20th June 2020 at 5:52 PM
भाकपा की राज्य कार्यकारिणी के बैठक में लिए गए कई अहम फैसले
चंडीगढ़//लुधियाना: 20 जून 2020: (एम एस भाटिया//कार्तिका सिंह//कामरेड स्क्रीन)::
कोरोना और लॉक डाउन के चलते छाई सहम भरी ख़ामोशी को सफलता पूर्वक तोड़ने के बाद अन तीखे जन आंदोलनों का बिगुल भी बजा दिया है। पैट्रोल डीज़ल की कीमतों में गत 13 दिनों से हो रही वृद्धि, यूपी सरकार की तरफ से पंजाबी किसानों को उजाड़ने का दमनचक्र, भाजपा सरकार की फाशीवादी नीतियों के अंतर्गत बढ़ रहे हमले, लोकतान्त्रिक और मानवी अधिकारों की बात करने वाले कार्यकर्ताओं की ग्रिफ्तारियां इत्यादि ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर बोलना आम लोग भूल चुके हैं। स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या शिक्षा का हालत बेहद बुरी है। देश की प्रभुसत्ता और अखंडता की रक्षा का मुद्दा, शहीद हुए बहादुर सैनिकों का मुद्दा, किसान विरोधी तीन आर्डिनेंस वापिस करवाने का संघर्ष, मनरेगा क्षेत्र की समस्याएं और मांगे और ऐसे बहुत से मुद्दे जिन आवाज़ बुलंद करने की बात एक साजिश के अंतर्गत सपना बन चुकी है उन सभी मुद्दों को उठाएगी अब सीपीआइ। पूरा सप्ताह चलेगा रोष एक्श्नों का यह सिलसिला जो दमन का सहारा लिए चल रही सत्ता को हिला कर रख देगा।
सीपीआई की पंजाब इकाई के सचिव कामरेड बंत सिंह बराड़ भी इस बैठक में शामिल होने के लिए विशेष तौर लुधियाना स्थि पार्टी कार्यालय में पहुंचे। अध्यक्षता की पूर्व विधायक कामरेड हरदेव अर्शी ने। गौरतलब है की कोरोना संकट और लॉक डाउन के चलते यह बैठक साढ़े तीन महीनों के बाद हो सकी। शहीद करनैल सिंह ईसड़ू भवन में इस बैठक को बाकायदा सैनेटाईज़र का इस्तेमाल करने के बाद आयजित किया गया। सोशल डिस्टेंस
के नियम की पालना भी की गई। इस बैठक के फैसले कामरेड बंत सिंह बराड़ ने मीडिया को जारी किये। कामरेड डीपी मौड़ ने बैठक शुरू होने से पहले ही अपनी देखरेख में हाल को पूरी तरह सैनेटाईज़ किया।
पार्टी के प्रांतीय सचिव कामरेड बंत सिंह बराड़ ने इस बैठक में राष्ट्रिय मुद्दों के साथ साथ पंजाब की गंभीर साथी पर भी चिंता व्यक्त की। कोविड-19 को लेकर स्थिति और भी भयानक हुई। उन्होंने कहा कि इस बेहद नाज़ुक स्थिति के बावजूद प्रवासी मज़दूरों की सहायता के लिए सीपीआई के सभी यूनिटों ने जो सक्रियता दिखाई उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये वह कम है। ह वह स्थिति थी जब ज़िंदगी जीना कठिन हो गया था। इस तरह की भयानक स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों ने जो मुजरमाना लापरवाही दिखाई उसे हमेशां काळा अक्षरों में लिखा जाएगा। इस पर तुरंत और तीव्र प्रतिक्रिया करते हुए 9 वाम दलों ने ज़ोरदार रोष प्रदर्शन किये। ट्रेड यूनियन और श्रमिक अधिकारों पर किये गए हमलों का मुँहतोड़ उत्तर दिया जिसने सारे संसार को दिखा दिया की कोरोना और लॉक डाउन की आड़ में यह सरकार श्रमिकों के साथ क्या क्या करने की हद तक जा सकती है। इसके साथ ही उन लोकतान्त्रिक कार्यकर्ताओं की रिहाई की भी आवाज़ उठाई गई जिन को मानवी अधिकारों की बात करने पर जेलों में ठूंस दिया गया। सड़कों पर पैदल चलते मज़दूरों के साथ साथ अपने गांव जाने को तरस रहे मज़दूरों के दर्द पर भी सीपीआई खुल कर सामने आई।
