सुबह तीन बजे बस स्टैंड पर पहुंचते हैं एम एस भाटिया साथियों को लेकर
लुधियाना: 18 मई 2020: (पीपुल्ज़ मीडिया लिंक टीम)::
कामरेड एम एस भाटिया |
वाम के पास साधन संसाधन बेहद कम हैं और ज़िम्मेदारियां सबसे अधिक। ऐसे में वाम के लोग न गर्मी देख रहे हैं और न ही बारिश। लॉक डाउन शुरू हुआ तो उनका पहला प्रयास था कि कहीं भी कोई मज़दूर भूखा न रह जाये। इस मकसद के लिए स्थानीय स्तर पर फंड बनाये गए और इस कुलेक्शन से राशन खरीदा गया। कुछ दिन तो इसी तरह चला लेकिन इसके बाद समस्या फिर भी विकराल होती चली गयी।
अनाज कम था और मज़दूरों की संख्या बहुत ही ज़्यादा। बहुत से मज़दूर घबरा कर अपने घरों की तरफ ही पैदल चल पड़े। अच्छे दिनों के सब्ज़बाग देखते देखते लम्बी इंतज़ार कर चुके बेचारे इन गरीब मज़दूरों को स्वतंत्र भारत में पहली बार इतने बुरे दिन देखने पड़े। कहीं मज़दूरों को रेलगाड़ी ने कुचल दिया और कहीं बसों ने और कहीं पर वे तर्क हादसों का शिकार हो गए। मज़दूरों को लाख समझाया गया कि इस तरह पैदल मत निकलो लेकिन वे नहीं माने।
उनका कहना था कि रेल और बसों में बैठने के लिए बिचौलिए इतने इतने पैसे मांगते हैं कि वे किसी भी तरह नहीं दे सकते। मजबूरी और बेबसी में यह नई तरह का शोषण था जो सरकारी दावों को ठेंगा दिखाते हुए सबके सामने घटित हो रहा था। लुधियाना में सी पी आई के स्थानीय नेता डाक्टर अरुण मित्रा, डीपी मौड़, रमेश रत्न और अन्य लोगों ने इसे बहुत ही गंभीरता से लिया। कामरेड चमकौर सिंह और कामरेड विजय कुमार ने फील्ड से ग्राउंड रिपोर्ट भी ला कर दी। अब मज़दूरों को सुरक्षित घर भेजने का काम कार्यसूची में पहले स्थान पर आ गया। काम बेहद मुश्किल था। जगह जगह घूमना आसान न था।
डयूटी लगाई गयी वाम पत्रकार कामरेड एम एस भाटिया की। श्री भाटिया पंजाब स्क्रीन मीडिया के साथ साथ दैनिक नवां ज़माना (जालंधर) के लिए भी कार्य करते हैं। डयूटी लगने पर उन्होंने ठान लिया की अब किसी मज़दूर को शोषण का शिकार नहीं होने देना। प्रशासन ने भी उन्हें सहयोग दिया।
आज सुबह जब वह लुधियाना के बस स्टैंड पर गए तो वहां मज़दूर भारी संख्या में मौजूद थे। उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सभी नियमों की जानकारी परिपक्व कराते हुए पंक्तियों में बिठाया गया। उनकी टिकट कटवाई और रास्ते के लिए भोजन का प्रबंध भी किया।
इस सारी प्रक्रिया की तस्वीरें भी हमें श्री भाटिया ने ही क्लिक करके भेजी। स्थान है लुधियाना का बस स्टैंड और समय है आज सुबह 6:44 की हैं। इस मकसद के लिए कामरेड एम एस भाटिया, दफ्तर के निगरान कामरेड रामचंद और अन्य साथी सहयोगी सुबह तीन बजे ही बस स्टैंड पर पहुंच गए थे। इन्होने भी जाने के लिए तैयार बैठे मज़दूरों को भरे दिल से देखा।
इधर मज़दूर भी उदासी में थे। अपनी कर्मभूमि से अपनी जन्मभूमि की तरफ भीगी आंखों के साथ जाते हुए मज़दूरों के चेहरों पर जाने की ख़ुशी भी है। उन्हें लगता है शायद वहां उनके गांव में बहुत खुशहाली होगी लेकिन यह भी तो उनकी गलतफ़हमी ही है। जब तक मज़दूरों का अपना शासन नहीं आता तब तक उसकी ज़िंदगी में इसी तरह की मुश्किलें लिखीं हैं। इसलिए किस्मत को अब खुद लिखना होगा। -रेक्टर कथूरिया
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