Saturday, January 16, 2021

कृषि सुधार और किसान आंदोलन

 Friday:15th January  2021 at 8:53 PM

   लेखक:यादविंदर सिंह हुंजन                                                                       अनुवाद: एम एस भाटिया  


किसानों और उनकी उपज से संबंधित भारत सरकार ने सितंबर 2020 में तीन कानून पारित किए हैं। यह कानून निजी और कॉर्पोरेट व्यापारियों द्वारा कृषि उपज,निजी बाजार प्रणाली और कृषि अनुबंध प्रणाली को विनियमित करता है। सरकार ने आपात स्थितियों के अलावा आवश्यक वस्तुओं पर स्टॉकहोल्डिंग प्रतिबंधों को हटाने के लिए कानून पारित किया है। भारत के प्रधान मंत्री, उनकी सरकार और कृषि अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में सुधार होगा। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन 1991 के प्रसिद्ध आर्थिक सुधारों से संबंधित हैं। इन आर्थिक सुधारों के साथ, सरकार का नियंत्रण हटाकर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को एक खुला बाजार बनाना है।

लेखक यादविंदर हूंझण 
किसानों को गहराई से चिंता है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम एस पी) खत्म कर देगी। नए अनुबंध कृषि कानूनों ने कॉर्पोरेट और निजी व्यापारियों को अधिक अधिकार दिए हैं। आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को सीधे कॉर्पोरेट द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। किसान तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। पंजाब के किसान अगस्त 2020 से इन कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं जब सरकार ने संसद में कानून पेश किए थे। पहले विरोध प्रदर्शन पंजाब राज्य तक ही सीमित थे, लेकिन अब अधिकांश राज्यों की किसान यूनियने आंदोलन का हिस्सा हैं।
पंजाब के किसानों ने बिना किसी सकारात्मक परिणाम के कुछ हफ्तों के लिए रेलवे लाइनों को अवरुद्ध कर दिया। अक्टूबर 2020 में, पंजाब किसानों को खुश करने के लिए केंद्र के कानून को रद्द करने के लिए एक कानून पारित करने वाला पहला राज्य बन गया, लेकिन किसान संतुष्ट नहीं थे।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत के संविधान में, कृषि राज्य का विषय है, और व्यापार और अर्थव्यवस्था केंद्रीय विषय हैं। तब पंजाब के किसानों ने अगले चरण के रूप में विरोध करने का फैसला किया और दिल्ली जाने और वहां प्रदर्शन के लिए बैठने का फैसला किया, क्योंकि यह लोकतंत्र में नागरिकों का कानूनी अधिकार है। हरियाणा सरकार ने पंजाब के किसानों को विभिन्न सीमाओं पर रोक दिया लेकिन यह विफल रहा। इस बीच, हरियाणा के किसान भी आंदोलन में शामिल हो गए और  दिल्ली की ओर मार्च करना शुरू कर दिया। हरियाणा और दिल्लीपुलिस ने किसानों को रोकने की कोशिश की। उन्होंने  बैरिकेड्स का इस्तेमाल किया, तेज स्टील के तार लगाए, सड़कें खोदीं, सड़कों को अवरुद्ध किया, रेत के ट्रक लगाए, पानी का छिड़काव किया और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली बॉर्डर पर किसानों को रोका। तब किसानों ने दिल्ली जाने वाले मुख्य मार्गों को अवरुद्ध करके विरोध करने का फैसला किया। भारत सरकार ने विरोध के लिए दिल्ली में एक जगह की पेशकश की, लेकिन किसानों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि उनके पास रिपोर्ट थी कि दिल्ली पुलिस इस स्थान को स्थानीय जेल में बदल देगी। वर्तमान में, किसान दिल्ली जाने वाले महत्वपूर्ण मार्गों को अवरुद्ध किए हुए  हैं और विरोध कर रहे हैं। इस बीच, दिल्ली में विरोध प्रदर्शन में उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य भारतीय राज्यों के किसान शामिल हुए। विरोध शांतिपूर्णम और अहिंसक हैं।
