Tuesday, June 2, 2020

कामरेड ताराकेश्वर-एक दूरदर्शी नेता

एक तरफ हड़ताल-दूसरी तरफ पिता का देहांत 
लुधियाना: 1 जून 2020 (*एम.एस.भाटिया//कामरेड स्क्रीन)::
कामरेड ताराकेश्वर चक्रवर्ती, जिसको सारे प्यार से कामरेड तारक या कामरेड तारकदा कहकर बुलाते थे। वह ना सिर्फ भारत की बैंक कर्मचारियों की यूनियन के महान नेता थे, बल्कि दुनियां भर के बैंकों के नेताओं में से एक थे। कामरेड परवाना और कामरेड प्रभातकार के जाने के बाद उन्होंने बैंक कर्मचारी आन्दोलन की कमान संभाली और इसको शिखरों तक पहुंचाया। 
कामरेड तारक का जन्म 2 जून 1926 को एक मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में नौखाली जिले के छोटे से कस्बे लक्ष्मीपुर में हुआ जो आजकल बंगला देश में है। उनके पिता श्री शशिकांत चक्रवर्ती खजाना विभाग के वकील के कलर्क थे और माता श्रीमति हिरनोई देवी घरेलू महिला थीं। विभाजन के बाद वह पश्चिम बंगाल आ गये व अगरपारा में रहने लगे जहां वह 1996 तक रहे और बाद में कलकत्ते आ गये। कामरेड तारक का संयुक्त परिवार रूढिवादी विचारधारा का धारणी था व पूरी तरह धार्मिक था। उनके परिवार में मांसाहारी की तो बात छोड़ो प्याज तक नही इस्तेमाल किया जाता था। पढ़ाई के नाम पर संस्कृति और शास्त्रों का ज्ञान दिया जाता था। हर रोज सालिग्रामशिला की पूजा जरूरी थी। ऐसे माहौल में भी कामरेड तारक के पिता ने फैसला किया व बेटे को अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। उन्होंने 1941 में दूसरे दर्जे में दसवीं उत्तीर्ण की। 
कामरेड तारक उस समय कलकत्ते में थे जब दूसरे विश्वयुद्ध के समय 7 दिसंबर 1941 को जापान ने परल बन्दरगाह पर हमला करके अमेरिका के तीन जंगी बेड़े तबाह कर दिये व तब कलकत्ते के लोग बमबारी से डरते शहर छोड कर चले गये। वह भी अपने अंकल के परिवार सहित छोड कर बैलडांगा  (मुरशदाबाद) चले गये व 1942 में कलकत्ते वापिस आये। कामरेड तारक ने 28 दिसंबर 1945  में सैट्रल बैंक आफ इण्डिया की भोवानीपोर शाखा में नौकरी शुरू की। जो आशुतोष कालेज जहां कामरेड तारक एम.ऐ की पढ़ाई कर रहे थे के नजदीक था। यह वह समय था जब बैंकों में यूनियनों का गठन होने लगा। उन्होंने देखा कि उनके साथ के कर्मचारियों का बैंक के प्रबन्धकों द्वारा शोषण किया जा रहा है। कर्मचारियों को अनावश्यक सजाएं दी जाती थी। इन हालातों ने नौजवान तारक के मन पर गहरा असर डाला जिसको वह अपने आखिरी दिनों तक भी नही भूल पाए। वे यूनियन के सदस्य बन गये। 20 अप्रैल 1946 को कलकत्ते में आल इण्डिया बैंक इम्पलाईज ऐसोसियेशन (ई.आई.बी.ई.ऐ) जो बैंक कर्मचारियों की सब से बड़ी जत्थेबंदी थी, का गठन हुआ। कामरेड तारक -इन हिज आउन वर्डज नाम की पुस्तक में छपे लेख में उन्होंने कहा था कि ’’मै अंधरें में रास्ते ढूंढ रहा नौजवान था और 1949 के अंत तक मै पूरी तरह समझ गया था कि सारी बुराईयों की जड़ आर्थिक ढांचा व शोषण है। मेरी अपनी जिन्दी की मजबूरियों ने मुझे एक दिन वहां लाकर खड़ा कर दिया कि मै भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का  सदस्य बन गया। ठीक उसी समय मैने यूनियन में अपनी गतिविधियों को और बढ़ा दिया क्योंकि उस समय बैंक कर्मचारियों के नेता कामरेड नरेश पाल गिरफतार कर लिये गये व नौकरी से निकाले गये जो कि बैंक कर्मचारी आन्दोलन को सही दिशा की ओर ले जा रहे नेताओं में सिरमौर थे।’’ जेल से बाहर आने पर कामरेड नरेश पाल ने कामरेड तारक पर दबाव डाला कि वह यूनियन के सचिव का स्थायी तौर पर पद संभाले क्योंकि उनके जेल जाने के बाद अस्थायी तौर पर कामरेड तारक को सचिव बनाया गया था। इससे पहले सैंट्रल बैंक कर्मचारी जो 5 अगस्त 1948 से अनिश्चित समय की हड़ताल पर थे, बंगाल प्रोविन्शियल बैंक इम्पलाईज ऐसोसियेशन (बी.पी.बी.ई.ऐ) ने उनके पक्ष में हड़ताल का निमंत्रण दिया। हड़ताल कामयाब रही पर इस हड़ताल को गैर कानूनी करार दिया गया और 17 अगस्त 1948 को कामरेड प्रभातकार और साथियों के खिलाफ लायड बैंक के प्रबन्धकों द्वारा इस हड़ताल में हिस्सा लेने स्वरूप कार्यवाही शुरू की गई। कामरेड तारक बी.पी.बी.ई.