भाकपा(माले) ने की पद्मश्री वापिस लेने की मांग
पद्मश्री टवीट |
नई दिल्ली: 25 नवंबर 2021: (कामरेड स्क्रीन ब्यूरो)::
कंगना रनौत के बयान से पैदा हुई नाराज़गी निरंतर बढ़ती ही जा रही है। देश की आज़ादी और स्वतंत्रता का इस तरह खुलेआम अपमान होने के बावजूद सत्ता ने उसके खिलाफ कोई ऐसा एक्शन नहीं लिया जो लिया जाना चाहिए था। इस मुद्दे को लेकर सी पी आई एम एल लिबरेशन भी खुल कर सामने आई है। पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे लेकर सत्ता को भी आड़े हाथों लिया है और कंगना को भी। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्मश्री प्राप्त करने के तुरंत बाद अभिनेत्री और भाजपा समर्थक खेमे की प्रमुख हस्ती-कंगना रनौत ने घोषित कर दिया कि 1947 में जो देश ने हासिल की, वह तो महज भीख थी और असल आज़ादी 2014 में आई जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए। कंगना मैडम ने यह बात टाइम्स नाउ द्वारा आयोजित कॉन्क्लेव में कही (गौरतलब है कि यह चैनल भी मोदी सरकार के पक्ष पोषण करने के प्रति समर्पित चैनलों में से एक है) यानि कि गोदी मीडिया का ही हिस्सा है।
पार्टी के बयान ने यह भी याद दिलाया है कि कंगना रनौत का बयान हालांकि अफ़सोसजनक है पर यह आरएसएस द्वारा आज़ादी के आंदोलन के दौरान और आज़ादी के तत्काल बाद अभिव्यक्त भावनाओं के साथ ही आरएसएस के संस्थापक विचारक गोलवलकर के इन विचारों से मेल खाता है, जिसमें वे घोषित करते हैं कि स्वाधीनता आंदोलन के शहीद असफल लोग हैं और उनको आदर्श नहीं माना जाना चाहिए। गोलवलकर ने तो यहां तक कहा कि आज़ादी का ब्रिटिश विरोधी दृष्टिकोण “विनाशकारी” है. आज़ादी के वक्त आरएसएस ने तिरंगे झंडे और संविधान के प्रति भी घोर अवमाननाकारी दृष्टिकोण प्रदर्शित किया और इनके बजाय भगवा झंडे व मनुस्मृति को अपनाने की मंशा जाहिर की। आर एस एस की सोच और इरादे कंगना के बयान में भी झलक रहे हैं।
पार्टी ने कंगना के बयान का गहन विश्लेषण भी किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कंगना रनौत के लिए औपनिवेशिक ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता अवमाननाकारी है। लगता है कि आज़ादी का मतलब वे समझती हैं- मॉब लिंचिंग की आज़ादी, कट्टरता व रूढ़िवाद की अभिव्यक्ति व प्रसार की आज़ादी और आरएसएस के खानपान, पहनावे,धर्म और आचार-व्यवहार संबंधी विचारों को बेहद हिंसक तरीके से पूरे देश पर थोपना। इस तरह इस बयान में बहुत कुछ छुपा है जो ज़ाहिर हुआ है।
सीपीआई एम एल लिबरेशन ने “अमृत महोत्सव” मनाने का भी गंभीर नोटिस लिया है। देश की आज़ादी और उसके शहीदों का अपमान करने के लिए केंद्र सरकार को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए कि वह, कंगना रनौत का पद्मश्री वापस ले ले। सरकार एक तरफ आज़ादी का “अमृत महोत्सव” मनाने का दावा करे और दूसरी तरफ ऐसे लोगों को प्रश्रय और सम्मान दे जो भारत की आज़ादी और आज़ादी के आंदोलन का अपमान करे, ये दोनों बातें एक साथ तो नहीं चल सकती।
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