कम्युनिस्ट हर लड़ाई अपनी पूरी ताक़त के साथ लड़ते हैं।
एक सांघातिक रोग है मेटास्टैटिक कैंसर -- मैं जानती हूँ
इसलिए मैं लड़ रही हूँ इसके विरुद्ध अपनी सम्पूर्ण इच्छाशक्ति के साथ।
मैं अभी भरपूर जीना चाहती हूँ और मुझे विश्वास है
कि मेरी जिजीविषा मृत्यु को परास्त कर देगी
और अगर ऐसा न भी हुआ
तो भी मैं यह तो सिद्ध कर ही दूँगी
कि सच्चे क्रान्तिकारी न तो कठिन समय के सामने
हथियार डालते हैं, न ही मौत के सामने
कातर होकर आत्मसमर्पण करते हैं।
तो भी मैं यह तो सिद्ध कर ही दूँगी
कि सच्चे क्रान्तिकारी न तो कठिन समय के सामने
हथियार डालते हैं, न ही मौत के सामने
कातर होकर आत्मसमर्पण करते हैं।
मुझे भरोसा है अपनी संकल्पशक्ति और युयुत्सा पर
और मैं जानती हूँ कि मुझे यह जंग जीतकर
फिर उस मोर्चे पर वापस लौटना है
जिस पर ताज़िन्दगी तैनात रहने का
अपनी आत्मा से करार है।
इसलिए, पूरी सम्भावना है कि मेरी इस आख़िरी इच्छा का,
मेरे इस वैचारिक वसीयतनामे का
कल कोई मतलब ही न रह जाये,
लेकिन पूरी बहादुरी से लड़ने के बावजूद,
अन्तिम साँस तक, एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह,
हारना ही पड़े अगर कहीं मुझको,
तो उस सूरत में यह अन्तिम-इच्छा पत्र
मैं अपने कामरेडों-दोस्तों के नाम छोड़ना चाहती हूँ।
और मैं जानती हूँ कि मुझे यह जंग जीतकर
फिर उस मोर्चे पर वापस लौटना है
जिस पर ताज़िन्दगी तैनात रहने का
अपनी आत्मा से करार है।
इसलिए, पूरी सम्भावना है कि मेरी इस आख़िरी इच्छा का,
मेरे इस वैचारिक वसीयतनामे का
कल कोई मतलब ही न रह जाये,
लेकिन पूरी बहादुरी से लड़ने के बावजूद,
अन्तिम साँस तक, एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह,
हारना ही पड़े अगर कहीं मुझको,
तो उस सूरत में यह अन्तिम-इच्छा पत्र
मैं अपने कामरेडों-दोस्तों के नाम छोड़ना चाहती हूँ।
मैं जानती हूँ, कैंसर को पराजित करना ही है मुझे।
मेरे कामरेडों का प्यार और दर्द मेरे साथ है।
मुझे लौटना ही है पूँजी के विरुद्ध जारी युद्ध में
अपने मोर्चे पर, आने वाली पीढ़ियों की ख़ातिर।
फिर भी यदि ऐसा न हो सका,
तो मेरे साथी इस बात का पूरा ख़्याल रखेंगे
कि मेरे शरीर को छू न सकें उनके गन्दे हाथ
जिन्होंने हमारे लाल झण्डे पर गन्दगी फेंकी
जिन्होंने हड्डियाँ गलाकर खड़े किये गये
हमारे प्रयोगों को कुत्सा-प्रचारों से लांछित और कलंकित किया,
जिन्होंने 'जनचेतना' और हमारे प्रकाशनों को
मुनाफ़ा कमाने का उपक्रम बताया, सच्चाई जानते हुए भी।
मेरे शरीर के आसपास भी फटकने नहीं चाहिए
वे कीड़े, जिन्होंने अपने पतन को ढँकने के लिए
हम पर तरह-तरह की घृणित तोहमतें लगायीं और कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी कतारों के बीच
अविश्वास का ज़हरीला धुआँ फैलाने की भरपूर कोशिश की।
कठिन समय में धुआँ छोड़ते हुए भागकर माँदों में घुस जाने वाले
भगोड़े न जाने किस मुँह से सिद्धान्तों की दुहाई देते हैं।
कुछ ऐसे भी पतित अवसरवादी हैं जो अपनी अहंतुष्टि के लिए
और पेट पालने के लिए अभी भी राजनीतिक दुकानें चलाते हैं।
ये घृणित लोग मौत और बीमारी को भी राजनीतिक हथियार बनाकर
हम लोगों को निशाना बनाते रहे हैं।
मेरा धनपशु पिता भी इसी गिरोह में शामिल है
जो अपने वर्गीय अहं और निहित स्वार्थों के चलते
अन्धा होकर हमारे कामों को नुकसान पहुँचाने की
हर सम्भव कोशिश करता रहा है,
उसकी भी अपनी वर्गीय प्रतिबद्धता है
और वह कभी भी नहीं बदलेगा।
साथियो! ऐसे लोग कत्तई नहीं आयें
