Tuesday, October 14, 2025

हम किसी भी हालत में पंजाब की ज़मीनें नहीं बिकने देंगे: भाकपा

Received on Monday 14th October 2025 at 04:51 PM From CPI Media Updated 15th October 08:48 AM 

सोमवार, 14 अक्टूबर 2025 को शाम 04:51 बजे भाकपा मीडिया से प्राप्त

वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतें भी इसका विरोध करें 

ਸੰਕੇਤਕ ਤਸਵੀਰ AI Image by Meta AI 
चंडीगढ़: 14 अक्टूबर 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//कामरेड स्क्रीन डेस्क)::

सरकारी ज़मीनों और अन्य संपत्तियों को बेचने जैसी बातें अब आम होती जा रही है। पहले केवल वामपंथी दल ही इसका विरोध करने के लिए आगे आते थे और अब भाकपा ज़मीनों की बिक्री के खिलाफ सबसे पहले आवाज़ उठाने वाली पार्टी बन गई है। ऐसा लगता है कि अन्य दलों को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है कि सरकारी ज़मीनें बचाई जाएँ या नहीं। भाकपा पंजाब ने कहा है कि यह बेहद आश्चर्यजनक है कि ऐसा फ़ैसला लिया गया है। ऐसा लगता है कि पंजाब सरकार पूरी तरह से भ्रमित है।

पंजाब भाकपा के राज्य सचिव और जुझारू नेता कामरेड बंत बराड़ ने याद दिलाया कि पहले सरकार ने शहरी विकास के नाम पर शहरों के आसपास के किसानों से ज़मीनें जबरन छीनने की योजना बनाई थी, जिसे सभी पंजाबियों ने बुरी तरह विफल कर दिया था। इस नाकामी से कोई सबक लिए बिना, अब पंजाब सरकार ने सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों, बोर्डों और निगमों के पास पड़ी ज़मीनों को फिर से बेचने की योजना बना ली है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, जिसने पंजाब में कृषि के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है, उसकी 2000 एकड़ ज़मीन और पंजाब बिजली निगमों के पास पड़ी हज़ारों एकड़ ज़मीन को बेचने का पूरा कार्यक्रम बन गया है।

उपरोक्त फ़ैसले पर टिप्पणी करते हुए, पंजाब भाकपा सचिव कामरेड बंत सिंह बराड़ ने अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए कहा कि भाकपा पंजाब के किसानों और कर्मचारियों की संयुक्त यूनियनों के संघर्ष का पूरा समर्थन करती है और पंजाब की वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों से इसका कड़ा विरोध करने की अपील भी करती है।

कामरेड बराड़ ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार, नशाखोरी और गैंगस्टरों पर लगाम लगाने में बुरी तरह नाकाम रही है और अब ज़मीनें बेचकर पंजाब को बर्बाद करने पर तुली है, जिसे पंजाब के मेहनतकश लोग कभी नहीं होने देंगे।

Friday, September 19, 2025

1950 के दशक में भी यही उम्मीद जोरों पर थी-वो सुबह कभी तो आएगी!

Posted on 19th September 2025 at 02:00 AM 

कामरेड अमरजीय कौर आज भी दृढ़ हैं-वो सुबह हमीं से आएगी!


चंडीगढ़: 18 सितंबर 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र/ /कामरेड स्क्रीन डेस्क):: 


जब रेडियो का ज़माना था उस दौर में कभी एक गीत बहुत हिट हुआ करता था। हर गली मोहल्ले में रेडियो के गीत सुनाई देते थे। उस ख़ास गीत के बोल थे -वो सुबह कभी तो आएगी। इसे लिखा था जनता के दिल की बात करने वाले शायर जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने। फिल्म का नाम था-फिर सुबह होगी-सन 1958 में रिलीज़ हुई थी यह फिल्मइस ख़ास गीत को  संगीत से सजाया था जनाब खय्याम साहिब ने। फिल्म के पर्दे पर थे-राज कपूर और माला सिन्हा। आवाज़ें दी थीं-मुकेश और आशा भौंसले ने। यह गीत उन लाखों करोड़ों लोगों के दर्द की बात करता है जो निराशा के अंधेरों में उम्मीदों की आशा लगाए बैठे हैं। इस गीत के शायद दो हिस्से हैं। एक हिस्सा वो है जिसमें दर्द की इंतहा है:

 मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा

मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा

हक़ मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

इस  गीत की याद दिलाती यह वीडियो आप यहाँ क्लिक करके भी देख सकते हैं। 

इसी गीत से सवाल भी पैदा होते हैं कि आखिर कब आएगी वह सुबह - --? कौन लाएगा उस सुबह और उस सवेरे को? इसका जवाब देते हुए इसी गीत का दूसरा हिस्सा स्पष्ट करता है..ु . .

उस सुबह को हम ही लाएंगे 

वो सुबह हमीं से आएगी..!

सीपीआई की 25वीं राष्ट्रिय कांग्रेस इसी बरस 2025 के इसी महीने सितंबर की 21 तारीख से 25 सितंबर तक चंडीगढ़ / /पंजाब में हो रही है। इसकी सभी तैयारियां तकरीबन तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। इस महानसम्मेलन को लेकर सीपीआई की राष्ट्रिय सचिव कामरेड अमरजीत कौर के साथ बात हुई तो उन्होंने पंजाब के साथ साथ देश और दुनिया की चर्चा भी की। 

जब इसी पोस्ट के आरंभ में दिए एक पुराने गीत के मुखड़े की बात चली तो सवाल यह भी उठा कि लोगों के सपनों को आखिर कौन साकार करेगा ? अच्छे दिन वास्तव में कौन लाएगा? गीत का एक प्रसिद्ध आन्तरा फिर याद आ रहा है : कामरेड अमरजीत से सबंधित वीडियो यहाँ क्लिक करके भी देख सकते हैं 

फ़ाकों की चिताओ पर जिस दिन इन्सां न जलाए जाएंगे

सीने के दहकते दोज़ख में अरमां न जलाए जाएंगे

ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी .....!

इस सवाल के जवाब में सीपीआई की राष्ट्रिय सचिव कामरेड अमरजीत कौर ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि केवल कम्युनिस्ट ही इन सपनों को साकार कर सकते हैं . .! वास्तव में केवल कम्युनिस्ट ही अच्छे दिन ला सकते हैं . .! कम्युनिस्ट ही ला सकते हैं हर घर,  हर दिल और हर घर में सच्ची खुशहाली - --! हर तरफ से निराश हुए लोगों को बस एक ही उम्मीद नज़र आती है--- उन्होंने कहा कि अब सच दीवारों पर लिखा जा चूका है--और कोई रास्ता ही नहीं बचा-- अब तो कम्युनिस्ट पार्टी ही करेगी सपने साकार 


Monday, September 8, 2025

सीपीआई सांसद द्वारा बाढ़ प्रभावित पंजाब के लिए विशेष राहत पैकेज की मांग

Received from MS Bhatia on Monday 8th September 2025 at 16:42 Regarding CPI MP

 सीपीआई नेता संतोष कुमार पी. ने केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह को पत्र लिखा 

*राज्यसभा में सीपीआई नेता संतोष कुमार पी.

