ट्रेड यूनियनों ने 4 लेबर कोड बिल की प्रतियां जलाई
श्रमिक वर्ग के पास न तो ज़्यादा पैसा होता है और न ही ज़्यादा वक़्त जिससे वे मिलजुल कर अपनी किसी ख़ुशी को सांझा कर सकें। किसी न किसी बहाने आपस में मिल जल कर नाच सकें, गए सकें और अपने दुःख सुख बाँट सकें। एक ही महत्वपूर्ण दिन मई दिवस जिसे मज़दूर दिवस भी कहा जाता है। हर वर्ष पहली मई को दुनिया भर में मनाये जाते इस दिन की इंतज़ार हर उस व्यक्ति को रहती जिसे मेहनत से और मेहनत कमाई से प्यार है। हर कदम ज़िंदगी इक नयी जंग है जैसे संघर्षमय गीतों का गायन करते श्रमिक वर्ग की ज़िंदगी फिल्म नमक हराम के एक गीत में बहुत ही कलात्मक अंदाज़ में ब्यान किया गया था
शोलों पे चलना था, काँटों पे सोना था
और अभी जी भर के, किस्मत पे रोना था
जाने ऐसे कितने, बाकी छोड़के काम
हो मैं चला, मैं चला
मैं शायर बदनाम
गरीबी, मजबूरी, लाचारी और निरंतर संघर्ष से भरी इस तरह की ज़िंदगी में मई दिवस एक पुरानी जीत की याद भी लाताऔर नयी जीत का संकल्प भी मज़बूत करता। इसके साथ ही हर वर्ष यह दिन शहीदों की याद भी ताज़ा करता। दिन रात-हर वक़्त काम ही काम के चक्कर को तोड़ता था यह विजय दिवस। आठ घंटे की इस जीत को 100 वर्ष से भी ज़्यादा हो गया। जब यह जीत हासिल गयी उस समय न तो कम्प्यूटर आज जैसी अतिआधुनिक मशीनें। उसके बाद बहुत कुछ बदला। उम्मीद थी कि मशीनों के आने से मज़दूरों का बोझ कुछ कम होगा उन्हें आराम के लिए कुछ और वक़्त मिल सकेगा। काम के घंटे आठ से भी कम हो सकेंगे। लेकिन मज़दूरों को तक्नोलोजी के इन फायदों से वंचित रखा गया।
मोदी सरकार ने वक़्त के पहिये को पीछे की तरफ धकेलते हुए काम के घंटों को आठ घंटे से बढ़ा कर 12 घंटे करने का नादरशाही फ़रमान सुना दिया। कॉर्पोरेट घरानों दंडवत प्रणाम जैसी मुद्रा में झुकते हुए मज़दूरों को अपनी आँखें दिखायीं। इसके साथ ही यह भी एक बार फिर ज़ाहिर हो गया कि यह सरकार मज़दूरों और गरीबों का खून चूसने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी।
इन बर्बर नीतियों के खिलाफ सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के आवहान पर, इंटक, एटक, सीटू एवम् सी टी यू ने चार लेबर कोड बिल अर्थात् सामाजिक सुरक्षा कोड 2020, औद्योगिक संबंध कोड 2020, वेतन कोड 2020 और व्यावसायिक, सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य संहिता कोड 2020 की प्रतियां जलाईं। उनके कार्यकर्ता भारत नगर चौक के पास पंजाबी भवन के बाहर सड़क पर बड़ी संख्या में एकत्र हुए, जहाँ उन्होंने पहले मोदी सरकार के खिलाफ नारे लगाए और बाद में रैली निकाली। यह प्रदर्शन डेढ़ दो घंटे तक चला। बरसात शुरू होने बावजूद जोश जारी रहा। रैली को संबोधित करते हुए, प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया कि कॉरपोरेट घरानों के दबाव में मोदी सरकार सैकड़ों साल पुराने कानूनों को खत्म कर रही है, जिन्हें लंबे संघर्ष के बाद श्रमिकों और कर्मचारियों द्वारा प्राप्त किया गया था।उन्होंने कहा कि श्रमिकों के 40 श्रम कानूनों को समाप्त किया जा रहा है और 4 कोड में परिवर्तित किया गया है, जिसने श्रमिकों को यूनियनों के गठन का अधिकार, विरोध का अधिकार, महंगाई भत्ता, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार काम के घंटे का अधिकार और अन्य लाभ दिए हैं। प्रथम फरवरी को पेश किया गया बजट यह स्पष्ट करता है कि यह बजट कॉरपोरेट घरानों के लाभ के लिए है और गरीबों और आम आदमी के पूरी तरह से विरुद्ध है। सरकार अपने निजीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है और आमदनी के लिए सरकारी संपत्ति बेच रही है। वक्ताओं ने तीन काले खेती कानूनों को निरस्त करने के लिए पिछले छह महीने से चल रहे किसानों के आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने बिजली बिल 2020 वापस लेने को कहा। बढ़ती पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों पर चिंता जताई गई। अन्य लोगों में चरन सराभा, गुरजीत सिंह जगपाल, रमेश रतन,बलदेव मोदगिल, विजय कुमार,चमकौर सिंह ,गुरमेल मेलडे , एम एस भाटिया, परमजीत सिंह, केवाल सिंह बनवेैत , तिलक राज डोगरा, बलराम, रछपाल सिंह , सुरिंदर सिंह बैंस तथा अन्यों ने भी रैली को संबोधित किया।
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