अनुवादक एम एस भाटिया 

रिपोर्टों के अनुसार, अनुबंध खेती के बिल में प्रावधान किसानों को विवाद को हल करने के लिए दीवानी अदालत में अपील करने से रोकते हैं। अनुभाग के अनुसार, किसान केवल विवादों को हल करने के लिए जिला प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं। किसानों के अनुसार देश में उनके मूल कानूनी और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला हो रहा है। नए कानून के तहत, निजी व्यापारी आयकर पहचान (पैन कार्ड) या किसी अन्य पहचान के साथ कृषि उत्पाद खरीद सकते हैं और पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। भारत में उन्हें ट्रेस करना लगभग असंभव होगा। किसान भी चिंतित हैं कि ये निजी व्यापारी अपनी उपज के लिए एमएसपी से कम भुगतान करेंगे। कुछ राज्य सरकारें ग्रामीण विकास के लिए सरकारी मंडियों में फसलों की खरीद पर कर लगाती हैं जबकि नए कानून राज्य सरकारों को निजी मंडियों से कर वसूलने से रोकते हैं। इस संबंध में, कानून सरकारी मंडियों के विपरीत है और निजी मंडियों का पक्षधर है।
किसानों की आशंका इस तथ्य पर आधारित है कि बिहार राज्य ने 2006 में कृषि बाजार प्रणाली को समाप्त कर दिया और बिहार में किसान अपनी उपज को आधे एमएसपी मूल्य पर बेचने के लिए मजबूर हैं। 1960 के दशक में हरित क्रांति के दौरान  एम एस पी अस्तित्व में आया।
अब किसान मांग कर रहे हैं कि उनकी उपज का एमएसपी कानून द्वारा सुनिश्चित किया जाए। जिस तरह से संसद में कानून पारित किए गए हैं, उसके खिलाफ आपत्तियां भी उठाई गई हैं। कोविद 19 महामारी के दौरान बिलों के लिए संसद में एक अध्यादेश लाया गया था। यह देश अभी भी महामारी से जूझ रहा  हेै। इस समय कृषि कानूनों की क्या आवश्यकता थी? हद तो तब हो गई जब संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में फर्जी वोटों के साथ कानून पारित कर दिया गया। राज्यसभा के सदस्य संसदीय समिति को विधेयक भेजने के लिए कह रहे थे ताकि विपक्ष की चिंताओं का विश्लेषण, चर्चा और समाधान किया जा सके। किसान यूनियनों का यह भी आरोप है कि सरकार ने विधेयक को तैयार करने में उनकी सलाह नहीं ली। प्रमुख हितधारकों के रूप में, उन्हें सरकार द्वारा विचार-विमर्श में शामिल किया जाना चाहिए था। घटनाओं का क्रम इंगित करता है कि कानून अनुमोदन के लिए हैं वर्तमान सत्ताधारी पार्टी ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संसद के नियमों का पालन नहीं किया है।
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार इन कानूनों की प्रशंसा की है और उन्हें 'क्रांतिकारी' कहा है। सरकार के अनुसार, यह कृषि क्षेत्र में सुधार करेगा और किसानों के भविष्य को मजबूत करेगा। दूसरी ओर, किसान और आम नागरिक, सरकार के दावों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पे अड़े हुए हैं। मोदी सरकार के हमारे छह साल के प्रदर्शन के आधार पर किसानों की आशंका जायज है। 2014 में, मोदी ने भारत के लोगों को सबजबाग दिखाकर अपने पक्ष में फतवा जीता था।
