भी बने
इन बैंकों के चौदह प्रमुखों को वैकल्पिक व्यवस्था के तहत मुख्य कार्यकारी के रूप में फिर से नियुक्त किया गया। बैंकों के निदेशकों के पुराने बोर्ड हटा दिए गए और उनकी जगह नए सलाहकार बोर्ड ने ले ली। शेयरधारकों को मुआवजा दिया गया था और बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों के लिए पक्का कर दिया गया था। यह एक ऐसा कदम था जिसने घर-घर में आर्थिक समृद्धि रौशनी पहुंचाई। अब तो 20 लाख करोड़ रुपये देने की घोषणा की जाती है लेकिन लगता नहीं है कि 20 रुपये भी किसी गरीब की जेब में जाते किसी को नज़र आये हों। पूरा 20 लाख करोड़ रुपये अम्बानियों शंभानियों की जेब में चला जाता है।
अध्यादेश का विरोध भी हुआ
आज जिन लोगों ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया है और अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान एक के बाद एक सरकारी संस्थान बेच रहे हैं वे  उस समय जनसंघ के नाम से चल रहे थे। चुनाव चिन्ह दीपक हुआ करता था लेकिन वास्तव में यह अंधेरे का ही प्रचार किया करते थे। लोगों के घरों में जलने वालेदीपक गुल करके हर रोशनी को बुझाना उस समय भी अभी भी इन लोगों की प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर था।
जनसंघ ने भी किया था राष्ट्रीकरण का तीखा विरोध
उस सैम की बीजेपी अर्थात जनसंघ ने उस समय भी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का तीखा विरोध किया था। तत्कालीन स्वतंत्र पार्टी ने भी जनसंघ का ही साथ दिया। जनसंघ के सांसद बलराज मधोक और निर्दलीय पार्टी के नेता एम आर मसानी खुले तौर पर देश के राष्ट्रीयकरण विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए। पूंजीपतियों के लिए देश की आत्मनिर्भरता को गिराना उस समय भी उनका पहला काम था। जब इंदिरा गांधी सरकार फिर भी नहीं झुकी, तो रुस्तम कावासजी जो एक बैंक निदेशक भी थे, शेयरधारक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के जमाकर्ता भी थे ने खुले रूप से सरकार के फैसले के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की। कई अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया। देश पूंजपतियों और आम जनता के दरम्यान बनता हुआ नज़र आने लगा। पूंजीपति उस सम भी संख्या में कम थे। 
उस समय भी वामपंथी ही मैदान में आये
जब फासीवादियों और पूँजीपतियों ने राष्ट्रीयकरण अध्यादेश के खिलाफ मोर्चा संभाला, तब 2 जुलाई, 1969 को प्रख्यात व्यापार संघवादियों और सांसदों कॉमरेड ए के गोपालन और श्रीमती सुशील गोपालन ने अध्यादेश के पक्ष में हस्तक्षेप करने वाली याचिकाएँ दायर कीं। साथ ही ऑल इंडिया बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन ने अध्यादेश के पक्ष में अपना पक्ष रखा और तुरंत रिट याचिका दायर की। चैंबर ऑफ कॉमर्स जैसे संघों ने भी राष्ट्रीयकरण अध्यादेश का घोर विरोध किया। आखिरकार, सरकार की कुल्हाड़ी गरीबों के पक्ष में थी और बड़े अमीरों हितों पर थी। रातों रात राजाओं को उनके बैंकिंग रियासतों से बाहर कर दिया गया।
अप्रैल 1980 में भी हुआ राष्ट्रीकरण 
1.आंध्र बैंक लिमिटेड
2. कॉर्पोरेशन बैंक लिमिटेड
3. न्यू बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
4. ओरिएंटल बैंक ऑफ इंडिया
5. पंजाब और सिंध बैंक ऑफ इंडिया
6. विजया बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड
इस बार भी बहुत शोर था। पंजाब और सिंध बैंक के बारे में सिख संसार की भावनाओं को बहुत प्रभावित किया गया था।
श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के पीछे आर्थिक सुधारों के विरोधी थे?
