Thursday, April 30, 2020

कोरोना के इस बेबसी युग से और मज़बूत होगी मज़दूर लहर

घुटन के दौर में मई दिवस के शहीदों को सलाम अब और ज़ोरदार होगी  
वापिस जाने को आतुर यह लचर मज़दूर ट्रेड यूनियन संगठन एटक की शरण में आए (29 अप्रैल 2020 की दोपहर)
लुधियाना: 29 अप्रैल 2020: (एम एस भाटिया//मीडिया लिंक रविंद्र//कामरेड स्क्रीन):: 
मज़दूर बच्चे कब तक जियेंगे इस तरह की ज़िंदगी?
अभी बहुत सी मांगों का संघर्ष चल रहा था। कहीं धरना, कहीं प्रदर्शन और कहीं मीटिंग। हर रोज़ मज़दूरों के  हकों पर पड़ रहे छापों का जवाब देना आसान नहीं था लेकिन हम सभी लोग हर सम्भव जवाब दे रहे थे। शाहीन बाग़ आंदोलन की बुलंदी भी हमारे सभी दुश्मनों को अखर रही थी। कुल मिला कर दिक्क्तें पहले ही कम न थीं लेकिन कोरोना ने तो हम पर वज्रपात किया। मज़दूरों के संघर्ष की राहों में कड़े हुए इन नए पर्वतों की चर्च खुद मज़दूरों और उनके स्थानीय लीडरों ने की। 
मार्च महीने के आखिरी दिनों की वो याद अभी भी बाकी है। जब मुसीबतों के इस दौर की शुरुआत हुई उस दिन वार सोमवार था और 23 मार्च की तारीख थी। हमारे शहीदे आज़म भगत सिंह और उसके साथियों का शहीदी दिवस जिसे हम पहली बार सही ढंग से मना भी न सके। हमारे मज़दूर साथी काम की शिफ्ट लगाते रह गए। उन्हें न कोई अख़बार पहुंची न ही किसी दुसरे तरीके से कोई ख़ास खबर। उन्हें काम में उलझाए रखा गया।मालिकों ने सारी जानकारी का फायदा उठाया और सोचा कि लगातार शिफ्टें लगवा कर बस अपना काम निकलवा लें। जब तक हमारे इन मज़दूर भाइयों बहनों को कुछ समझ आ पाता तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लॉक डाउन शुरू हो चुका था और जिन फैक्ट्री/कारखानों में हम काम करते थे उनके मालिक दरवाज़ों को ताले लगा कर जा चुके थे। न हमें वेतन मिला था न ही कोई और राहत बस सीधे सीधे कोरोना की मुसीबत से हमें निपटना था। कोरोना जो अपने साथ हमारे लिए भूखमरी का एक सिलसिला ले कर आया था। घरों में मौजूद एक आध दिन के राशन से उतना ही गुज़ारा चला। इसके बाद हमें होश आया कि हम तो बहुत बड़े संकट में फंस गए। एक तरफ कोरोना--दूसरी तरफ कर्फ्यू और घर में बैठें तो भूख का दानव। 
बिहार से आया ताज मोहम्मद अन्सारी भी एटक की शरण में 
उस दौर में हमारे लाल झंडे वाले साथी ही काम आये। जिससे जो बन पड़ा उसने दिया। एक छोटा सा फंड एकत्र हुआ। उससे राशन खरीदा गया और भूख के संकट में हमारे कुछ साथियों को कुछ राहत मिली। 
लेकिन इससे कितनों का गुज़ारा होता? कब तक होता? सैंकड़ों परिवार पहली लिस्ट में ही सामने आये। बहुत ही मुश्किल से उनके घरों में एक सप्ताह तक का राशन पहुंचाया गया। इसी बीच सीपीआई ने अपने एक वाटसऐप ग्रुप में इस समस्या को रखा। कुछ नज़दीकी कामरेडों पर भी डोनेशन के लिए ज़ोर दिया गया। कुछ और राशन भी खरीदा गया। कम से कम एक सप्ताह का राशन कुछ और घरों में पहुंचाया गया। लेकिन कमी अब