उन्होंने वादा किया कि उनकी सरकार पहले 100 दिनों में स्विस बैंकों से काला धन लाएगी, उनकी सरकार हर साल 20 मिलियन नौकरियां पैदा करेगी, भारत को बहु-अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था और कई और झूठे वादे । दूसरा कार्यकाल जीतने के बावजूद इनमें से कोई भी दावा पूरा नहीं हुआ है। इसके विपरीत, इसने 2016 में नोटबंदी की विनाशकारी नीति को लागू किया, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी। तब से, भारतीय अर्थव्यवस्था गिरावट में रही है और वापस नहीं उठी है। मार्च 2020 में हालिया महामारी ने भारत के इतिहास में सबसे खराब आर्थिक मंदी ला दी है।
लाखों नौकरियां चली गईं हैं। नोटबंदी से आहत अर्थव्यवस्था, अभी तक नहीं उबर पाई थी जब सरकार ने 2017 में जल्दबाजी में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जी एस टी) को लागू किया था। अर्थशास्त्रियों की राय है कि जीएसटी कर सुधार की आवश्यकता तो थी, लेकिन इसका कार्यान्वयन कुशल और प्रभावी नहीं था, जिसका अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ा।

वर्तमान सरकार की नीतियां और कार्य कुछ कॉर्पोरेट घरानों के पक्ष में हैं। दूसरी ओर, अधिकांश भारतीयों के जीवन स्तर में अभी भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की कमी है। हाल के वर्षों में, सरकार ने कुछ कॉरपोरेट घरानों को कई हवाई अड्डों, रेलवे और फाइटर जेट्स के लिए अनुबंध प्रदान किया है।
सरकार का खराब प्रदर्शन सरकार और उसके नागरिकों के बीच विश्वास की कमी पैदा कर रहा है। यह एक कारण हो सकता है कि किसान प्रधानमंत्री पर भरोसा नहीं करते हैं, जो दावा करते हैं कि नए कानून सुधारवादी और किसान समर्थक हैं। यहाँ यह बताना उचित है कि भारत की राजनीतिक, प्रशासनिक, पुलिस और निचली न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार का इतिहास है।
सरकार किसानों के विरोध को अनावश्यक बनाने की कोशिश कर दोहरा खेल भी खेल रही है। सरकार ने अपने संसाधनों का दुरुपयोग किया है जैसे कि समाचार मीडिया हाउस और सोशल मीडिया ने गलत सूचना फैलाने और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अलगाववादियों के रूप में लेबल लगाकर जनता की राय में हेरफेर किया है और अब तक विफल रहा है। यहां यह बताना उचित है कि मोदी सरकार की  रणनीति सफल रही है  जो   सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के विरोध  और जम्मू और कश्मीर राज्य की 370 खतम करने के विरोध को विफल बनाने ; और 2019 में पिछले आम चुनाव मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्यों में जीते गए थे।
अब तक, पंजाबी (हरियाणा सहित) किसानों के संघर्ष को दो महीने हो चुके हैं, भले ही सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन किसान अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखने में सफल रहे। पंजाबियों की अपनी भूमि और संस्कृति में क्रांतियों का इतिहास है और सवभाव  से आक्रामक हैं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़ी संख्या में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। हाल के वर्षों में पिछले दो आम चुनावों में भी, मोदी लहर के बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए संसद कम से कम सदस्य चुने जाने वाला पंजाब एकमात्र राज्य था। किसानों  का यह मोदी सरकार के खिलाफ एक सफल विरोध प्रदर्शन करने का ऐतिहासिक साहस है , जिस सरकार ने पिछले सभी विरोध प्रदर्शनों को बलपूर्वक या धमकाने के द्वारा विफल किया है। इस अंदोलन ने दिखाया है कि वह न केवल आक्रामक हैं, उसकी सोच भी रणनीतिक है। वे अधिकारियों को उनकी शिकायतों के बारे में  सफलतापूर्वक सूचित कर सकते हैं। सरकार समर्थक मीडिया और सोशल मीडिया की गलत सूचना के बावजूद, किसानों द्वारा  आम जनता को तर्कसंगत रूप से और उचित विश्लेषण के साथ समझने की क्षमता है, जो कि के आंदोलन को अधिक गति दे रहा है और सरकारी प्रचार का जवाब दे रहा है।