ब्लू स्टार ऑपरेशन के बाद, तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदर गांधी की हत्या कर दी गई थी। हालाँकि सिखों की धार्मिक भावनाओं को मुद्दा बनाया गया था, लेकिन क्या सभी सेनाएँ उस हत्या के लिए उत्सुक नहीं थीं जो श्रीमती इंदिरा गाँधी के इन आर्थिक सुधारों से बहुत दुखी थीं? श्रीमती गांधी की हत्या के कुछ समय बाद, इस देश के दरवाजे पूंजीपतियों के लिए खोलने की प्रक्रिया नियमित रूप से शुरू हुई। वही जनविरोधी प्रवृत्ति अभी भी जारी है।
अब फिर से स्थिति गंभीर है
यह एक दुखद संयोग है कि 19 जुलाई कल को ही एक बार फिर से आ रहा है और इस समय केंद्र में सत्ता उन लोगों के हाथों में है जो कभी जनसंघ के रूप में राष्ट्रीयकरण का विरोध करके कहके रूप में पूंजीपतियों के साथ थे। अब भारतीय जनता पार्टी के रूप में वही लोग एक-एक करके देश के सभी संस्थानों को बेच रहे हैं और आने वाले दिनों में अम्बानी अडानियों के चरणों में गिर रहे हैं। लाल किले से रेलवे तक की बोली लगाने वालों की सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर भी बुरी नजर है। वे इन बैंकों को फिर से पूंजीपतियों को सौंपने की कोशिश के प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीयकरण खतरे में है। देश की आत्मनिर्भरता दांव पर है। राष्ट्रीयकरण को बचाना अब देश को बचाना है। इस अभियान के लिए सभी देशभक्त बलों को आगे आना चाहिए। साधारण लोगों को भी यह समझने की जरूरत है कि न तो हिंदू और न ही मुस्लिम, सिख या ईसाई खतरे में हैं। वास्तव में, देश की आत्मनिर्भरता खतरे में है। देश खुद खतरे में है। सत्ता लुटेरों के हाथों में पड़ गई है इसलिए इन लुटेरों को हटाना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।
 किसी शायर का एक बहुत पुराना शेयर याद आ रहा है:
     न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिन्दोस्तां वालो!
     तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में!

यदि आप देश और देश की आम जनता को बचाने के लिए इस अभियान में शामिल होने के इच्छुक हैं, तो कृपया संपर्क करें: एमएस भाटिया (+918360894301)

Friday, July 10, 2020

कॉमरेड जीके जोशी: मेरा साथी मेरा दोस्त

 आज जन्मदिन पर कॉमरेड जोशी को याद करते हुए एम एस भाटिया 
लुधियाना: 9 जुलाई 2020: (*एम एस भाटिया//कामरेड स्क्रीन):: 
हमारे दिलों में कामरेड जोशी की यादें उसकी ज़िंदगी के उन अनमोल दिनों के कारण हैं जो उसने बैंकिंग मुलाज़िमों के संघर्षों को मज़बूत बनाने में लगाए। अपनी जवानी का सुनहरी हिस्सा उसने अपने साथी मुलाज़िमों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए कुर्बान कर दिया। जो लोग इन संघर्षों से वाकिफ नहीं हैं उनको तो दुनियादारी की भाषा में ही बताना पड़ेगा कि वह कौन हमारा ह साथी कौन था?