*बाढ़ प्रभावित पंजाब के लिए विशेष राहत पैकेज की मांग उठाई गई

*राज्यसभा में सीपीआई नेता ने विशेष पैकेज की मांग की

*बाढ़ प्रभावित पंजाब के लिए विशेष राहत पैकेज की मांग की गई

*उन्होंने स्वयं गाँवों का दौरा किया


लुधियाना: 8 सितंबर 2025: (एमएस भाटिया//कॉमरेड स्क्रीन डेस्क)::

पंजाब के फाजिल्का जिले के बाढ़ प्रभावित गाँवों के अपने दौरे के दौरान, राज्यसभा में सीपीआई नेता कॉमरेड संतोष कुमार पी. ने स्वयं गाँवों का दौरा किया और अभूतपूर्व बाढ़ से हुई तबाही को देखा। इस संवेदनशील दौर के बाद, उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए पैकेज की मांग की है।

उन्होंने कहा, "पूरे खेत जलमग्न हो गए हैं, फसलें बर्बाद हो गई हैं, मवेशी मर गए हैं और घर मलबे में तब्दील हो गए हैं। परिवार बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे हुए हैं, उनकी आजीविका नष्ट हो गई है और हर जगह पानी जमा होने से बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित उन किसानों की आँखों में निराशा ने किया जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है और आश्रय और जीविका की तलाश कर रहे परिवारों की लाचारी ने किया है। इस बेहद संवेदनशील स्थिति में भी किसान फल-फूल रहे हैं। वे एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं।"

अपनी यात्रा के दौरान, भाकपा सांसद संतोष ने प्रभावितों की मदद के लिए आगे आए अनगिनत स्वयंसेवकों से भी बातचीत की। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, भारतीय सेना और अन्य एजेंसियां, जिनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत जन संगठन भी शामिल हैं, बेहद कठिन परिस्थितियों में अथक परिश्रम कर रही हैं। प्रभावित गाँवों में जान बचाने और भोजन व दवाइयाँ पहुँचाने में उनका साहस और एकजुटता सराहनीय है। वे प्रशंसा से भी बढ़कर हैं।

फिर भी, इतने प्रयासों के बावजूद, इस आपदा की तबाही वास्तव में सरकारी राहत के पैमाने से कहीं ज़्यादा है। यह राहत बहुत कम है। फाजिल्का, गुरदासपुर, अमृतसर, कपूरथला, फिरोजपुर, तरनतारन, होशियारपुर, लुधियाना, मानसा और पटियाला पूरी तरह जलमग्न हैं। जलमग्न या बुरी तरह क्षतिग्रस्त। इसके साथ ही, लाखों लोग भूख, बीमारी और विस्थापन से पीड़ित हैं। उनकी पीड़ा को गिनना लगभग असंभव है।

उन्होंने आगे लिखा कि इन परिस्थितियों में, मैं केंद्र सरकार से तत्काल और सहानुभूतिपूर्वक कार्रवाई करने की अपील करता हूँ। पंजाब को नियमित वितरण के अलावा, तुरंत पर्याप्त राहत राशि जारी करने की आवश्यकता है, साथ ही एक व्यापक पैकेज भी जारी करना चाहिए जो फसल और पशुधन के नुकसान, घरों और आजीविका के विनाश और विस्थापित परिवारों के पुनर्वास की पूरी सीमा को कवर करे। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अगले फसल सीजन के लिए रियायती दरों पर बीज, उर्वरक और अन्य कृषि आदानों की आपूर्ति सुनिश्चित करके विशेष व्यवस्था की जाए। महामारी को रोकने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना, स्कूलों और सार्वजनिक सुविधाओं का जीर्णोद्धार, और इन बाढ़ों से तबाह हुए सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने का समय पर पुनर्निर्माण भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भाकपा राज्य इकाई के सदस्य ने भी लोगों का उत्साहवर्धन किया।

अपने पत्र के अंत में, उन्होंने लिखा कि मैं आपसे व्यक्तिगत हस्तक्षेप का अनुरोध करता हूँ ताकि राहत और पुनर्वास सुनिश्चित हो सके। पंजाब के लोगों तक बिना किसी देरी के पहुँचें। लोगों का धैर्य मज़बूत है और स्वयंसेवकों में एकता की भावना प्रेरणादायक है, लेकिन अभी केंद्र सरकार से निर्णायक समर्थन की तत्काल आवश्यकता है।