कुछ ने यह सुझाव देना शुरू कर दिया है कि नए कानूनों को निरस्त करने के लिए किसानों को अन्य तरीकों का चयन करना चाहिए। उन्हें अदालत जाना चाहिए। भारतीय न्यायपालिका लंबे समय से न्याय देने में देरी के लिए जानी जाती है। हाल ही में, कुछ वरिष्ठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने चिंता व्यक्त की है कि न्यायपालिका ने कई मामलों में पर्याप्त न्याय नहीं किया है। न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को लेकर न्यायाधीश चिंतित थे। ये न्यायाधीश लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों में न्याय तक पहुंच की कमी के बारे में भी चिंतित हैं। इसी प्रकार, राज्य को एक साल से अधिक समय के लिए बंद कर दिया गया और जंमू औरकश्मीर के लोगों के अधिकारों और फरवरी 2020 में धारा 370, सीएए, दिल्ली दंगों का उन्मूलन, चुनाव बॉन्ड, मतदाता प्रमाणित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीटी) के तहत  गिनती का क्या हुआ, राफेल जेट घोटाला और जज लोया हत्या का मामला चिंताजनक है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चार बहुत वरिष्ठ न्यायाधीशों ने अदालत के कामकाज पर चिंता व्यक्त करने के लिए जनवरी 2018 में एक संवाददाता सम्मेलन किया क्योंकि उन्हें डर था कि अदालत में सब कुछ ठीक नहीं था और लोकतंत्र दांव पर था। भारत की आजादी में यह पहली बार था जब न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इन घटनाओं से पता चलता है कि भारतीय न्यायपालिका के उच्च न्यायालय अपनी चमक खो रहे हैं और उखड़ने लगे हैं, जिसकी विश्वसनीयता के लिए दुनिया में सबसे अधिक सम्मान था। परिणामस्वरूप, सर्वोच्च न्यायालय में लोगों का विश्वास उठ रहा है।
अब, जनता की राय को बदलने के लिए, नई गलत सूचना फैलने लगी है कि अगर खरीदार एमएसपी के अनुसार अपने उत्पादों के लिए किसानों को भुगतान करता है, तो यह मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगा, अर्थात कीमतों में वृद्धि।
लोगों को गलत सूचना की गलत धारणा को दूर करने के लिए एमएसपी, खुदरा मूल्य (एमआरपी) और मूल्य निर्धारण प्रणाली के बीच के अंतर को समझने की जरूरत है।  एम एस पी का अर्थ कृषि की कुल लागत और लाभ को जमा करके केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित खरीद मूल्य है। एम आर पी वह मूल्य है जिस पर उपभोक्ता उत्पाद खरीदेंगे।
मूल्य प्रणाली को समझने के लिए, उदाहरण के लिए, गेहूं अनाज और गेहूं का आटा; वर्तमान में गेहूं के अनाज के लिए एमएसपी 20 रुपये प्रति किलोग्राम है जो किसान को उपलब्ध है और गेहूं के लिए एमआरपी लगभग 40 रुपये प्रति किलोग्राम है, जिसके लिए उपभोक्ता इसे खरीद रहा है। इसका मतलब है कि उपभोक्ता उस कीमत को दोगुना कर रहा है जिसके अनुसार किसान को प्राप्त होता है - एमएसपी और बिचौलियों द्वारा प्राप्त 100% का अंतर बताता है कि किसान (कच्चे माल का उत्पादक) मूल्य प्रणाली में सबसे अधिक लाभार्थी नहीं; लाभार्थी मध्यम लोग हैं जो व्यापारिक लोग हैं - निर्माताओं, वितरकों और खुदरा विक्रेताओं सहित। तार्किक रूप से, सभी कच्चे माल उत्पादकों (किसानों सहित) को एक मूल्य दिया जाना चाहिए जो इसके इनपुट लागत और लाभ के बीच अंतर को कवर करता है, जो कि एमएसपी में - किसानों के मामले में।