इसी बैठक में लद्दाख सीमा पर गलवान घाटी को लेकर हुए घटनाक्रम पर भी चर्चा हुई। देश की प्रभुसत्ता और अखंडता की रक्षा के शहीद हुए 20 सैनिकों को भी श्रद्धा सुमन अर्पित किये गए। गौरतलब है की इन २० सैनिकों में से चार सैनिक पंजाब के मानसा, संगरूर, पटियाला और गुरदासपुर के हैं।
सीपीआई ने इस बात को गंभीरता से लिया है कि इन सैनिकों को बिना हथियारों के सीमा पर चीन किसने से लड़ने के लिए भेजा गया। फिर इस बात कई दिनों तक दबाया गया छुपाया गया। सीपीआई ने इस सारे निंदनीय घटनाक्रम की तीखे शब्दों में आलोचना की है। सीपीआई ने कहा कि पूरी हालत जनता रखी जाये। साथ ही भारत और चीन दोनों सरकारों से मांग की गई कि सीमा के झगड़ों का समाधान बातचीत के ज़रिये निकाला जाये।
इन सभी मुद्दों पर चर्चा करते हुए सीपीआई की एग्ज़ेक्युटिव कमेटी मीटिंग ने मीडिया को भी अड़े हाथों लिया। पार्टी ने कहा देश में गोदी मीडिया जिस तरह तीसरी विश्व जंग को भड़काने के मकसद की खबरें और रिपोर्टें दिखा रहा है वह एक गहरी साज़िश है। हम इस मानवता विरोधी साज़िश पर भी नज़र रख रहे हैं।
कार्यकारिणी की बैठक में मौजूद वाम नेतायों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से बुलाई गई सर्व दलीय बैठक में शामिल होने को लेकर जो मतभेद दिखाया है वह निंदनीय है। यह बेहद दुखद है कि चार सांसदों दिल्ली की सरकार के मुख्य मंत्री पर काम करती आम आदमी पार्टी को आमंत्रित ही नहीं किया गया। इसी तरह चार सांसदों वाली आर जे डी को भी नहीं बुलाया गया। तीन सांसदों और केरल सरकार में भागीदार सीपीआई को भी नहीं बुलाया गया। लेकिन दूसरी रफ चार सांसदों वाली पार्टी अकाली दाल को बुलाया गया। (सुखदेव ढींडसा पार्टी से बाहर हैं) सीपीआई ने कहा कि हमें इस बात का एतराज़ नहीं अकाली दाल को क्यों बुलाया गया। हमें ेराज़ यह है कि देश की दहलीज़ पर खड़ी दस्तक दे रही जंग, 20 सैनिओं के शहीद होने और 10 के कैदी बने होने के नाज़ुक सवालों पर भी महत्वपूर्ण दलों को विचार विमर्श से बाहर रखा गया।साफ़ ज़ाहिर है कि इतनी बड़ी बहुसंख्या होने के बावजूद केंद्र सरकार सैद्धांतिक स्टैंड लेने वाली पार्टियों के विरोधी सुर से डरती है और इस तरह के वक़्त में भी निमंत्रण देने में मतभेद का काम लेती है। यह पक्षपात पूरी दुनिया ने देखा और इसे भारत की जनता याद भी रखेगी।
बिना कोई योजना बनाये लॉक डाउन और कर्फ्यू जैसे आदेशों को भी सीपीआई ने निशाने पर रखा। करोड़ों मज़दूरों को बेरोज़गार करने, उन्हें घर से बेघर करने, उन्हें सड़कों पर हज़ारों मील पैदल चलने को मजबूर करने, उन्हें भूखों मारने और्व राहत के नाम पर सारा धन मज़दूरों का नाम ले कर अपने लोगों के हवाले करने के सारे घटनाक्रम की उच्च सत्रीय जांच की भी मांग की।
