National Communist Party की Wall से साभार 26 दिसंबर 2019 को सुबह 7:03 पर पोस्ट किया
जानिए डिटेंशन सेंटर का इतिहास
यह तस्वीर Refugee History से साभार जोड़ी गई है |
रिसर्च डेस्क. डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) सुर्खियों में हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा कि, डिटेंशन सेंटर बनाए जाना एक सतत प्रक्रिया है। अगर कोई विदेशी नागरिक पकड़ा जाता है, तो उसे डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाता है। दुनिया में डिटेंशन सेंटर का इतिहास बहुत पुराना है। कहीं इन्हें नजरबंदी शिविर, कहीं यातना केंद्र, कहीं इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर तो कहीं कंसन्ट्रेशन कैंप कहा जाता है। नाजी कंसन्ट्रेशन कैंप यहूदियों को यातना देने के लिए जाने गए तो चीन के शिविर उइगर मुस्लिमों को वहां रखने से चर्चा में आए। जानिए डिटेंशन सेंटर का इतिहास।
डिटेंशन सेंटर क्या होते हैं
डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) ऐसे ठिकाने होते हैं, जहां अवैध विदेशी नागरिकों को रखा जाता है। भारत के दि फॉरेनर्स एक्ट के सेक्शन 3(2)(सी) के तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि, वह किसी भी अवैध नागरिक को देश से बाहर निकाल सकती है। देश से बाहर करने की प्रॉसेस के दौरान ऐसे लोगों को डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाता है।
फ्रांस में शुरू हुआ दुनिया का पहला डिटेंशन सेंटर
यूएस के फ्रीडमफॉरइमिग्रेंट्स के मुताबिक, दुनिया का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर (जो सिर्फ अवैध नागरिकों को रखने के मकसद से ही तैयार किया गया था) 1892 में यूएस के न्यू जर्सी में शुरू किया गया। जिसका नाम एलिस आइलैंड इमिग्रेशन स्टेशन था।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, फ्रांस में 17वीं और 18वीं सदी में बेसिले नामक जगह पर बने किले को हिरासत केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। आठ टावरों वाला यह किला चारों तरफ से दीवार से घिरा हुआ था। फ्रांस के राजा चार्ल्स पंचम द्वारा 22 अप्रैल 1370 को इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था।
जिसमें पड़ोसी देशों से आए अप्रवासियों और युद्धबंदियों को रखा जाता था। इसे बेसिले सैंट-एंटोनी के नाम से भी जाना जाता है। 17वीं शताब्दी में कार्डिनल डे रिचर्डेल ने पहली बार बेसिले को जेल के तौर पर इस्तेमाल किया था।
दिलचस्प बात यह है कि इस डिटेंशन को बनाने वाले वास्तुकार ह्यूगेज ऑब्रिअट को भी इसी जगह पर नजरबंद करके रखा गया था। बाद में इस सेंटर को एक जेल बना दिया गया था। विशाल किले की तरह नजर आने वाले इस सेंटर में आठ टॉवरों के नाम थे- लॉ शैपेल, ट्रेसोर, कोमे, बिजिनरे, बेर्टाडिएरे, लिबर्टे, पुटिस और कॉइन। 16वीं सदी में इस जगह को तेजी से विकास हुआ।
इसके पास ही आधुनिक पेरिस शहर की नींव पड़ी और 17वीं सदी के शुरुआत तक यहां पर ढाई लाख लोग बस गए थे जो कि उस दौर के यूरोप की सबसे घनी बसाहट में से एक बन गया था।
यूएस में सबसे ज्यादा डिटेंशन सेंटर
1892 में दुनिया का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन केंद्र 'एलिस आइलैंड' यूएस के न्यू जर्सी में खोला गया।
1910 में यूएस के कैलिफोर्निया में दूसरा इमिग्रेशन डिटेंशन केंद्र 'एंजल आइलैंड इमिग्रेशन स्टेशन' शुरू हुआ।
1970 में यूरोप का पहला डिटेंशन सेंटर 'हार्डमंडवर्थ डिटेंशन सेंटर' इंग्लैंड में शुरू हुआ।
1982 में साउथ अफ्रीका में देश का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर शुरू हुआ। पहले यहां जेल में ही इमिग्रेंट्स को रखा जाता था। अफ्रीका में इस तरह का यह पहला सेंटर था।
2002 में क्यूबा में अमेरिका द्वारा अमेरिकी सैनिक अड्डे ग्वांतानामो बे को स्थापित किया गया। इस जगह को पहले पहले इमिग्रेशन डिटेंशन साइट के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता था।