कॉमरेड जीके जोशी का जन्म 10 जुलाई 1958 को अमृतसर जिले के राधा स्वामी डेरा ब्यास के पास वड़ैच गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री राम सरूप जोशी और उनकी माता श्रीमती पार्वती देवी था। उन्होंने 27 जुलाई 1981 को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की खडूर साहिब शाखा में ज़िंदगी के एक नए पड़ाव की शुरुआत की।
मेरा ह साथी मुझसे तीन महीने छोटा था और लगभग साढ़े तीन साल बाद नौकरी पर आया। सीखने और काम करने के समर्पण ने उसे संगठन के सभी पदों को प्रदान किया, जो एक संगठन नेता की इच्छा होती है। उसने  अपनी सेवा के पहले साल खडूर साहिब और फिर ब्यास शाखा में बिताए और 1988 में वह अपने गृहनगर जालंधर लौट आया। उसी वर्ष रोहतक में आयोजित सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया इम्प्लाइज़ यूनियन (पंजाब) के एक सम्मेलन में उसे संगठन सचिव बनाया गया था।
उस समय मैं संघ में कोषाध्यक्ष था। संघ के महासचिव कामरेड एन के जैन थे और प्रधान कामरेड एच एस ग्रेवाल थे। चूंकि लुधियाना हमारे संगठन का पंजीकृत कार्यालय था, इसलिए संगठन की गतिविधियों का केंद्र, निज़ाम रोड शाखा में कामरेड एचएस ग्रेवाल का यूनियन कार्यालय, हुआ करता था। इस बीच, कामरेड जोशी ने CAIIB और MBA कर लिया। उसके पिता स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में थे और उसके चाचा ज्योति सरूप जोशी न्यू बैंक ऑफ इंडिया में यूनियन लीडर थे। कॉमरेड जोशी ने जिम्मेदारी को सहर्ष स्वीकार कर लिया। यही कारण है कि 1992 में संघ के जालंधर सम्मेलन में उन्हें सहायक सचिव के रूप में पदोन्नत किया गया था।
बैंक संगठन और विशेष रूप से पंजाब राज्य में, उन्होंने कॉमरेड दर्शन सिंह रीहल के नेतृत्व में हमारे साथ कड़ी मेहनत की और मुलाज़िम संघ की सदस्यता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसे 1995 में अंबाला सम्मेलन में सचिव और फिर 2003 के अंबाला सम्मेलन में महासचिव नियुक्त किया गया था।
वह सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया एम्प्लाइज़ यूनियन (नॉर्थ ज़ोन) के महासचिव होने के अलावा, पंजाब बैंक कर्मचारी महासंघ में सचिव और अखिल भारतीय केंद्रीय बैंक कर्मचारी महासंघ में सचिव के रूप में भी काम कर रहा था। कोचीन में इसके सम्मेलन में उसे अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ की केंद्रीय समिति का सदस्य चुना गया। वह पंजाब बैंक कर्मचारी महासंघ की जालंधर इकाई का अध्यक्ष भी था।
यह यूनियन के लिए एक बड़ा सम्मान था, जब उसे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड में एक वर्करमैन के रूप में नियुक्त किया गया था और 2013 से 2016 तक वह इस पद पर रहा। इससे पहले, कामरेड ग्रेवाल ने 1980 से 1986 तक बैंक के बोर्ड में पंजाब का प्रतिनिधित्व किया था। ट्रेड यूनियन विचारधारा का एकमात्र प्रभाव यह था कि यह अंधविश्वास और कट्टरता के विरोध में था। लोगों के लिए काम करना उसका स्वभाव बन