मेरे निष्प्राण शरीर के निकट भी,
इसका ध्यान आप सबको रखना होगा,
यह मेरी आख़िरी इच्छा है।साथियो! मैं जन्म से मज़दूर की बेटी नहीं हूँ।
मैं एक सूदख़ोर, व्यापारी, भूस्वामी, परजीवी
धनपशुओं के परिवार में पैदा हुई।
कम्युनिज़्म की भावना जैसे-जैसे समझ में आयी,
मैंने ख़ुद को मज़दूर की बेटी समझने की कोशिश की,
मज़दूर की तरह क्रान्ति के मोर्चे पर खटने की कोशिश की।
नहीं जानती मैं कितना कर्ज़ उतार पायी हूँ जनता का,
कितना पाप धो पायी हूँ पूर्वजों का --
इसका फ़ैसला मेरे बाद के लोग करेंगे।
मैं बस इतना भरोसा दिला सकती हूँ
कि घर-वापसी का ख़्याल मेरे दिल में कभी नहीं आया,
तूफानों से पीछे हटकर
घोंसला बनाने का विचार मुझे कभी नहीं भाया।
एक आम कम्युनिस्ट की तरह
मेरी भी रही हैं सहज मानवीय कमज़ोरियाँ,
और पृष्ठभूमि से अर्जित कुछ वर्गीय कमज़ोरियाँ भी।
मेरे कामरेडों का प्यार और दर्द मेरे साथ है।
मुझे लौटना ही है पूँजी के विरुद्ध जारी युद्ध में
अपने मोर्चे पर, आने वाली पीढ़ियों की ख़ातिर।
फिर भी यदि ऐसा न हो सका,
तो मेरे साथी इस बात का पूरा ख़्याल रखेंगे
कि मेरे शरीर को छू न सकें उनके गन्दे हाथ
जिन्होंने हमारे लाल झण्डे पर गन्दगी फेंकी
जिन्होंने हड्डियाँ गलाकर खड़े किये गये
हमारे प्रयोगों को कुत्सा-प्रचारों से लांछित और कलंकित किया,
जिन्होंने 'जनचेतना' और हमारे प्रकाशनों को
मुनाफ़ा कमाने का उपक्रम बताया, सच्चाई जानते हुए भी।
मेरे शरीर के आसपास भी फटकने नहीं चाहिए
वे कीड़े, जिन्होंने अपने पतन को ढँकने के लिए
हम पर तरह-तरह की घृणित तोहमतें लगायीं और कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी कतारों के बीच
अविश्वास का ज़हरीला धुआँ फैलाने की भरपूर कोशिश की।
कठिन समय में धुआँ छोड़ते हुए भागकर माँदों में घुस जाने वाले
भगोड़े न जाने किस मुँह से सिद्धान्तों की दुहाई देते हैं।
कुछ ऐसे भी पतित अवसरवादी हैं जो अपनी अहंतुष्टि के लिए
और पेट पालने के लिए अभी भी राजनीतिक दुकानें चलाते हैं।
ये घृणित लोग मौत और बीमारी को भी राजनीतिक हथियार बनाकर
हम लोगों को निशाना बनाते रहे हैं।
मेरा धनपशु पिता भी इसी गिरोह में शामिल है
जो अपने वर्गीय अहं और निहित स्वार्थों के चलते
अन्धा होकर हमारे कामों को नुकसान पहुँचाने की
हर सम्भव कोशिश करता रहा है,
उसकी भी अपनी वर्गीय प्रतिबद्धता है
और वह कभी भी नहीं बदलेगा।
साथियो! ऐसे लोग कत्तई नहीं आयें
मेरे निष्प्राण शरीर के निकट भी,
इसका ध्यान आप सबको रखना होगा,
यह मेरी आख़िरी इच्छा है।साथियो! मैं जन्म से मज़दूर की बेटी नहीं हूँ।
मैं एक सूदख़ोर, व्यापारी, भूस्वामी, परजीवी
धनपशुओं के परिवार में पैदा हुई।
कम्युनिज़्म की भावना जैसे-जैसे समझ में आयी,
मैंने ख़ुद को मज़दूर की बेटी समझने की कोशिश की,
मज़दूर की तरह क्रान्ति के मोर्चे पर खटने की कोशिश की।
नहीं जानती मैं कितना कर्ज़ उतार पायी हूँ जनता का,
कितना पाप धो पायी हूँ पूर्वजों का --
इसका फ़ैसला मेरे बाद के लोग करेंगे।
मैं बस इतना भरोसा दिला सकती हूँ
कि घर-वापसी का ख़्याल मेरे दिल में कभी नहीं आया,
तूफानों से पीछे हटकर
घोंसला बनाने का विचार मुझे कभी नहीं भाया।
एक आम कम्युनिस्ट की तरह
मेरी भी रही हैं सहज मानवीय कमज़ोरियाँ,
और पृष्ठभूमि से अर्जित कुछ वर्गीय कमज़ोरियाँ भी।
मेरा यह दावा नहीं कि कभी मेरे भीतर
निराशा का कोई झोंका नहीं आया,
ऐसा भी नहीं कि साथियों से कभी कोई
शिकायत ही न रही हो,
फिर भी मैं विश्वास दिला सकती हूँ कि