आवश्यक राहत पैकेज के बाद ही बाढ़ प्रभावित परिवार सम्मान के साथ अपने जीवन के पुनर्निर्माण की कठिन यात्रा शुरू कर सकते हैं।

गरीब किसान दो-दो दिनों तक भूखे-प्यासे लाइन में खड़े है

Received From Sanjay Prate on Sunday 7th Sep at 2025 at 11:26 PM Regarding Severe Shortage of Fertilizers

 छत्तीसगढ़ में खाद संकट और कॉर्पोरेटप्रस्त  सरकार 

                                                                           --विशेष आलेख : संजय पराते

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रायपुर:(छत्तीसगढ़): 7 सितम्बर 2025: (*संजय पराते//कामरेड स्क्रीन)::

लेखक-संजय पराते 

हर साल की तरह इस बार भी पूरे देश में किसान खाद की भयंकर कमी का सामना कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। इस साल भी छत्तीसगढ़ की सहकारी सोसाइटियों में यूरिया और डीएपी खाद की कमी हो गई है। गरीब किसान दो-दो दिनों तक भूखे-प्यासे लाइन में खड़े है और फिर उन्हें निराश होकर वापस होना पड़ रहा है। सरकार उन्हें आश्वासन ही दे रही है कि पर्याप्त स्टॉक है, चिंता न करे। किसान अपने अनुभव से जानता है कि मात्र आश्वासन से उसे खाद नहीं मिलने वाला। और यदि वह जद्दोजहद न करें, तो धरती माता भी उसे माफ नहीं करेगी और पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। अपनी फसल बचाने के लिए अब उसके पास एक सप्ताह का भी समय नहीं है। इसलिए वह सड़कों पर है। प्रशासन की लाठियां भी खा रहा है और अधिकारियों की गालियां भी। यह सब इसलिए कि अपना और इस दुनिया का पेट भरने के लिए उसे धरती माता का पेट भरना है।

खरीफ सीजन में धान छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल है।धान की फसल के लिए यूरिया और डीएपी प्रमुख खाद है। कृषि वैज्ञानिक पी एन सिंह के अनुसार एक एकड़ धान की खेती के लिए 200 किलो यूरिया खाद चाहिए। इस हिसाब से छत्तीसगढ़ को कितना खाद चाहिए?

छत्तीसगढ़ में लगभग 39 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। तो प्रदेश को 19 लाख टन यूरिया की जरूरत होगी,  जबकि सहकारी सोसायटियों को केवल 7 लाख टन यूरिया उपलब्ध कराने का लक्ष्य ही राज्य सरकार ने रखा है। इस प्रकार प्रदेश में प्रति हेक्टेयर यूरिया की उपलब्धता केवल 122 किलो और प्रति एकड़ 49 किलो ही है। आप कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में इतनी उन्नत खेती नहीं होती कि 19 लाख टन यूरिया खाद की जरूरत पड़े। यह सही है। लेकिन क्या सरकार को उन्नत खेती की ओर नहीं बढ़ना चाहिए और इसके लिए जरूरी खाद उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नहीं बनती?

देश मे रासायनिक खाद का पूरे वर्ष में प्रति एकड़ औसत उपभोग 68 किलो है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह मात्र 30 किलो ही है। वर्ष 2009 में यह उपभोग 38 किलो प्रति एकड़ था। स्पष्ट है कि उपलब्धता घटने के साथ खाद का उपभोग भी घटा है और इसका कृषि उत्पादन और उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। आदिवासी क्षेत्रों में तो यह उपभोग महज 10 किलो प्रति एकड़ ही है। क्या एक एकड़ में 10 किलो रासायनिक खाद के उपयोग से धान की खेती संभव है? आदिवासी क्षेत्रों में यदि खेती इतनी पिछड़ी हुई है, तो इसका कारण उनकी आर्थिक दुरावस्था भी है। सोसाइटियों के खाद तक उनकी पहुंच तो है ही नहीं।