गया। उसके  दिमाग में अक्सर नए विचार आते थे और जो कोई भी अच्छी चीज देखता था वह उसे गले लगा लेता था। यही कारण था कि जब उन्होंने लुधियाना में हमारे द्वारा चलाए गए एम्प्लॉइज कोऑपरेटिव सोसाइटी के कामकाज को देखा, तो उन्होंने जालंधर में सेंट्रल बैंक एम्प्लाइज कोऑपरेटिव सोसाइटी भी बनाई और अंत तक इसके अध्यक्ष पद पर बना रहा। कॉमरेड जोशी ने जो मील का पत्थर हासिल किया है, उनमें से एक यह था कि उसके  कार्यकाल में पंजाब राज्य में संघ की सदस्यता 100 प्रतिशत थी और दूसरी चीज जो उसके नाम के साथ हमेशा जुड़ी रहेगी, वह थी अधिकारियों की यूनियन और वर्कर्स यूनियन ने कंधे से कंधा मिलाकर काम करना शुरू कर दिया और यहां तक ​​कि बैंक के साथ संयुक्त विचार-विमर्श भी किया। यह सच है कि कॉमरेड जोशी से पहले, कर्मचारियों और अधिकारियों की यूनियनों ने अपने दम पर काम किया। वह प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों के खिलाफ दायर की गई चार्जशीट से लड़ने में एक विशेषज्ञ था। उसे सभी दांवपेंच मालूम थे। 
मैंने अक्सर उसे  पूछताछ में कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कड़ी मेहनत करते और उनके मामलों का गहराई से अध्ययन करते हुए देखा है। मुझे याद है कि उसने शुरू में कामरेड दर्शन सिंह रीहल से पूछताछ की पेचीदगियों को कैसे सीखा। वह सामूहिक नेतृत्व में विश्वास करता था और प्रत्येक निर्णय में दूसरों को भी शामिल किया करता था। सन 2005 में संघ के स्तंभ कामरेड एचएस ग्रेवाल की मृत्यु के बाद कॉमरेड एनके जैन संघ के अध्यक्ष बने। लेकिन उसी साल, संगठन के एक दौरे पर, कॉमरेड एनके जैन की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इस प्रकार, दो वरिष्ठ नेताओं के जाने के बाद, कॉमरेड जोशी की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई थी।
कॉमरेड जेपी अग्रवाल को 2015 तक अध्यक्ष का पद दिया गया था और 2015 में लुधियाना में आयोजित यूनियन कॉन्फ्रेंस में प्रधान का पद युवा नेता कामरेड राजेश वर्मा को दिया गया और दोनों ने मिलकर इस संगठन को और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया। अखिल भारतीय केंद्रीय बैंक कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष, कॉमरेड सीएच वेंकटचलम और महासचिव, कॉमरेड राम बाबू उनके समर्पण और कड़ी मेहनत के लिए उन्हें बहुत प्यार किया करते थे। इसी तरह 2018 में लुधियाना में आयोजित सम्मेलन में, कॉमरेड राजेश वर्मा को महासचिव और कॉमरेड सुरेश भाटिया अध्यक्ष चुने गए। हालाँकि यह सच है कि कॉमरेड जोशी के जाने के बाद, कॉमरेड राजेश वर्मा और कॉमरेड सुरेश भाटिया ने कॉमरेड जोशी की कमी को इस संघ के काम में महसूस नहीं होने दिया, लेकिन फिर भी कॉमरेड जोशी अभी भी हमारे दिलों में ज़िंदा हैं। मुझे याद है कि जब भी मैं और जोशी जी संगठन की बैठकों में एक साथ मिलते थे, बैठक के बाद, जोशी अक्सर मुझसे पूछते थे कि मैं कब रिटायर हो जाऊंगा, और मैं मजाक में कहता कि, "तुझसे तीन महीने पहले"। लेकिन कॉमरेड जोशी अपनी बात पर नहीं टिके और 5 दिसंबर, 2017 को अपनी सेवानिवृत्ति से आठ महीने पहले, उसने हमें DMC Hospital लुधियाना में अकेला छोड़ दिया। वह अपनी पत्नी चंचल जोशी (बैंक ऑफ इंडिया) और बेटियों अदिति जोशी और आशु जोशी को भी छोड़ कर चले गए। उसके साथ बिताए पल हमेशा याद किए जाएंगे। वह दोस्तों का दोस्त था