मैं बेहतर कम्युनिस्ट बनने की कोशिशों में ही
सन्तोष और ख़ुशी हासिल करती रही हूँ,
मैं अपने साथियों को ही दुनिया में सबसे अधिक
प्यार करती हूँ और भरोसेमन्द मानती हूँ
और मैं अभी भी ज़िन्दगी से बेपनाह मुहब्बत करती हूँ
और ज़्यादा से ज़्यादा जीना चाहती हूँ।
इसीलिए, मुझे विश्वास है कि मेरी ही जीत होगी
मृत्यु के विरुद्ध मेरे इस संघर्ष में
कैंसर को हारना ही है मेरी कम्युनिस्ट संकल्पशक्ति के आगे।
लेकिन फिर भी एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह मैं तैयार हूँ
हर प्रतिकूल स्थिति का सामना करने के लिए
और इसीलिए अपनी यह हार्दिक इच्छा भी लिख दे रही हूँ
कि यदि मैं ज़िन्दगी की जंग हार जाती हूँ
तो मेरे पार्थिव शरीर को
हम लोगों के प्यारे लाल झण्डे में अवश्य लपेटा जाये
और फिर उसे वैज्ञानिक प्रयोग या ग़रीब ज़रूरतमन्दों को अंगदान के उद्देश्य से
किसी सरकारी अस्पताल या मेडिकल कालेज को
समर्पित कर दिया जाये।
इस पर अमल का दायित्व विधि अनुसार
दो कामरेडों को मैं सौंप जाऊँगी।
यदि किसी कारणवश यह सम्भव न हो सके
तो मेरा पार्थिव शरीर
मेरे कामरेडों के कन्धों पर विद्युत शवदाहगृह तक जाना चाहिए
और मेरा अन्तिम संस्कार
बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाज के,
इण्टरनेशनल की धुन और तनी मुट्ठियों के साथ होना चाहिए।
यह भी ध्यान रहे कि
ऐसा कोई भी पतित भगोड़ा इसमें शामिल नहीं होना चाहिए,
उसे मेरे पार्थिव शरीर के निकट भी नहीं आने देना होगा।
मैं जानती हूँ, जो आज कहते हैं कि
मेरा 'ब्रेनवॉश' कर दिया गया है (जो मेरे लिए सबसे बड़ी गाली है),
वही मेरी मृत्यु पर भी राजनीति करने से बाज़
निराशा का कोई झोंका नहीं आया,
ऐसा भी नहीं कि साथियों से कभी कोई
शिकायत ही न रही हो,
फिर भी मैं विश्वास दिला सकती हूँ कि
मैं बेहतर कम्युनिस्ट बनने की कोशिशों में ही
सन्तोष और ख़ुशी हासिल करती रही हूँ,
मैं अपने साथियों को ही दुनिया में सबसे अधिक
प्यार करती हूँ और भरोसेमन्द मानती हूँ
और मैं अभी भी ज़िन्दगी से बेपनाह मुहब्बत करती हूँ
और ज़्यादा से ज़्यादा जीना चाहती हूँ।
इसीलिए, मुझे विश्वास है कि मेरी ही जीत होगी
मृत्यु के विरुद्ध मेरे इस संघर्ष में
कैंसर को हारना ही है मेरी कम्युनिस्ट संकल्पशक्ति के आगे।
लेकिन फिर भी एक सच्चे कम्युनिस्ट की तरह मैं तैयार हूँ
हर प्रतिकूल स्थिति का सामना करने के लिए
और इसीलिए अपनी यह हार्दिक इच्छा भी लिख दे रही हूँ
कि यदि मैं ज़िन्दगी की जंग हार जाती हूँ
तो मेरे पार्थिव शरीर को
हम लोगों के प्यारे लाल झण्डे में अवश्य लपेटा जाये
और फिर उसे वैज्ञानिक प्रयोग या ग़रीब ज़रूरतमन्दों को अंगदान के उद्देश्य से
किसी सरकारी अस्पताल या मेडिकल कालेज को
समर्पित कर दिया जाये।
इस पर अमल का दायित्व विधि अनुसार
दो कामरेडों को मैं सौंप जाऊँगी।
यदि किसी कारणवश यह सम्भव न हो सके
तो मेरा पार्थिव शरीर
मेरे कामरेडों के कन्धों पर विद्युत शवदाहगृह तक जाना चाहिए
और मेरा अन्तिम संस्कार
बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाज के,
इण्टरनेशनल की धुन और तनी मुट्ठियों के साथ होना चाहिए।
यह भी ध्यान रहे कि
ऐसा कोई भी पतित भगोड़ा इसमें शामिल नहीं होना चाहिए,
उसे मेरे पार्थिव शरीर के निकट भी नहीं आने देना होगा।
मैं जानती हूँ, जो आज कहते हैं कि
मेरा 'ब्रेनवॉश' कर दिया गया है (जो मेरे लिए सबसे बड़ी गाली है),
वही मेरी मृत्यु पर भी राजनीति करने से बाज़
No comments:
Post a Comment