इसके आलावा यूपी में उजाड़े जा रहे पंजाबी किसानों का मुद्दा भी मीटिंग में गहनता से विचारा गया। ये वही पंजाबी किसान हैं जिन्होंने बंजर ज़मीनों को दशकों तक मेहनत करके उपजाऊ बनाया। बेहद दुखद है कि इस अतिमहत्वपूर्ण मुद्दे पर भी अकालीदल अपनी कुर्सियों से चिपका हुआ है और इस मामले पर लोलो पोपो करके बेहद निंदनीय भूमिका निभा रहा है। किसान विरोधी आर्डिनेंसों की भी इस भाकपा बैठक में तीखी आलोचना हुई। सीपीआई ने कहा कि एम एस पी से पीछे हटने के कुप्रासों का हम विरोध करते हैं और करते रहेंगे। बैठक ने कहा कि यह आर्डिनेंस किसानों को कार्पोरेटी मगरमच्छ के मुँह में डाल देंगें। ऐसे में एम एस पी का मिलना नामुमकिन हो जायेगा। इस बैठक में किसान संगठनों के संघर्ष का समर्थन भी किआ गया।
इसी कार्यकारिणी बैठक में 8 जुलाई को पंजाब के 9 वाम दलों के संघर्ष का भी ज़ोरदार समर्थन किया। सीपीआई ने अपने सभी यूनिटों से कहा कि मौके की नज़ाकत को देखते हुए कोविड-19 की शर्तों का भी पालन करें। सभी पहलुओं को देखते हुए अन्य पार्टियों के सम्पर्क और सहयोग में रहते हुए अपने अपने एक्शन करें।
इसी बैठक में 3 जुलाई को अखिल भारतीय स्तर की ट्रेड यूनियनों की तरफ से श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए, ठेका प्रबंधों को समाप्त करने के लिए, न्यूनतम वेतन में वृद्धि, मनरेगा वर्करों के अधिकारों की रक्षा, आशा वर्करों स्कीम वर्करों के वेतन बढ़ाने के लिए हर वर्कर के कहते में 7500/- रूपये डालने के लिए और अन्य मांगों के लिए किये जा रहे अखिल भारतीय स्तर के रोष एक्शन का भी समर्थन किया। इन रोष प्रदर्शनों में भाग लेने को भी कहा गया।
इसी कार्यकारिणी बैठक में कहा गया कि माइक्रो फाईनांस कम्पनीआं जो गरीबों को क़र्ज़ देने के मामले में अब गड़बड़गहताला कर रही हैं। इस धक्केशाही को बंद कराया जाये। नीले कार्डों के मुद्दे पर लोगों के साथ हो रहे मतभेद को भी बंद करने की मांग की गई। बिजली के बढ़ाये गए रेट भी वापिस लेने की बात कही गई। डीज़ल-पैट्रोल के हर रोज़ बढ़ रहे भावों पर भी चिंता व्यक्त की गई और इसकी निंदा हुई। इनके खिलाफ जन अभियान की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिए गया।
बैठक में उन सभी कामरेड साथियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किये गए जो हाल ही के दिनों में हमसे हमेशां के लिए बिछड़ गए। इस मौके पर सर्वश्री कामरेड ईशर सिंह दलेर सिंह वाला, अमरनाथ, नौनिहाल सिंह, गुरबख्श मुल्लां, प्यारा सिंह राओ-के-कलां, मिहर सिंह बद्दोवाल और सुखराज कौर भी श्रद्धांजलि दी गई।
कोरोना काल में लॉक डाउन के कारण लम्बे अंतराल के बाद हुई इस बैठक में 24 प्रमुख कामरेड साथियों ने अपने विचार व्यक्त किये। इनमें कामरेड राज्य सचिव-कामरेड बंत सिंह बराड़ के साथ साथ पूर्व विधायक-हरदेव अर्शी, डाक्टर जोगिंदर दयाल, निर्मल धालीवाल, भूपिंदर सांबर, हरभजन सिंह, पृथीपाल माड़ीमेघा, अमरजीत आसल, सुखदेव शर्मा, कुलदीप भोला, लखबीर निजामपुरा, डीपी मौड़, रमेश रत्न, कृष्ण चौहान, गदाईयां, कुलवंत मौलवीवाला, गुलज़ार सिंह, मैडम कुशल भौरा इत्यादि भी शामिल रहे।
अब देखना है कि सीपीआई का यह संघर्ष केंद्र और राज सरकारों को कितनी बड़ी चुनौती देने में सफल रहता है।
Comrade screen is doing good job by posting views of progressive patriotic forces to serve the cause of people and country. Keep up. I wish Screen to advance fearlessly.
ReplyDeleteThanks and best wishes for its Editor and staff.