* कामरेड  एमएस भाटिया बैंकिंग मुलाज़िमों के संघर्ष में अक्सर सक्रिय रहते हैं और सेंट्रल बैंक आफ इंडिया में काररत भी रहे हैं। इस सम सीपीआई की लुधियाना इकाई के वित्त सचिव भी हैं और पंजाबी दैनिक नवना ज़माना के स्थानीय ब्यूरो चीफ भी हैं। उनसे सम्पर्क के लिए उनका मोबाईल नंबर है: मो: 9988491002

Tuesday, June 2, 2020

कामरेड ताराकेश्वर-एक दूरदर्शी नेता

एक तरफ हड़ताल-दूसरी तरफ पिता का देहांत 
लुधियाना: 1 जून 2020 (*एम.एस.भाटिया//कामरेड स्क्रीन)::
कामरेड ताराकेश्वर चक्रवर्ती, जिसको सारे प्यार से कामरेड तारक या कामरेड तारकदा कहकर बुलाते थे। वह ना सिर्फ भारत की बैंक कर्मचारियों की यूनियन के महान नेता थे, बल्कि दुनियां भर के बैंकों के नेताओं में से एक थे। कामरेड परवाना और कामरेड प्रभातकार के जाने के बाद उन्होंने बैंक कर्मचारी आन्दोलन की कमान संभाली और इसको शिखरों तक पहुंचाया। 
कामरेड तारक का जन्म 2 जून 1926 को एक मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में नौखाली जिले के छोटे से कस्बे लक्ष्मीपुर में हुआ जो आजकल बंगला देश में है। उनके पिता श्री शशिकांत चक्रवर्ती खजाना विभाग के वकील के कलर्क थे और माता श्रीमति हिरनोई देवी घरेलू महिला थीं। विभाजन के बाद वह पश्चिम बंगाल आ गये व अगरपारा में रहने लगे जहां वह 1996 तक रहे और बाद में कलकत्ते आ गये। कामरेड तारक का संयुक्त परिवार रूढिवादी विचारधारा का धारणी था व पूरी तरह धार्मिक था। उनके परिवार में मांसाहारी की तो बात छोड़ो प्याज तक नही इस्तेमाल किया जाता था। पढ़ाई के नाम पर संस्कृति और शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता था। हर रोज सालिग्रामशिला की पूजा जरूरी थी। ऐसे माहौल में भी कामरेड तारक के पिता ने फैसला किया व बेटे को अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। उन्होंने 1941 में दूसरे दर्जे में दसवीं उत्तीर्ण की। 
कामरेड तारक उस समय कलकत्ते में थे जब दूसरे विश्वयुद्ध के समय 7 दिसंबर 1941 को जापान ने परल बन्दरगाह पर हमला करके अमेरिका के तीन जंगी बेड़े तबाह कर दिये व तब कलकत्ते के लोग बमबारी से डरते शहर छोड कर चले गये। वह भी अपने अंकल के परिवार सहित छोड कर बैलडांगा  (मुरशदाबाद) चले गये व 1942 में कलकत्ते वापिस आये। कामरेड तारक ने 28 दिसंबर 1945  में सैट्रल बैंक आफ इण्डिया की भोवानीपोर शाखा में नौकरी शुरू की। जो आशुतोष कालेज जहां कामरेड तारक एम.