2012 में इजरायल ने 10 हजार की क्षमता वाला होलोट डिटेंशन सेंटर शुरू किया।
2014 में यूएस में ओबामा प्रशासन ने फैमिली डिटेंशन को शुरू किया। नवंबर 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वहां निजी जेल उद्योग के स्टॉक्स में बढ़ोत्तरी हुई। यूएस में ओबामा प्रशासन के दौरान 3 मिलियन से ज्यादा लोगों को देश से बाहर निकाला गया।
इतिहास के पन्नों से तीन यातना केंद्रों की कहानी
9 लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया था
नाजी कंसन्ट्रेशन कैंप यहूदियों को यातना देने के लिए स्थापित किए गए थे। यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम के मुताबिक, जर्मनी ने आश्विच कंसन्ट्रेशन कैंप में ही 9 लाख 60 हजार यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया था। इतना भयंकर नरसंहार दुनिया में कहीं नहीं हुआ। कैंप में 7 हजार भूख से तड़पते कैदी जिंदा पाए गए थे। कैंप में बंद किए गए लाखों लोगों के जूतों, कपड़ों का अंबार यहां मिला था। 6500 किलो बाल मिले थे। 2013 में सामने आए एक शोध से पता चला था कि, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में 42 हजार से ज्यादा नाजी कैंप थे। अमेरिकी इतिहासकार मार्टिन डीन ने 2013 को डॉयचे वेले को दिए इंटरव्यू में कहा था कि, पूरे यूरोप में हजारों लोगों को नाजियों ने जबरदस्ती यातना शिविरों में भेजा। बंदियों का उत्पीड़न किया जाता था। लोग भुखमरी के शिकार थे। गैस चैम्बर में दम घोंटकर सामूहिक नरसंहार के मामले भी सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 30,000 कैंप केवल बंधुआ मजदूरों के लिए थे। इनके अलावा 1,150 शिविर यहूदियों के लिए थे, 980 यातना शिविर थे, 1,000 शिविर युद्ध कैदियों के लिए और 500 कैंप ऐसी महिलाओं के लिए थे जिन्हें देह व्यापार करने पर मजबूर किया गया।
दुनिया का नर्क कही जाती है अमेरिका की बनाई ग्वांतानामो बे
क्यूबा स्थित ग्वांतनामो बे को सबसे खतरनाक जेल कहा जाता है। डायचे विले की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्वांतानामो बे के कैदियों के लिए गर्मी के मौसम में तापमान और बढ़ा दिया जाता है, सर्दियों में खून जमा देने वाले हालत पैदा कर दिए जाते हैं और कंबल छीन लिए जाते हैं। कंटीले तारों और टूटे हुए शीशे से शरीर गोदा जाता है और कभी कभी सिगरेट से बदन दाग दिया जाता है। यातना का ऐसा स्तर कम से कम किसी जेल में नहीं देखा गया है।मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे धरती का नर्क बताते हैं और कहते हैं कि मीडिया और वकील को तो छोड़िए, वहां तक आम सैनिक भी नहीं पहुंच सकता किसी जमाने में क्यूबा और हैती से आने वाले शरणार्थियों को ग्वांतानामो बे के नौसैनिक अड्डे पर इसी डिटेंशन सेंटर में रखा जाता था। बाद में इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान और इराक युद्ध के खतरनाक कैदियों को रखने के लिए किया जाने लगा।
चीन में 10 लाख से ज्यादा उइगर मुस्लिम नजरबंद, इन पर हर तरह का प्रतिबंध
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पैनल के मुताबिक इस बात की विश्वसनीय रिपोर्ट्स हैं कि चीन ने 10 लाख उइगर मुसलमानों को खुफिया शिविरों में कैद कर रखा है। अमेरिकी सरकार का आकलन है कि अप्रैल, 2017 से चीन में उइगुर, कजाक और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के 8 लाख से 20 लाख सदस्यों को नजरबंदी शिविरों में अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन शिविरों में नमाज सहित अन्य धार्मिक रीतियों पर प्रतिबंध है। चीन सरकार उइगरों की मस्जिदें तोड़ रही है। बच्चों को माता-पिता से अलग किया जा रहा है। कुछ शोधकर्ताओं ने इसे ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ बताया है। हाल में अमेरिका ने उइगरों के साथ अमानवीयता को लेकर चीन के अधिकारियों को वीजा देने पर रोक लगा दी थी।
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