Monday, April 19, 2021

मई दिवस मनाने की तैयारियों का अभियान जोरों पर

 मई दिवस की स्मृति फिर जगाएगी नया जादू  

Sketch Courtesy: Chicago May Day 

1 मई 2021 को ‘मज़दूर दिवस सम्मेलनों में पहुंचने के निमंत्रण 

कारख़ाना मज़दूर यूनियन और टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन द्वारा पर्चा और पोस्टर भी जारी 

लुधियाना: 19 अप्रैल 2021: (कामरेड स्क्रीन डेस्क)::

पूँजीवाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! के नारे को एक बार बुलंद करता हुआ श्रमिक वर्गों आज के इस नाज़ुक दौर में एक बार फिर मई दिवस शहीदों की कुर्बानियों को याद दिलाने के लिए सक्रिय है। ये वही शहीद हैं जिन्हों ने निराशा के वक़्त बहुत बड़ी आशा जगाते हुए ऐतिहासिक संघर्ष  किया था। मज़दूर जमात के हाथों में अपने  विजय पताका  इन्हीं शहीदों ने थमाई थी। 

इस बार 136वां अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस उस वक़्त मनाया जा रहा है जब श्रमिक वर्ग के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है। उनके संविधानिक  रहे हैं। उन्हें इंसान से जानवर समझने की  भूल एक बार फिर की जा रही है। श्रमिक वर्ग हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने  फिर से कमरकस कर तैयार है।  

मई  दिवस पर श्रमिक शक्ति याद दिला रही है कि आज घोषणा करने का दिन है कि हम भी हैं इंसान। हमें भी चाहिए बेहतर दुनिया करते हैं ऐलान। इसके साथ ही खुला निमंत्रण है कि 1 मई 2021 को ‘मज़दूर दिवस सम्मेलन’  में पहुँचो। 

 सभी श्रमिकों से विशेष तौर पर कहा गया है कि हमारी सभी मज़दूर भाई-बहनों से अपील है कि 1 मई को काम पर न जाकर मज़दूर पुस्तकालय, #4135, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी, ताजपुर रोड, लुधियाना पर पहुंचे। सुबह 9 बजे शुरू  होने वाले कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर शामिल होना होगा। मज़दूर दिवस सम्मेलन में अधिक से अधिक संख्या में पहुँचो तांकि लुटेरे  बताया जा सके कि हम जाग रहे हैं और इस नए संघर्ष के लिए भी तैयार हैं। 

इस सम्मेलन में क्रांतिकारी नाटक-गीतों का कार्यक्रम भी जोशो खरोश से होगा। इस बार भी 1 मई को मज़दूरों का सबसे बड़ा त्योहार अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस ज़ोरशोर से मनाया जाना है। पहली मई का दिन हर वर्ष मज़दूर वर्ग के लिए नया जोश लेकर आता है। वहीं शोषक पूँजीपतियों के लिए यह दिन ख़ौफ़ बनकर आता है। इस दिन दुनिया के कोने-कोने में मज़दूर क्रांतिकारी लाल झंडे लेकर सड़कों पर उतरते हैं। अपने मज़दूर शहीदों को याद करते हैं, समागम करते हैं, रैलियाँ-जुलूस निकालते हैं, पूँजीवादी लूट, शोषण के खि़लाफ़ मज़दूर वर्ग का संघर्ष आगे बढ़ाने के क्रांतिकारी संकल्प लेते हैं। मज़दूर दिवस की यह शिक्षा है कि मज़दूरों को आज तक एकजुट संघर्ष के जरिए ही सभी हक़-अधिकार मिले हैं, कि राष्ट्र, रंग, धर्म, जाति, भाषा आदि के भेदभाव मिटाकर संगठित संघर्ष के जरिए पूँजीवादी शोषण का खात्मा संभव है। एक दिन यह खत्म हो कर ही रहेगा। 

