काव्य और क्रांति का सीधा सम्बन्ध सदियों पुराना है। क्रांति कब होगी अभी कुछ कहना उचित न होगा पर क्रांति की आवाज़ देता काव्य लगातार रचा जा रहा है। अभी हाल ही में बजट पर काव्य प्रतिक्रिया भी पोस्ट हुयी है। जनकवि श्रीराम तिवारी ने अपने ब्लॉग इन्कलाब में बजट पर दोहे पोस्ट किये हैं। देखिये एक झलक और कहिये कैसे लगे ये दोहे।-रेक्टर कथूरिया
श्रीराम तिवारी |
खाद-बीज का क्या हुआ, कहाँ गरीब किसान .
कोरा बजट चिदम्बरम , कैसे हो कल्याण ..सस्ता श्रम जो लूटते , ठेकेदार तमाम .
उन पर ना बंदिश कोई, क्या खास क्या आम ..
महंगाई की मार है, रुके विकाश के काम .
राजकोष खाली पड़ा, वित्त श्रोत सब जाम ..
विश्व बेंक की नीतियाँ ,एमएनसी के काम .
वित्त मंत्री कर चले,केवल उनके काम ..
पूंजीवादी तंत्र में , कितना ही करो सुधार .
नीति-नियत बदले बिना ,होगा ना उद्धार ..
-- श्रीराम तिवारी
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