ऐ की पढ़ाई कर रहे थे के नजदीक था। यह वह समय था जब बैंकों में यूनियनों का गठन होने लगा। उन्होंने देखा कि उनके साथ के कर्मचारियों का बैंक के प्रबन्धकों द्वारा शोषण किया जा रहा है। कर्मचारियों को अनावश्यक सजाएं दी जाती थी। इन हालातों ने नौजवान तारक के मन पर गहरा असर डाला जिसको वह अपने आखिरी दिनों तक भी नही भूल पाए। वे यूनियन के सदस्य बन गये। 20 अप्रैल 1946 को कलकत्ते में आल इण्डिया बैंक इम्पलाईज ऐसोसियेशन (ई.आई.बी.ई.ऐ) जो बैंक कर्मचारियों की सब से बड़ी जत्थेबंदी थी, का गठन हुआ। कामरेड तारक -इन हिज आउन वर्डज नाम की पुस्तक में छपे लेख में उन्होंने कहा था कि ’’मै अंधरें में रास्ते ढूंढ रहा नौजवान था और 1949 के अंत तक मै पूरी तरह समझ गया था कि सारी बुराईयों की जड़ आर्थिक ढांचा व शोषण है। मेरी अपनी जिन्दी की मजबूरियों ने मुझे एक दिन वहां लाकर खड़ा कर दिया कि मै भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का  सदस्य बन गया। ठीक उसी समय मैने यूनियन में अपनी गतिविधियों को और बढ़ा दिया क्योंकि उस समय बैंक कर्मचारियों के नेता कामरेड नरेश पाल गिरफतार कर लिये गये व नौकरी से निकाले गये जो कि बैंक कर्मचारी आन्दोलन को सही दिशा की ओर ले जा रहे नेताओं में सिरमौर थे।’’ जेल से बाहर आने पर कामरेड नरेश पाल ने कामरेड तारक पर दबाव डाला कि वह यूनियन के सचिव का स्थायी तौर पर पद संभाले क्योंकि उनके जेल जाने के बाद अस्थायी तौर पर कामरेड तारक को सचिव बनाया गया था। इससे पहले सैंट्रल बैंक कर्मचारी जो 5 अगस्त 1948 से अनिश्चित समय की हड़ताल पर थे, बंगाल प्रोविन्शियल बैंक इम्पलाईज ऐसोसियेशन (बी.पी.बी.ई.ऐ) ने उनके पक्ष में हड़ताल का निमंत्रण दिया। हड़ताल कामयाब रही पर इस हड़ताल को गैर कानूनी करार दिया गया और 17 अगस्त 1948 को कामरेड प्रभातकार और साथियों के खिलाफ लायड बैंक के प्रबन्धकों द्वारा इस हड़ताल में हिस्सा लेने स्वरूप कार्यवाही शुरू की गई। कामरेड तारक बी.पी.बी.ई.ऐ. की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। यह वह दिन था जब कामरेड प्रभातकार, कामरेड नरेश  पाल और कई साथी बैंक की  नौकरी से  बरखास्त कर दिये गये थे। सेन अवार्ड को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया और शास्त्री ट्रिब्यूनल नियुक्त किया गया। सन 1951 में ऐ.आई.बी.ई.ऐ का स्पैशल सैशन कानपुर में बुलाया गया। कामरेड तारक उसमें शामिल हुये व उन्होंने अपना पहला भाषण वहां दिया और वह वहां कामरेड परवाना व अन्य बैंक कर्मचारी आन्दोलन के नेताओं को मिले। सन 1956 में कामरेड तारक के जीवन में कई घटनाएं घटित हुई। फरवरी में जब कामरेड तारक ऐ.आई.बी.ई.ऐ की दो दिनों की हड़ताल में व्यस्त थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया। तीन महीने बाद उनकी शादी बानी के साथ हो गई जो इस परिवार की पहली ग्रेजूएट थी। उनकी तीन बेटियां थी जो काफी पढ़ी लिखी थीं।
