यह कैसा भारत है जहाँ खून पानी हो रहा
तब ट्रेक्टर और किसान नोट पर था-अब ट्रेक्टर और किसान रोड पर है-#जय_जवान_जय_किसान
रूस में इंकलाब आया तो सब कुछ बदल गया। काफी देर तक बदला रहा। वहां भी खुली हवाओं ने अपना रंग नहीं दिखाया वहां सब कुछ लाला स्लैम के रंग जैसा ही रहा। रूस के उस इंकलाब को आज भी अक्टूबर इंकलाब के नाम से याद किया जाता है। कैलेंडर बदलते रहते हैं शायद इनको भी इंसान की नज़र लग गई है। अक्टूबर इंकलाब की तारीख आज भी बदले हुए कैलंडर के कारण सात नवंबर को आती है। इसी तारीख को याद अत है हमारे यहाँ सच्चा इंकलाब कब आएगा? रीतू कलसी कम्युनिस्ट पार्ट की सदस्य भी नहीं। किसी ट्रेड यूनियन की सदया भी नहीं लेकिन उसकी कलम बहुत कुछ याद करवाती रहती है। मन चाहता है इस बार सात नवंबर को रीतू कलसी की कलम से कुछा कहा जाए। प्रस्तुत है एक काव्य रचना जो बहुत कुछ याद दिला रही है। -रेक्टर कथूरिया।
रीतू कलसी गंभीर चिंतन के मूड में
जो खुद थे मवाली
वह दूसरे पर लगाने लगे इल्ज़ाम।
अभी और क्या-क्या देखना सुनना बाकी है।
देखते जाएं आगे-आगे
अभी पिक्चर बाकी है।
हर फिल्म में होती है बुराई पर अच्छाई की जीत।
इसी आस पर जीते जाते हैं
रब्ब करेगा सब ठीक
इसलिए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
हमे नहीं करना विरोध
हमे नहीं आना नज़रों में
हमारे घर न जल जाएं कहीं
इसलिए आँख कान मुँह बंद कर के बैठना है।
रोटी के पड़े चाहे हमे सौ लाले
पर घर से हमें नहीं निकलना है
सच के साथ तो खड़े ही नहीं होना।
बस झूठ की जय जय करनी है।
रामायण-महाभारत को भूल गए हम
पर हिंदुत्व की बात सब के मुख पर है
यह कैसा भारत है जहाँ खून पानी हो रहा
जो जाना जाता था भगत सिंह से,
बाल गंगाधर से , मंगल पांडे से
रानी लक्ष्मीबाई, गुलाब कौर, किटटूर रानी चेन्नम्मा
सभी को भूल गए
तो अब
शर्म से मर जाना चाहिए हम सभी को
--रीतू कलसी
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