भारतीय कृषि क्षेत्र में सुधारों की बहुत आवश्यकता है। चावल की फसलों के लिए पानी के अधिक उपयोग के कारण गिरता जल स्तर चिंता का विषय है जो फसल विविधीकरण की आवश्यकता को इंगित करता है। किसान की आय रुकी हुई है और इसकी आय दोगुनी करने के लिए सुधार किए जाने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र की समस्या को हल करने के लिए कई रिपोर्ट और अध्ययन किए गए  हैं। प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री, स्वामीनाथन, जो भारत में हरित क्रांति के रचेता हैं, ने 2004 से 2006 तक दो रिपोर्ट सरकार को सौंपी। सिफारिशों में से एक किसान की आय में सुधार करना था और दूसरा इनपुट लागत के 50% के साथ एमएसपी को ठीक करना था। सभी राजनीतिक दल स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए सहमत हो रहे थे और अपने चुनावी घोषणापत्र में इसे शामिल कर रहे थे। फिर भी, एक दशक बाद, किसी भी सरकार ने इसे लागू करने की हिम्मत नहीं की।
90 के दशक के मध्य से 2010 के आर्थिक सुधारों के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में आम तौर पर सुधार हुआ है। जैसे कि नौकरी में वृद्धि,  ग्राहक सेवा मे  सुधार और गरीबी का घटना  इत्यादि। सुधार का एक अच्छा उदाहरण सॉफ्टवेयर, बैंकिंग और दूरसंचार क्षेत्र हैं। उन्होंने बहुत विकास देखा, बहुत सारी नौकरियां पैदा कीं, अच्छी ग्राहक सेवा और नवाचार देखा। भारत और चीन दोनों ने दिखाया है कि सुधारों के आधार पर आर्थिक विकास से लोगों की आजीविका में सुधार हो सकता है। इसलिए, इसका मतलब है कि भारत को समृद्धि का नेतृत्व करने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार करना होगा।
इससे भारतीय किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी उपज बेचने और निर्यात में सुधार करने में मदद मिलेगी।
वर्तमान मोदी के नेतृत्व वाली सरकार हाल के लाभों को बताने और संवाद करने में विफल रही है। चूंकि इसने संसद में कुछ जनविरोधी कानून पारित किए हैं,यह सरकार के बुरे इरादे को दिखाते हैं  ताकि लाभार्थियों की भागीदारी के बिना कॉर्पोरेटों को लाभ मिल सके।
अब, यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार आम आदमी, खेती और अन्य संबद्ध सेवाओं और नौकरियों के लिए, जो भारत के कुल रोजगार का लगभग 70% है, "सूट-बूट सरकार" बन गई है।
आर्थिक विकास केवल व्यापक आबादी को लाभान्वित कर सकता है यदि यह लोकतांत्रिक हो। विकास, पारदर्शिता,  विश्वास, निवेश और सभी के लिए विकास की श्रृंखला, जो समृद्धि की ओर ले जाती है, वर्तमान सरकार द्वारा तोड़ दी गई है। भारत नीचे जा रहा है (या नीचे चला गया है), जो अमीरों को प्रभावित नहीं कर रहा है, यह कम से कम मध्यम वर्ग को प्रभावित करेगा लेकिन यह गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा। हम केवल आशा कर सकते हैं कि वर्तमान सरकार स्थिति और किसानों को समझती है। भाजपा आंदोलन के पीछे हताशा और पीड़ा को महसूस करे। सरकार को बड़ी संख्या में लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए और किसान संघों को यह समझना चाहिए कि कृषि क्षेत्र को नवाचार और बेहतर भविष्य के लिए बेहतर बनाने की जरूरत है।
इस लेख के लेखक यादविंदर सिंह हूंझण शहीद गुरमेल सिंह हूंझण पंधेरखेड़ी के बेटे हैं और आजकल अमेरिका में सेटल हैं। इस लेख को उन्होंने अंग्रेजी में लिखा था जिसे अनुवाद करने का कार्य किया नवां ज़माना और कामरेड स्क्रीन से जुड़े वाम पत्रकार एम एस भाटिया ने।  आपको यह लेख और इसका अनुवाद कैसा लगा अवश्य बताएं। --सम्पादक 

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