वोह सुबह ज़रूर आएगी और बहुत जल्द आएगी !
इंटरनेट की दुनिया:26 फरवरी 2025:
(Post with AI with some input by कामरेड स्क्रीन डेस्क//Images by Meta AI)::
AI अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी इसे लेकर संक्षिप्त सी बात की गई। AI ने लेनिन के इस कथन को लेकर कहा है कि यह कथन कि "आप सफ़ेद दस्ताने पहनकर क्रांति नहीं कर सकते" एक प्रसिद्ध कथन है जो उनकी विचारधारा और क्रांति के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह कथन उन्होंने कब और किस पुस्तक में कहा, इसका निश्चित रूप से पता लगाना मुश्किल है, लेकिन यह उनके लेखों और भाषणों के समग्र संदर्भ में समझा जा सकता है।
लेनिन का यह कथन संभवतः उस समय के संदर्भ में कहा गया था जब रूस में क्रांति की तैयारी चल रही थी। उस समय कई लोग थे जो क्रांति के समर्थक थे, लेकिन वे केवल ऊपरी तौर पर बदलाव चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि समाज में कोई गहरा परिवर्तन हो। लेनिन का मानना था कि ऐसे लोग क्रांति को सफल नहीं बना सकते। क्रांति के लिए जरूरी है कि लोग अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ दें और एक नए समाज के निर्माण के लिए तैयार रहें।
लेनिन के इस कथन को आज के वामपंथ में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। वामपंथी मानते हैं कि क्रांति केवल तभी सफल हो सकती है जब लोग पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों। उन्हें अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ना होगा और एक नए समाज के निर्माण के लिए एकजुट होना होगा।
लेनिन का यह कथन आज भी प्रासंगिक है। यह हमें याद दिलाता है कि क्रांति केवल तभी सफल हो सकती है जब लोग पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों। उन्हें अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ना होगा और एक नए समाज के निर्माण के लिए एकजुट होना होगा।
अब जबकि कॉर्पोरेट का प्रभाव शिखरों पर है चीन और रूस भी इससे अछूते नहीं रहे तब क्या आज के दौर में लेनिनवाद और वाम का प्रभाव कम हो रहा है क्या
यह एक जटिल प्रश्न है जिसका सीधा जवाब देना मुश्किल है। यह सच है कि कॉर्पोरेट का प्रभाव आज दुनिया भर में बढ़ रहा है, और चीन और रूस भी इससे अछूते नहीं हैं।
लेनिनवाद और वामपंथ पर प्रभाव को स्वीकार तो किया जाता है कि यह प्रभाव कम हुआ है। प्रभाव कम होने के कारण भी चर्चा में हैं।
इन कारणों में से एक कारण है वैश्वीकरण: वैश्वीकरण के कारण दुनिया भर में पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ा है। अब करीब हर कोने में पहुँच चुका है वैश्वीकरण।
एक और बड़ा कारण रहा है सोवियत संघ का पतन: सोवियत संघ के पतन के बाद लेनिनवाद और वामपंथ की प्रतिष्ठा को धक्का लगा है। इसे दुनिया भर में नोट भी किया गया है।
इसके साथ ही आर्थिक विकास भी वाम के प्रभाव को कम करने मेंसहायक रहा। कई देशों में आर्थिक विकास होने के कारण लोगों का ध्यान गरीबी और असमानता जैसे मुद्दों से हट गया है।
इस सब के बावजूद वाम का प्रभाव बिलकुल खत्म नहीं हुआ है। यह प्रभाव अभी भी मौजूद है। इसे मानने वाले और इसे चाहने वाले अभी भी बहुत बड़ी संख्या में हैं।
वाम को लगातार बढ़ती हुई असमानता मज़बूती भी दे रही है। जब तक असमनत है तब तक वाम की ज़रूरत महसूस की जाती रहेगी। इसे हटाने के लिए शायद और कोई रास्ता भी नहीं है। दुनिया भर में बढ़ती असमानता के कारण वामपंथ के विचारों को अभी भी समर्थन मिल रहा है। असमानता के खिलाफ वाम ही रास्ते दिखा रहा है।
वाम का ज़ोर और प्रभाव अब भी दिखता है सामाजिक आंदोलनों पर। कई सामाजिक आंदोलनों में वामपंथी विचारधारा का प्रभाव अभी भी आम देखा जा सकता है।
जहां तक चीन और रूस का सवाल है तो चीन और रूस में अभी भी कम्युनिस्ट पार्टियां सत्ता में हैं।
कुल मिला कर अभी भी लोगों को वाम और वाम की विचारधारा से आशाएं बनी हुई हैं। यह कहना सही नहीं होगा कि लेनिनवाद और वामपंथ का प्रभाव पूरी तरह से कम हो गया है। आज भी कई लोग हैं जो वामपंथी विचारधारा में विश्वास करते हैं और सामाजिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि कॉर्पोरेट के बढ़ते प्रभाव के कारण वामपंथ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वाम में कई गुट होने के बावजूद मार्क्स और लेनिन में उनकी आस्था पूरी तरह से मज़बूत है। वे अभी भी मार्गदर्शन के लिए कार्ल व्लादिमीर लेनिन के विचारों की ही चर्चा और अध्ययन करते हैं। कुछ गट माओवाद, स्टालिन ट्रॉटस्की से भी प्रेरणा लेते हैं लेकिन इन सभी को इस बात का अटूट विश्वास है कि क्रान्ति आ कर रहेगी।
वाम की एकता और मार्गदर्शन सभी वामपंथी संगठनों के बौद्धिक प्रतिनिधियों को आगे आना ही चाहिए। आप सभी के विचारों की इंतज़ार इस मंच पर भी रहेगी।
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