Courtesy Photo Chicago May Day 
मज़दूरों के ख़ून से लिखी ‘मज़दूर दिवस’ की कहानी एक बार फिर हर दिल और दिमाग में ताज़ा  आवश्यक हो गया है। मज़दूरों का त्योहार अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस आठ घंटे काम का दिन के लिए मज़दूरों के शानदार आंदोलन से पैदा हुआ था। उन दिनों मज़दूर चौदह से लेकर सोलह-सोलह घंटे तक खटते थे। सारी दुनिया में इस माँग को लेकर मज़दूर जगह-जगह आंदोलन कर रहे थे। भारत में भी 1862 में इस माँग को लेकर कामबंदी हुई थी। 1886 में अमरीका के कई मज़दूर संगठनों ने मिलकर इस माँग पर एक विशाल आंदोलन खड़ा करने का फ़ैसला लिया। यह एक ऐतिहासिक गाथा है। 

एक मई 1886 को अमरीका के लाखों मज़दूरों ने ‘आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम, आठ घंटे मनोरंजन’ की माँग पर एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11,000 कार$खानों के करीब 4 लाख मज़दूर शामिल थे। शिकागो शहर और आसपास का लगभग सारा काम ठप्प हो गया। इस हड़ताल को कुचलने के लिए पूँजीवादी हुकूमत ने नेताओं को पैसों का लालच दिया। डराया-धमकाया लेकिन कोई हथकंडा काम न आया। फिर 3-4 मई को मज़दूरों के जुटान पर गोलियाँ चलाई गईं, बम फेंके गए। चार मई को हुए बम हमले के दोष में 8 मज़दूर नेताओं पर झूठा मुक़द्दमा चलाया गया। 11 नवंबर 1887 को पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल और फिशर को फाँसी दी गई। 13 नवंबर को चारों मज़दूर नेताओं की शवयात्रा में छह लाख से भी ज्य़ादा लोग अपने नायकों को आखिऱी सलाम देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े।

मज़दूरों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘दूसरे इंटरनेशनल’  के आह्वान पर सन् 1890 से पहली मई का दिन अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के तौर पर दुनिया के विभिन्न देशों में मनाया जाने लगा। शिकागो के शहीद हुए मज़दूरों और उनके नेताओं ने अपना बलिदान देकर सारी दुनिया के मज़दूरों को पूँजीवादी शोषण-उत्पीडन के खि़लाफ़ संघर्ष के लिए नई प्रेरणा दी। शिकागो के शहीद अमर हो गए।

मज़दूर वर्ग की आवाज़ दबाने के सारे हथकंडे धराशाही हो गए। संघर्ष बढ़ता ही गया। अमरीका ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने में आठ घंटे कार्यदिवस की माँग मानने के लिए लुटेरे हुक्मरानों को मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं दुनिया के मज़दूरों के अपने संघर्ष की बदौलत न्यूनतम वेतन, रोज़गार की गारंटी, कार्यस्थलों पर सुरक्षा इंतज़ाम आदि संबंधी अनेकों श्रम अधिकार प्राप्त किए। रूस, चीन जैसे बहुत से देशों में मज़दूरों ने अन्य मेहनतकश जनता के साथ मिलकर शोषणकारी राज ख़त्म करके मज़दूरों का राज कायम करने में भी कामयाबी हासिल की। भले ही आगे बढऩे की समझ की कमी के चलते मज़दूरों के राज वाले ये समाजवादी समाज कायम नहीं रह सके, लेकिन इतना तय है कि मज़दूर वर्ग तमाम जीतों-हारों से सबक़ लेकर फिर से समाजवादी समाज कायम करेगा।

ऐसा है मज़दूर वर्ग के संघर्षों का महान, गौरवमयी इतिहास। मई दिन का इतिहास, शहीदों की क़ुर्बानी और लहू से बना लाल झंडा दुनिया के मज़दूरों को पूँजीवादी लूट, शोषण, अन्याय के बेहद मुश्किल हालातों में, तमाम हमलों, हारों की निराशाजनक हालातों में आगे बढने की प्रेरणा देता रहेगा।