सन 1980 से लेकर 2 मई 2003 तक का समय उनका ऐ.आई.बी.ई.ऐ के महासचिव के तौर पर दूरदर्शी और मजबूत फैसले लेने से भरा हुआ था। पब्लिक सैक्टर बैंकों की दरपेश चुनौतियों को देखते हुये 1985 में बैंगलौर में हुई ऐ.आई.बी.ई.ऐ. की कान्फ्रैन्स में लिये फैसले अनुसार तारक ने 40000 बैंक कर्मचारियों के, जो देश के विभिन्न हिस्सों से आये थे, के प्रभावशाली पार्लीमैंट मार्च की अगवाई की। उनके मजबूत इरादे का इस बात से पता चलता है कि उन्होंने पहली बार बैंक कर्जों के बड़े-बड़े डिफाल्टरों के नाम छापे। वह इतने मजबूत थे कि 5वें तनखाह समझौते को दस्तखत करने के बाद भी रिलेटीविटी के मुद्दें को दोबारा खोल कर उसे विचारने के लिये आई.बी.ऐ. को मजबूर किया। जबकि सभी यह कह रहे थे कि यह किस तरह हो सकता है कि दस्तखत करके अंतिम रूप के बाद कोई समझौता दोबारा कैसे विचारा जा सकता है। पर यह हुआ और बैंक कर्मचारियों को अपने तनखाह-स्लैब में बढौतरी मिली।
सन 1990-91 में अपनी अमेरिका फेरी दौरान उन्होंने देखा कि उनकी ब्याज की दर बहुत कम है और वापिस आकर उन्होंने बैंक कर्मचारियों के लिये पैंशन का मुद्दा उठाया। 1994 की जयपुर में हुई कान्फ्रैन्स में कामरेड तारक ने पैंशन समझौते की प्राप्ति हेतू, बावजूद अन्य सभी जत्थेबंदियों की विरोधता के, मजबूत इरादे को उजागर किया। यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि बाद में उसने सभी यूनियनों को 1996 में कलकत्ते में यूनाईटिड फार्म आफ बैंक यूनियन्ज (यू.एफ.बी.यू.) के झण्डे तले एकत्र किया और बैंक कर्मचारियेां को दरपेश चुनौतियों से लड़ने के लिये मंच तैयार किया। सन 2000 को मुम्बई में ऐ.आई.बी.ई.ऐ. की कान्फ्रैन्स दौरान कामरेड तारक ने नारे दिये- नौकरियां बचाओ-नौकरियों को दरपेश खतरों को भांज दो और पबिल्क सैक्टर बैंकों को बचाओ-निजीकरण की कोशिशों को नाकाम करो। आज हम समझ सकते हैं कि कितने दूरदर्शी थे कामरेड तारक दा। कामरेड तारक एक ऐसे अद्भुत नेता थे जो समय की नज़ाकत को समझते थे। आने वाली चुनौतियों को भांपते हुये तैयारी करते थे। बैंक कर्मचारी उनको ’दादा’ कह कर भी सम्बोधित करते थे। उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी बैंक कर्मचारियों और ऐ.आई.बी.ई.ऐ को समर्पित की। वह विश्वप्रसिद्ध नेता थे। ट्रेड यूनियन में अपने योगदान के कारण उन्होंने विश्व के कई देशों का दौरा किया। कामरेड तारक पश्चिम बंगाल कम्यूनिस्ट पार्टी की स्टेट कमेटी के दो दशकों से सदस्य रहे। वह कम्यूनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कोंसिल के 18 वर्ष से भी अधिक समय तक  सदस्य रहे। वह कहते थे कि पार्टी में मेरी पुजीशन यूनियन में मेरी पुजीशन होने के कारण है।
2 मई 2003 के दिन कामरेड तारक हमें सदा के लिये छोड़ कर चले गये। अपने मजबूत इरादे और दूरदर्शिता के कारण कामरेड तारक हमेशा हमें जत्थेबंदी को और ऊंचाईयों की ओर लेकर जाने के लिये व हर प्रकार की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये संदेश देते रहेंगे।
आज के दिन हम उनको सलाम करते हैं।
*एम.एस.भाटिया सेंट्रल बैंक आफ इंडिया में कार्यरत्त रहे और रिटायर होने के बाद सीपीआई और एटक में सक्रिय हैं। उनका मोबाईल सम्पर्क है: +91 9988491002