"बुकलेट" और ‘सदी की त्रासदी, सत्ता का झूठ’ फिल्म का विमोचन
भाकपा (माले) ने कोविड त्रासदी को लेकर लगाए सत्ता पर खुले आरोप
बुकलेट और फिल्म का लोकार्पण भी किया
कोविड दौर में हुई मौतों को छुपाने के खेल का पर्दाफाश, सरकार ने किया है जनसंहार
माले महासचिव सहित पटना के प्रख्यात चिकित्सकों ने किया बुकलेट का लोकर्पण
सर्वे बुकलेट व कोविड पीड़ितों पर आधारित फिल्म स्वास्थ्य आंदोलन की सामग्री
माले महासचिव ने बिहार में स्वास्थ्य अधिकार आंदोलन के निर्माण का किया आह्वान
पटना: 13 अगस्त 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::
कोविड की त्रासदी के दौरान जब लोग बेबस से हो गए थे उस समय बहुत कुछ ऐसा हुआ जो आम जनता के सामने नहीं आ सका। भाकपा माले से सबंधित लोगों की टीम ने इस संबंध में गहरी छानबीन की। उस जांच के दौरान जो तथ्य पार्टी के हाथ लगे उनको एक पुस्तक और फिल्म ले रूप में संजोया गया है। पार्टी ने पुस्तक और फिल्म दोनों ही लोकार्पण कर दी हैं।
विगत दो महीने से बिहार के कई जिलों में भाकपा-माले द्वारा जारी कोविड की दूसरी लहर के दौरान मारे गए लोगों की सूची को आज अंतिम रूप से जारी कर दिया गया है। 13 जिलों में आयोजित इस सर्वे पर आधारित मौतों के आंकड़ों और मृतक परिजनों से बातचीत के आधार पर ‘कोविड की दूसरी लहर का सच’ बुकलेट का लोकर्पण व ‘सदी की त्रासदी, सत्ता का झूठ’ नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन किया गया।
आज माले विधायक दल के कार्यालय में आयोजित आज के इस कार्यक्रम में माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, पटना के जाने-माने चिकित्सक डॉ. सत्यजीत सिंह, आइएमए के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पीएनपीपाल, पर्यावरण कार्यकर्ता रंजीव कुमार, माले के राज्य सचिव कुणाल, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर आदि लोगों ने बुकलेट का लोकार्पण किया. इस मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वेदश भट्टाचार्य, प्रभात कुमार, महबूब आलम, मनोज मंजिल, अमर, मीना तिवारी आदि भी उपस्थित थे। बहुत से ने लोगों ने भी इसमें भाग लिया।
आज के आयोजन में मेडिकल क्षेत्र से सबंधित लोग भी शामिल हुए। स्वस्थ बिहार-हमारा अधिकार विषय पर आयोजित आज के जनकन्वेंशन को माले नेताओं के साथ-साथ चिकित्सकों, आशा कार्यकर्ताओं व पार्टी विधायकों ने भी संबोधित किया।
आज के इस विशेष आयोजन में माले महासचिव ने साफ़ शब्दों में कहा कि कोविड के दौर में हमने जो कुछ झेला, जो उसे महसूस किया, उसे आंदोलन का मुद्दा बना देना है। सरकार इसे मुद्दा बनने नहीं देना चाहती है। सरकार इस प्रचार में लगी है कि लोगों को वैक्सीन मिल गया, तो सरकार को धन्यवाद किया जाए। कह रहे हैं कि कुछेक लोगों का मर जाना कौन सी बड़ी बात है। वे प्रचारित कर रहे हैं कि मोदी जी ने देश को बचा लिया। इस झूठ को बेनकाब करना बेहद ज़रूरी है और हम यह काम कर रहे हैं।
हमारी रिपोर्ट बताती है कि मौत का आंकड़ा सरकारी आंकड़ा से कम से कम 20 गुना अधिक है. ये कहना अब बेमानी है कि इतनी मौतें कोविड के कारण हुई, दरअसल ये मौतें सरकार की लापरवाही के कारण है। यह जनसंहार है। जब लोगों के ऑक्सीजन की जरूरत थी, सरकार ने ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं करवाया। कोविड की पहली लहर के बावजूद भी सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने की कोई कोशिश नहीं की। अस्पताल होते तो इतने व्यापक पैमाने पर मौतें नहीं हुई होती। सरकार ने कुछ किया ही नहीं। बल्कि उलटा काम किया।
