Friday, December 5, 2025

फिर करवट ले रहा है रूस-भारत मैत्री का लंबा इतिहास

From LS Hardenia Friday 5th December 2025 at 10:37 AM Regarding India Russia Friendship//Comrade Screen 

बदल गया है पूर्व के विरोधी आरएसएस खेमा का रूख


एल.एस. हरदेनिया//गुरुवार, 4 दिसम्बर 2025:

द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने देश को महान सफलता दिलवाने और युद्ध की समाप्ति के बाद सोवियत संघ के सर्वमान्य नेता मार्शल स्टालिन की मृत्यु हुई थी। भारतीय लोकसभा में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि मार्शल स्टालिन एक ऐसे नेता थे जो शांति में भी बड़े नेता थे और युद्ध में भी।

सोवियत संघ से हमारी मैत्री का एक बहुत लंबा इतिहास है। जब 1917 में सोवियत क्रांति हुई तब हमारे देश के लगभग सभी नेताओं ने उसका स्वागत किया था और उसे दुनिया के इतिहास में एक नया अध्याय बताया था। क्रांति के बाद भी सोवियत संघ से हमारे संबंध जारी रहे। स्वतंत्रता के पूर्व पंडित जवाहरलाल नेहरू कई बार सोवियत संघ गए। भारत के अनेक संगठन-जिनमें कम्युनिस्ट पार्टियां, भारत-सोवियत मैत्री संघ आदि शामिल थे- सोवियत संघ की प्रशंसा करते थे और सोवियत क्रांति को मानवता के इतिहास का एक नया अध्याय बताते थे।

इस दरम्यान जहां हमारे देश के अनेक संगठन सोवियत संघ से मित्रता की बात करते थे तो कुछ ऐसे व्यक्ति और संगठन भी थे जो सोवियत संघ से भारत की मैत्री के विरेधी थे। अमरीका-समर्थक एक बहुत बड़ी लॉबी भारत में काम करती थी जिसमें कई बुद्धिजीवी शामिल थे। वे सोवियत संघ से मैत्री के विरोधी थे। विरोधियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और तत्कालीन जनसंघ भी शामिल थे। वे सतत यह दावा करते रहते थे कि नेहरू जी के नेतृत्व वाली सरकार सोवियत संघ की गोद में बैठ गई है।

इस प्रचार के बावजूद हमारी मैत्री कायम रही और जब बांग्लादेश के प्रश्न को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बनने लगे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ के साथ 20 साल की मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि में यह प्रावधान भी शामिल था कि यदि भारत पर कोई देश आक्रमण करता है तो सोवियत संघ हमारी मदद करेगा और यदि सोवियत संघ पर कोई आक्रमण करता है तो हम सोवियत संघ की मदद करेंगे। इस संधि का भी भारत में कुछ लोगों ने विरोध किया। सबसे बड़ा विरोध जनसंघ की ओर से किया गया। जनसंघ के नेता सोवियत संघ से दोस्ती के विरोधी रहे हैं।

यह विरोध तब तक चलता रहा जब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी पहले विदेश मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वे भोपाल आए हुए थे। भोपाल में पत्रकारवार्ता में हम लोगों ने उनसे पूछा कि आपका अब सोवियत संघ के साथ भारत के संबंधों के बारे में क्या विचार है? तो उन्होंने कहा कि सोवियत संघ से मैत्री इज़नॉननेगोशियेबल (सोवियत संघ से मैत्री पर किसी भी प्रकार की चर्चा जरूरी नहीं है)। सोवियत संघ हमारा मित्र है।

इस मित्रता का मुख्य कारण यह था कि सोवियत संघ ने हमारे देश को कई बड़े कारखाने दिए, रक्षा उपकरण दिए और हमारे साथ कई संधियां कीं। सोवियत संघ की मदद से सबसे पहले भिलाई में इस्पात संयंत्र स्थापित किया गया। उसके बाद अनेक बड़े-बड़े कारखाने स्थापित करने में सोवियत संघ ने हमारी मदद की। फिर यह मदद बिना किसी शर्त के होती थी। सोवियत संघ से मिलने वाली मदद को हैल्पविथनोस्ट्रिंग कहते थे - बिना किसी शर्त की सहायता।

अब देश में एक लंबे समय से कांग्रेस की सरकार नहीं है। सन् 2014 में माननीय नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी। लोग सोचते थे कि नरेन्द्र मोदी सोवियत संघ से मैत्री पूरी तरह तोड़ देंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ और उतनी तो नहीं पर काफी हद तक सोवियत संघ से हमारी मैत्री कायम रही। सोवियत संघ के विघटन और वहां कम्युनिस्ट सरकार के पतन के बाद सोवियत संघ को अब रूस कहा जाता है। रूस से भी हमारी मैत्री कायम रही। इसी मैत्री के प्रतिस्वरूप वहां के सर्वोच्च नेता ब्लादिमीर पुतिन हमारे देश आए हुए हैं। उनका भी लगभग वैसा ही स्वागत किया जाएगा जैसे जब सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन था तब वहां हमारे नेताओं का स्वागत होता था।

रूस से हमारे संबंधों का सबसे बड़ा कारण है हथियार। जो हथियार हमको रूस से मिलते हैं वे हमारी बड़ी ताकत है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि यह ताकत कायम रहेगी। जब सोवियत संघ था तब वह दुनिया में शांति स्थापित करने की बात करता था और उसके लिए उसका नेतृत्व और साहित्य उपलब्ध रहता था। आज भी जो वैश्विक स्थिति बनी हुई है उसमें रूस और भारत की मैत्री कायम रहेगी, पुतिन की यात्रा इसका स्पष्ट सुबूत है।(संवाद)

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