ऐ. की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। यह वह दिन था जब कामरेड प्रभातकार, कामरेड नरेश  पाल और कई साथी बैंक की  नौकरी से  बरखास्त कर दिये गये थे। सेन अवार्ड को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया और शास्त्री ट्रिब्यूनल नियुक्त किया गया। सन 1951 में ऐ.आई.बी.ई.ऐ का स्पैशल सैशन कानपुर में बुलाया गया। कामरेड तारक उसमें शामिल हुये व उन्होंने अपना पहला भाषण वहां दिया और वह वहां कामरेड परवाना व अन्य बैंक कर्मचारी आन्दोलन के नेताओं को मिले। सन 1956 में कामरेड तारक के जीवन में कई घटनाएं घटित हुई। फरवरी में जब कामरेड तारक ऐ.आई.बी.ई.ऐ की दो दिनों की हड़ताल में व्यस्त थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया। तीन महीने बाद उनकी शादी बानी के साथ हो गई जो इस परिवार की पहली ग्रेजूएट थी। उनकी तीन बेटियां थी जो काफी पढ़ी लिखी थीं।
सन 1980 से लेकर 2 मई 2003 तक का समय उनका ऐ.आई.बी.ई.ऐ के महासचिव के तौर पर दूरदर्शी और मजबूत फैसले लेने से भरा हुआ था। पब्लिक सैक्टर बैंकों की दरपेश चुनौतियों को देखते हुये 1985 में बैंगलौर में हुई ऐ.आई.बी.ई.ऐ. की कान्फ्रैन्स में लिये फैसले अनुसार तारक ने 40000 बैंक कर्मचारियों के, जो देश के विभिन्न हिस्सों से आये थे, के प्रभावशाली पार्लीमैंट मार्च की अगवाई की। उनके मजबूत इरादे का इस बात से पता चलता है कि उन्होंने पहली बार बैंक कर्जों के बड़े-बड़े डिफाल्टरों के नाम छापे। वह इतने मजबूत थे कि 5वें तनखाह समझौते को दस्तखत करने के बाद भी रिलेटीविटी के मुद्दें को दोबारा खोल कर उसे विचारने के लिये आई.बी.ऐ. को मजबूर किया। जबकि सभी यह कह रहे थे कि यह किस तरह हो सकता है कि दस्तखत करके अंतिम रूप के बाद कोई समझौता दोबारा कैसे विचारा जा सकता है। पर यह हुआ और बैंक कर्मचारियों को अपने तनखाह-स्लैब में बढौतरी मिली।
सन 1990-91 में अपनी अमेरिका फेरी दौरान उन्होंने देखा कि उनकी ब्याज की दर बहुत कम है और वापिस आकर उन्होंने बैंक कर्मचारियों के लिये पैंशन का मुद्दा उठाया। 1994 की जयपुर में हुई कान्फ्रैन्स में कामरेड तारक ने पैंशन समझौते की प्राप्ति हेतू, बावजूद अन्य सभी जत्थेबंदियों की विरोधता के, मजबूत इरादे को उजागर किया। यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि बाद में उसने सभी यूनियनों को 1996 में कलकत्ते में यूनाईटिड फार्म आफ बैंक यूनियन्ज (यू.एफ.बी.यू.) के झण्डे तले एकत्र किया और बैंक कर्मचारियेां को दरपेश चुनौतियों से लड़ने के लिये मंच तैयार किया। सन 2000 को मुम्बई में ऐ.आई.बी.ई.ऐ. की कान्फ्रैन्स दौरान कामरेड तारक ने नारे दिये- नौकरियां बचाओ-नौकरियों को दरपेश खतरों को भांज दो और पबिल्क सैक्टर बैंकों को बचाओ-निजीकरण की कोशिशों को नाकाम करो। आज हम समझ सकते हैं कि कितने दूरदर्शी थे कामरेड तारक दा। कामरेड तारक एक ऐसे अद्भुत नेता थे जो समय की नज़ाकत को समझते थे। आने वाली चुनौतियों को भांपते हुये तैयारी करते थे। बैंक कर्मचारी उनको ’दादा’ कह कर भी सम्बोधित करते थे। उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी बैंक कर्मचारियों और ऐ.आई.बी.ई.ऐ को समर्पित की। वह विश्वप्रसिद्ध नेता थे। ट्रेड यूनियन में अपने योगदान के कारण उन्होंने विश्व के कई देशों का दौरा किया। कामरेड तारक पश्चिम बंगाल कम्यूनिस्ट पार्टी की स्टेट कमेटी के दो दशकों से सदस्य रहे। वह कम्यूनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कोंसिल के 18 वर्ष से भी अधिक समय तक  सदस्य रहे। वह कहते थे कि पार्टी में मेरी पुजीशन यूनियन में मेरी पुजीशन होने के कारण है।
2 मई 2003 के दिन कामरेड तारक हमें सदा के लिये छोड़ कर चले गये। अपने मजबूत इरादे और दूरदर्शिता के कारण कामरेड तारक हमेशा हमें जत्थेबंदी को और ऊंचाईयों की ओर लेकर जाने के लिये व हर प्रकार की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये संदेश देते रहेंगे।
आज के दिन हम उनको सलाम करते हैं।
*एम.एस.भाटिया सेंट्रल बैंक आफ इंडिया में कार्यरत्त रहे और रिटायर होने के बाद सीपीआई और एटक में सक्रिय हैं। उनका मोबाईल सम्पर्क है: +91 9988491002


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