हमें पूँजीवादी हुक्मरानों के नए हमलों के खि़लाफ़ ज़ोरदार संघर्ष छेडना होगा। इस बार मई दिवस का मुख्य मकसद भी यह हम इस बार पहली मई का दिन ऐसे हालातों में मना रहे हैं, जब देशी-विदेशी पूँजीपतियों की भारत की अब तक की सबसे बड़ी दलाल मोदी सरकार ने आठ घंटे कार्यदिवस के क़ानूनी श्रम अधिकार पर बड़ा हमला कर दिया है। यही नहीं न्यूनतम वेतन, यूनियन बनाने, हड़ताल करने के अधिकार समेत अन्य बहुत से क़ानूनी श्रम अधिकारों को छीना जा रहा है। ऐसा मोदी सरकार ने 29 पुराने श्रम क़ानूनों की जगह 4 नए श्रम क़ानून (कोड) लाकर किया है। अगर मज़दूर वर्ग ने नए श्रम क़ानूनों के खि़लाफ़ निर्णायक संघर्ष छेडऩे में कामयाबी हासिल न की, तो ये काले क़ानून लागू हो जाएँगे और मज़दूर वर्ग की पहले से भी अधिक ग़ुलामी के एक नए दौर की शुरुआत होगी।

अर्थव्यवस्था से सरकारी निवेश निकालकर जनता को मुनाफे के भूखे भेडिय़ों के सामने परोसा जा रहा है। इसी नीति के अंतर्गत अनाज ख़रीद, रेलवे, बिजली बोर्ड, सरकारी कार$खानों, बैंकों का निजीकरण हो रहा है। कृषि क़ानून निजीकरण की इसी नीति का हिस्सा हैं। जनविरोधी नीतियों के चलते महँगाई आसमान छू रही है। पंजाब और अन्य राज्यों की विभिन्न पार्टियों की सरकारें भी ऐसी ही नीतियों धड़ाधड़ लागू कर रही हैं।

पंजाब सरकार ने पूँजीपतियों को 479 नियम-शर्तें लागू करने से छुटकारा दिला दिया है। इससे न सिर्फ मज़दूरों की आर्थिक लूट बढ़ेगी बल्कि औद्योगिक हादसे भी बढ़ेंगे।

पिछले साल से लगातार हुक्मरानों का कोरोना ड्रामा जारी है। जनता को गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, मानसिक परेशानियों के और भी गहरे गढ्ढे में धकेला जा रहा है। कोरोना के बहाने लॉकडाउन और अन्य नाजायज़ पाबंदियाँ थोपकर जनता के अधिकारों को बर्बरतापूर्वक कुचला जा रहा है।

अब देश के मज़दूरों-मेहनतकशों को बड़े स्तर पर समझ आने लगा है कि भाजपा-आर.एस.एस. ने जो धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाई है, उसका असल मक़सद क्या है! ‘मुँह में राम-राम, बग़ल में छुरी’  वाली इस मोदी हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति सबके सामने है। इसका पूँजीपरस्त घिनौना चेहरा अब एकदम नंगा हो चुका है। अब तो ये सी.ए.ए., एन.पी.आर., एन.आर.सी. लाकर करोड़ों ग़रीबों (जिसमें सभी धर्मों के ग़रीब शामिल होंगे) की नागरिकता छीनने की तैयारी कर चुके हैं। भारत की तमाम इंसाफ़पसंद जनता को, मज़दूरों-मेहनतकशों के दुश्मन, इंसानीयत के दुश्मन, जनता के जनवादी अधिकारों, आज़ादी के दुश्मन इन फासीवादी हुक्मरानों का तख़्तापलट करने के लिए आगे आना होगा। दुनिया के मज़दूर आंदोलन का यह सबक़ है कि संसद-विधानसभा के चुनावी खेल से पूँजीवादी हुक्मरानों का कुछ बिगडऩे वाला नहीं। इतिहास का सबक़ है कि एकजुट संघर्ष के ज़रिए ही ऐसा संभव है।

ऐसे समय में जब पूँजीवादी हुक्मरान जनता के मुँह से रोटी का आखिऱी निवाला भी छीन लेने पर आमादा है चुप रहना, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना बेहद घातक सिद्ध होगा। इसलिए आओ, मज़दूर दिवस के शहीदों का थमाया संघर्षों का झंडा बुलंद करें। पूँजीवादी हुक्मरानों को निर्णायक शिकसत देने की ज़ोरदार तैयारियों में जुट जाएँ।

इंक़लाबी सलाम करते हुए कारख़ाना मज़दूर यूनियन और टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन सभी को इस सम्मेलन में पहुंचने  निमंत्रण देती है। 

इस संबंध में और विवरण लिया जा सकता है इन नंबरों पर सम्पर्क करके: 9888655663, 9646150249

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