Sunday, January 26, 2020

CAA के विरोध को लेकर कामरेड अब आत्मदाह की राह पर?

Updated on Sunday 26th January 2020 at 18:45
इंदौर में हुई ऐसी अपनी किस्म की पहली घटना !
इंदौर: 25 जनवरी 2020: (कामरेड स्क्रीन डेस्क):: 
संघर्षों की राह पर चलने वाला वाम आत्महत्या को कैसे अपना सकता है। बात बहुत अजीब सी लगती है लेकिन इंदौर की घटना कुछ ऐसा ही सोचने पर मजबूर कर रही है। नागरिकता कानून का विरोध यूं तो देश भर में चल रहा है और इन आंदोलनों की अगुवाई करने वालों में वाल काफी सक्रिय भी है। इसी विरोध के चलते मध्यप्रदेश में भी नागरिकता कानून के खिलाफ लगातार ज़ोरदार प्रदर्शन भी हो रहे हैं। CAA के खिलाफ निरंतर विरोध के इसी  ज़ोरदार  सिलसिले  में  अब सामने आया है यह चिंतनीय घटनाक्रम। नागरिकता कानून का विरोध कर रहे माकपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता रमेश प्रजापति ने खुद के ऊपर कैरिसेन का तेल डाल के खुद को आग लगा ली। देखते ही देखते सनसनी सी फ़ैल गई और वहां मौजूद लोगों ने इस घटना के बाद पुलिस को सूचना दी। इसके साथ ही आग से  घायल कामरेड रम्सः प्रजापति को अस्पताल पहुँचाया गया। इसमें कामरेड  रमेश प्रजापति 90 प्रतिशत जल गए। फ़िलहाल वह बयान देने की हालत में नहीं हैं।इसके बावजूद परिवार और पार्टी ने इस घटना को अफसोसनाक कहते हुए इसे गलत भी बताया और यह भी कहा कि इसे राजनैतिक रंग न दिया जाये। कामरेड रमेश प्रजापति के आत्मदाह पर पुलिस का कहना है कि रमेश प्रजापति 24 जनवरी को शाम 7 बजे गीता भवन चौराहे पर पहुँचे जहाँ जाकर उन्होंने खुद पर कैरोसिन डाल कर आग लगा ली। वहां मौजूद लोगों ने पुलिस को सूचना दी। सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पास के एमवाई हॉस्पिटल में दाखिल करवाया। विभिन्न कामरेडों ने इस घटना को बहुत दुखद और अफसोसनाक भी बताया है। 
इस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आत्मदाह करने से पहले रमेश प्रजापति ने लोगों को पर्चे बांटे जिसपर नागरिकता कानून को काला कानून बताया गया था।उन पर्चों में भगत सिंह, अशफाकउल्लाह खान और  बीआर अंबेडकर की तस्वीरें भी थीं। अंत में एक गीत की चंद लाइनें थीं- तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।
 इसी बीच इंदौर माकपा जिला सेक्रेटरी छोटेलाल सरावत ने कुछ मीडिया कर्मियों से बात करते हुए बताया कि
“कॉमरेड विचारधारा के लोग ऐसे घटनाक्रम के समर्थक नहीं होते हैं। जो घटनाक्रम हुआ है उसका हमें बहुत दुख है। ऐसा कदम उन्हें नहीं उठाना चाहिए था। वह व्यक्ति समझदार व्यक्ति है और आज के पार्टी मेंबर नहीं है काफी समय से पार्टी मेंबर हैं।
उनके बेटे ने भी कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक मोड़ ना दिया जाए इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि हम इसे राजनीतिक मोड़ देना ही नहीं चाहते। उनके द्वारा ही लोगों के बीच पर्चे बांटे गए जिस पर उनके हस्ताक्षर थे। हालांकि इस पर पार्टी का अधिकृत ब्यान जारी होना है जो शायद सबंधित ब्रांच की विशेष बैठक के बाद ही जारी होगा लेकिन आत्महत्यायों चलन का यह चिंतनीय सिलसिला अंदर ही अंदर लगातार बढ़ रहा है रहा है। 