सरकार ने हमें जो पीड़ा पहुंचाई है, उसका बदला लेना है और स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर ज़ोरदार आंदोलन करना है। लोगों को मुआवजा मिले और इस तरह के जनंसहार न हो, इसके लिए हमें हर स्तर पर तैयार रहना है। ये बुकेलट व फिल्म आंदेलन की सामग्री है। आंदोलन खड़ा करने का हथियार हैं। इसे व्यापक पैमाने पर शेयर किया जाना चाहिए।
इस आयोजन ने बहुत से स्थानीय लोगों को भी आकर्षित किया। इस मौके पर डॉ. सत्यजीत ने कहा कि शिक्षा व स्वास्थ्य किसी भी देश के लोगों की बुनियादी जरूरत है। कई देशों में रिमोट एरिया तक में यह व्यवस्था बहुत बेहतर है, लेकिन हमारे यहां लगातार निजी हाथों में जा रहा है। आज के जन सम्मेलन से हमें उम्मीद है कि अब व्यवस्था सुधरने वाली है। स्वास्थ्य पर बजट का 6 प्रतिशत खर्च होना चाहिए। इस तरफ ध्यान दिया जाना बहुत आवश्यक है।
पीएनपीपाल ने कहा कि आज देश में शिक्षा-स्वास्थ्य-ट्रांसपोर्ट इत्यादि को लेकर सभी सरकार का एक ही कांसेप्ट है। ये लोग कॉरपोरट को बढ़ावा दे रहे हैं। आशा कार्यकर्ता अनुराधा कुमारी, सुरेश चंद्र सिंह, आशा कार्यकर्ताओं की नेता शशि यादव, विधायक मनोज मंजिल ने भी अपने वक्तव्य रखे।
इसके पूर्व माले विधायक कुणाल ने विषय प्रवेश रखा था. उन्होंने अपने संबोधन में कोविड आंकड़ों की चर्चा की. कहा कि हमारे द्वारा जांचे गए गांव बिहार के कुल गांवों के 4 प्रतिशत होते हैं. इनमें ही 7200 कोविड से हुई मौतों का आंकड़ा है, जबकि बिहार में तकरीबन 50 हजार छोटे-बड़े गांव हैं. इसलिए मौत का वास्तविक आंकड़ा सरकारी आंकड़े के लगभग 20 गुना से अधिक 2 लाख तक पहुंचता है। हमारी टीम शहरों अथवा कस्बों की जांच न के बराबर कर सकी है। यदि हम ऐसा कर पाते तो जाहिर है कि यह आंकड़ा और अधिक हो जाएगा।
कोविड लक्षणों से मृतकों में 15.47 प्रतिशत लोगों की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई। महज 19.91 प्रतिशत ही कोविड जांच हो पाई। इस तरह 80.81 प्रतिशत मृतकों की कोई जांच ही नहीं हो पाई, जो कोविड लक्षणों से पीड़ित थे। इसी से अनुमान लग जाता है कि साज़िश कितनी गहरी थी।
कुल मृतकों के आंकड़े में 3957 लोगों ने देहाती, 2767 लोगों ने प्राइवेट व महज 1260 लोगों ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। यह आंकड़ा साबित करता है कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था किस कदर नकारा साबित हुई है और लोगों का विश्वास खो चुकी है। इन मृतकों में महज 25 लोगों को मुआवजा मिल सका है। हाल के दिनों में मुआवजा की संख्या में कुछ वृद्ध हुई होगी।
ये आंकड़े कोविड पर सरकार द्वारा लगातार बोले जा रहे झूठ को बेनकाब करते हैं. यदि इसके प्रति सरकार और हम सब गंभीर नहीं होते हैं, तो आखिर किस प्रकार संभावित तीसरे चरण की चुनौतियां से निबट पायेंगे?
आज के जनकन्वेंशन का संचालन ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने किया।
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