Tuesday, May 5, 2020

मार्क्सवाद: कल्लन आज भी इन सब बातों से अनजान है

मार्क्सवादियों ने भी इस खूबसूरत विचार को एक धंधा बना दिया है 
- भैया ये मार्क्सवाद क्या है?
- इसके लिए कुछ आसान से सवालों के जवाब देने होंगे।  दोगे ?
- हां भैया।  बिल्कुल। 
- अच्छा, बताओ..हमारे देश में एक तरफ अम्बानी जैसे अमीर हैं तो दूसरी तरफ कल्लन जैसे गरीब हैं। क्या ये अमीर गरीब की खाई मिटनी नहीं चाहिए?
- बिल्कुल मिटनी चाहिए भैया। 
- यही तो है मार्क्सवाद। 
- ओह!
- अब ये बताओ, कल्लन फैक्ट्री में मजूरी करता है। वह रोज 5 हज़ार का सामान बनाता है जो मार्किट में 8 हज़ार का बिकता है। इस तरह 3 हज़ार मालिक को मुनाफा मिलता है. यानी महीने में कुल 90 हज़ार का मुनाफा मालिक को मिलता है। लेकिन कल्लन को तनखाह कितनी मिलती है? केवल  7 हज़ार रुपये। बाकी 83000 मालिक का!  क्या कल्लन को अपनी मेहनत के बदले 40,000 भी नहीं मिलना चाहिए? अच्छा छोड़ो, 40 नहीं तो उसका चौथाई 10 हज़ार तो मिलना चाहिए। लेकिन नहीं मिलता। उतना भी पाने के लिए उसे हड़ताल करनी पड़ती है जिसमें उसकी 3-4 दिन की पगार कट जाती है। ये सब बंद कर के कल्लन को कम से कम 50, 60 , 70, नहीं तो आधा यानी 40 हज़ार तो पगार मिलना चाहिए कि नहीं चाहिए?
- भैया बिल्कुल मिलना चाहिए। यह तो उसका अधिकार है। 
- यही तो है मार्क्सवाद। 
- अच्छा!
- अब अगले सवाल का जवाब दो। कल्लन को पढ़ाई लिखाई पसंद थी। वह पढ़ने में बहुत तेज था। टीचर बनना चाहता था। लेकिन उसे गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वह फैक्ट्री मज़दूर बन गया। क्या उसे टीचर बनने का अधिकार और इसके लिए सरकार की ओर से सुविधा मिलनी चाहिए थी कि नहीं चाहिए थी?
- भैया, बिल्कुल मिलना चाहिए थी। सरकार हमारे भले के लिए ही तो होती है। 
- बिल्कुल। यही तो है मार्क्सवाद।
- अच्छा अब ये बताओ.. क्या ये दुनिया ऐसी नहीं होनी चाहिए, जहां न कोई अमीर हो, न कोई गरीब हो, बल्कि सब एक बराबर हो। सबको ढंग का रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, पर्यावरण आदि मिले। जहां देश- प्रदेश का बंटवारा न हो, सीमा को लेकर झगड़े न हों। जहां पूरी दुनिया ही अपना घर हो।
- बिल्कुल होना चाहिए भैया। इससे तो दुनिया बेहद खूबसूरत हो जाएगी।
- बस, यही तो है मार्क्सवाद!
- अब ये बताओ कि अगर किसी अच्छे और समाज के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति को ऐसी दुनिया बनाने के लिए लड़ना भिड़ना पड़े, आंदोलन करना पड़े, विरोध करना पड़े तो क्या उसे पीछे हट जाना चाहिए? या डटे रहना चाहिए। 
- भैया डटे रहना चाहिए। मैं तो कहता हूं, जान लगा देनी चाहिए।
- तुम समझ गए। यही तो है मार्क्सवाद!
- भैया मार्क्सवाद तो बहुत अच्छी चीज है। फिर लोग इसे बुरा क्यों समझते हैं? आम लोग इससे दूर क्यों हैं ?
- वो इसलिए हैं क्योंकि अमीर और सत्ताधारी बुरे हैं और उनसे भी बुरे हैं मार्क्सवादी। वो समाज के हित की बजाय अपना हित साधने में लगे हैं। उन्हें विद्वान और धनवान बनना है। उन्होंने एक खूबसूरत विचार को धंधा बना दिया है और अब वो भी अमीरों की तरह फलफूल रहे हैं। इसीलिए। 
- और कल्लन? कल्लन क्या कर रहा है। 
- वो तो इन सब बातों से अनजान है। वो आज भी वहीं फैक्ट्री में मजूरी करता है। 
(मार्क्स बाबा को प्रणाम पहुंचे। आज उनकी जयंती है।) 
Pradyumna Yadav के फेसबुक प्रोफाईल से साभार 

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