भी बहुत थी। सैंकड़ों ऐसे परिवार भी सामने आये जिनका सीधा संबंध न कम्युनिस्ट पार्टी से था न ही पार्टी की किसी ट्रेड यूनियन से। इसके बावजूद उन्हें भी गले लगाया गया। लाल झंडे वालों ने उन्हें लावारिस नहीं छोड़ा। मज़दूर और उसका परिवार भूखा न मरे इस लिए उनके लिए भी इंतज़ाम किया गया। अपने फंड से यह सारा काम होना मुश्किल था। इस मकसद के लिए कुछ सामाजिक संगठन भी आगे आये और कुछ धार्मिक संगठन भी।रेलवे कॉलोनी में स्थित सावन कृपाल आश्रम ने विशेष योगदान दिया। कुछ जैन परिवार भी इस मकसद के लिए सक्रिय सहयोगी बने। भीषण मंदी के इस दौर में दिलचस्प बात यह भी कि उन थानों की पुलिस ने भी हमें सक्रिय सहयोग दिया जिसने कामरेडों के धरने प्रदर्शन नज़दीक से देखे थे और कई बार तो तल्खी का माहौल भी बना था। पुराने विरोध और अन्य तकरारों को भूल कर पुलिस के उन अच्छे अधिकारीयों ने भी मज़दूरों के लिए पके पकाये भोजन का प्रबंध कराया। इस तरह कोरोना के साथ भी हमारी जंग जारी है। 
इस जंग के दौरान हमारे दुश्मन जो हरकतें कर रहे हैं उन पर भी हमारी पूरी नज़र है। हम एक एक बात का हिसाब करेंगे। फिलहाल बात कल मई दिवस की। इस बार मई दिवस पर जगह जगह--घर घर में झंडे लहराए जायेंगे। मई दिवस के शहीदों को सलाम ही पूरे सम्मान के साथ कही जाएगी। 
एटक के स्थानीय नेता कामरेड रमेश रत्न और विजय कुमार ने भी कहा कि न तो हम मज़दूरों की आवाज़ को दबने देंगें और न ही घुटने देंगें। इस बार का मई दिवस पहले से भी अधिक जोशो खरोश के साथ मनाया जायेगा। मज़दूरों के घरों की छतों और आंगनों में लहराएगा लाल झंडा। 
जिन लोगों को लगता है कि कोरोना के शोर में मज़दूरों के साथ होने वाले अन्याय को छुपा लेंगें वे लोग बहुत बड़ी गलतफ़हमी में हैं। हमन पहले भी बहुत सी मुसीबतें झेली हैं और विजयी हो कर निकले हैं। इस बार भी फतह हमारी ही होगी। जिन फैक्ट्रियों में काम शुरू हो चुका है वहां के गेटों पर मई दिवस का झंडा लहराया जायेगा। शहीदों की गाथा से सभी को सुनाई जाएगी तांकि वही जोश फिर से कायम हो।
उन्होंने कहा कि सरकारों को देश भर में फंसे मज़दूरों तक सरकारी वितरण प्रणाली के मुताबिक राशन पहुंचाना चाहिए। गोदामों में अनाज सड़े इससे अच्छा है उसे ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचा दिया जाये। पहला अनाज गोदामों में सड़ रहा है और अब तो नई फसल भी मंडी में आ गई है। गरीबों के लिए अनाज भंडारों के मुंह खोल दिए जाने चाहियें। दुःख की बात है की बड़े बड़े अमीरों से टेक्स लेने की बजाये गरीबों के वेतन काटे जा रहे हैं।  
एटक नेताओं ने यह भी मांग की कि दिहाड़ीदार मज़दूरों के खातों में छह छह हज़ार रूपये बिना किसी देरी के के तुरंत डाल दे। 
ब्यान जारी करने वालों में एम एस भाटिया, गुरमेल मैलडे, केवल सिंह बनवैत और अवतार सिंह छिब्बर भी शामिल हैं। 
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