मंगलवार 30 जुलाई 2024 शाम 4:52 बजे
BDPO कार्यालय चौमन ब्लॉक मालूद पर एटक द्वारा विशाल धरना
मलौद: 30 जुलाई 2024: (एमएस भाटिया//कॉमरेड स्क्रीन डेस्क)::
जानामाना, पुराना और मज़बूत मज़दूर संगठन "एटक" एक बार फिर मैदान में है। इस बार विरोध का निशाना नरेगा मजदूरों पर की जा रही दबंगई है। कर्मचारियों का आरोप है कि यह बदमाशी सरकार के इशारे और दादागिरी पर की गई है। संघर्ष चला रहे जुझारू नेताओं का कहना है कि सरकार के इशारे पर नरेगा कर्मियों व मेटों के साथ की जा रही बदमाशी बर्दाश्त नहीं की जायेगी। ये विचार कामरेड कश्मीर सिंह गदायिया, नरेगा रोज़गार प्राप्त मजदूर यूनियन (एटक) की तरफ से संगठनात्मक शक्ति के साथ दिया जाएगा। इन विचारों को एटक से और भाकपा से जुड़े नेता कामरेड डीपी मौड़, एटक के जिला महासचिव मनिंदर सिंह भाटिया और नेताओं ने मालोद में धरने को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। यह हड़ताल नरेगा मजदूरों ने की थी। गौरतलब है की श्री मौड़ सीपीआई के ज़िला सचिव हैं।
इन नेताओं ने कहा कि 2005 में कम्युनिस्ट पार्टियों की मदद से नरेगा अस्तित्व में आया, इस अधिनियम के माध्यम से गांव के मैनुअल मजदूर को 100 दिन का काम मिल सकता है, लेकिन हमें अफसोस के साथ कहना होगा कि बहुत कम गांवों को 100 दिन का काम मिलता है। पंजाब में ऐसे कई बीडीपीओ ब्लॉक होंगे जहां रोजगार चाहने वाले श्रमिकों का आवेदन ही दाखिल नहीं किया जाता। इस तरह इन श्रमिकों की मानसिक प्रताड़ना भी की जाती है और आर्थिक शोषण तो हो ही रहा है। इस रवैये ने कितनी कठिन बना दी है इन मज़दूरों की ज़िन्दगी।
इन नेताओं ने कहा कि अधिकांश बीडीपीओ ब्लॉक कार्यालय श्रमिकों के आवेदन दर्ज नहीं करते हैं। कर्मचारियों को उपस्थिति के लिए अपने बीच से ही एमईईटी का चयन करना होता है, लेकिन अधिकारी शाही सरकार के निर्देश पर अपने चहेतों पर एमईईटी थोप रहे हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए भगवान सिंह, जोरा सिंह, गुरमेल सिंह मेहली बलजीत सिंह सीहान डोड नरेगा नेताओं ने कहा कि बीडीपीओ कार्यालय मलोद के अधिकारी श्रमिकों के आवेदन पंजीकृत नहीं करते हैं और न ही नियुक्ति पत्र देते हैं। अगर इन अधिकारियों का रवैया ऐसा ही रहा तो बीडीपीओ दफ्तर मलूद के बाहर भी जोरदार मोर्चा लगाया जाएगा। इस धरने को अवतार सिंह मलकीत सिंह रामगढ, लाभ सिंह, हरबंस सिंह रब्बो, हरबंस सिंह ने भी संबोधित किया।
अब देखना होगा कि सरकार इन कर्मचारियों की जायज मांगों को जल्द मानती है या फिर इन कर्मचारियों को कड़ा संघर्ष करने पर मजबूर करती है।
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