वाम के लोग ऐसा रास्ता  कभी नहीं अपनाते 
मार्क्सिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (एमसीपीआई)   के वरिष्ठ नेता और स्वर्गीय कामरेड जगजीत सिंह लायलपुरी के निकट साथी कुलदीप सिंह एडवोकेट ने इसे बहुत ही दुखद बताते हुए जहाँ परिवार के साथ हमदर्दी व्यक्त की  स्पष्ट कहा है कि सैद्धांतिक तौर पर वाम के लोग ऐसा रास्ता कभी नहीं अपनाते। आखिरी सांस तक संघर्ष ही उनका चुनाव होता है। जीवन अनमोल है और इसे कामरेडों के इलावा और कोई नहीं ज़्यादा नहीं समझ सकता।  उन्हीने कहा कि अतीत में कामरेडो द्वारा आत्महत्यायों की अफसोसनाक घटनाएं सामने आती रही हैं हैं लेकिन वे सभी व्यक्तिगत जीवन में आई निराशा थी। इसी तरह जन संघर्षों के दरम्यान ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। न तो ऐसा करना कम्युनिस्ट सोच के मुताबिक सही है न ही  संघर्षों के साथ जुड़े लोगों के लिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह इस साड़ी घटना का पूरा विवरण मंगवा रहे हैं तांकि पूरी सच्चाई हमारे सामने आ सके। उन्होंने बार बार केवल संघर्ष ही रास्ता की बात पर ज़ोर दिया। 
जनता की शक्ति अजेय है इस विश्वास को फिर मज़बुत करना होगा 
प्लस मंच और अन्य वाम संगठनों से जुड़े हुए कामरेड अमोलक सिंह ने भी कहा रौशन दिमाग लोग इस तरह की बात सोच भी नहीं सकते। गौरतलब  अमोलक सिंह जानेमाने स्टेज महारथी गुरशरण सिंह के  नज़दीकी साथी रहे हैं।  उनके देहांत के बाद भी अमोलक सिंह उसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं। यदि वाम के लोग भी ऐसा सोचने लगे हैं तो अनुमान लगाना अकटहिं सिस्टम और स्थिति कितनी भयावह हो चुकी है। इसके बावजूद इस तरह के कदम उठाना चिंतनीय है।  उन्होंने कामरेड सतनाम जंगलनामा की याद भी दिलाई। गौरतलब है कि सतनाम ने लम्बे समय तक जंगल में जा कर नक्सली लाइफ स्टाईल को अपनी लेखनी में कलमबद्ध।  इस किताब का नाम ही जंगलनामा था। यह पुस्तक बेहद लोकप्रिय भी हुई। इस महत्वपूर्ण किताब के बावजूद इसी लेखक सतनाम ने  अचानक ख़ुदकुशी कर ली थी। कामरेड अमोलक सिंह ने इन हकीकतों को स्वीकार करते हुए कहा कि केवल और केवल संघर्ष ही सच्चे कामरेडों का रास्ता  होता है।  जो रास्ता सतनाम ने अपना वह भी गलत था और जो रास्ता अब कामरेड रमेश प्रजापति ने अपनाया वह भी गलत है। उनका यह कदम हमारे फाशीवादी दुश्मनों को हमारे खिलाफ प्रचार का मौका ही प्रदान करता है। हमें यह यकीन एक बार फिर मज़बूत करना होगा कि वास्तव लोगों की शक्ति अजेय है और इसी शक्ति के सहारे हर कठिन चुनौती का सामना हर हाल में मुमकिन है। कोई भी फाशी कदम या अत्याचारी सरकार लोगों की शक्ति के सामने नहीं टिक सकती। 

No comments:

Post a Comment