छत्तीसगढ़ में डीएपी और यूरिया की कमी से
खाद की कालाबाजारी बढ़ी है और 266 रुपए बोरी की यूरिया 1000 रुपए में और 1350 रुपए की कीमत वाली डीएपी की बोरी 2000 रुपए में बिक रही है। भाजपा सरकार इस कालाबाजारी को रोकने में असफल साबित हुई है। इससे फसल की लागत बढ़ जाने से खेती-किसानी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है।  यह संकट इस तथ्य के बावजूद है कि छत्तीसगढ़ में प्रति एकड़ खाद का उपयोग अखिल भारतीय औसत की तुलना में बहुत कम है। इस समय सभी प्रकार के खाद के उपयोग का अखिल भारतीय औसत 120 किलो प्रति एकड़ है, जबकि छत्तीसगढ़ में मात्र 38 किलो।

छत्तीसगढ़ में धान की खेती सहित लगभग 48 लाख हेक्टेयर रकबा में कृषि कार्य होता है। धान की फसल मुख्य है, लेकिन गन्ना, मक्का और अन्य मोटे अनाज, चना और अन्य दलहन, तिल और अन्य तिलहन और सब्जी की खेती भी भरपूर होती है। भूमि की प्रकृति, मौसम और फसल की जरूरत के अनुसार विभिन्न प्रकार के खादों का उपयोग होता है।

छत्तीसगढ़ में सरकार खरीफ सीजन के लिए औसतन 14 लाख टन खाद उपलब्ध कराती है, जिसमें 7 लाख टन यूरिया, 3 लाख टन डीएपी और 2 लाख टन एसएसपी शामिल है। यह जरूरत से बहुत कम है। लेकिन इस उपलब्धता का भी 45 प्रतिशत निजी क्षेत्र के जरिए वितरित किया जाता है और यह खाद संकट की आड़ में कालाबाजार में ही बिकता है।

वर्तमान खाद संकट डीएपी की भारी कमी से पैदा हुआ है और सरकार ने डीएपी वितरण का लक्ष्य 3 लाख टन से घटाकर 1 लाख टन कर दिया है। सरकार का तर्क है कि 3 बोरी एसएसपी और 1 बोरी यूरिया के सम्मिलित उपयोग से 1 बोरी डीएपी की कमी की भरपाई हो सकती है। इस तर्क के अनुसार सरकार को आनुपातिक रूप से 2 लाख टन यूरिया और 6 लाख टन एसएसपी खाद अतिरिक्त उपलब्ध कराना चाहिए, लेकिन यूरिया की मात्रा बढ़ाई नहीं गई है और एसएसपी 3.5 लाख टन ही अतिरिक्त उपलब्ध कराया जा रहा है। इस प्रकार, प्रदेश में अब डीएपी के साथ ही यूरिया और एसएसपी की भी कमी हो गई है।

डीएपी की कमी के बाद अब छत्तीसगढ़ को कम से कम 22 लाख टन खाद की जरूरत है, लेकिन उपलब्ध केवल 17 लाख टन ही है। 5 लाख टन खाद की कमी है, जिससे खेती प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी। सरकार का दावा है कि उसने इस कमी की पूर्ति भी नैनो यूरिया और नैनों डीएपी के जरिए कर दी है। उसने सहकारी और निजी क्षेत्र को कुल 2.91 लाख बोतल (500 मिली.) नैनो यूरिया की और 2.93 लाख बोतल (500 मिली.) नैनो डीएपी उपलब्ध कराई है। किसानों के मन में नैनो खाद की उपयोगिता और प्रभावशीलता के बारे में काफी संदेह है। लेकिन यदि मजबूरी में भी वे इन तरल उर्वरकों का उपयोग करते हैं, तो भी इसका कुल प्रभाव 7245 टन खाद के बराबर ही होगा, जो उर्वरकों की कुल कमी के केवल नगण्य हिस्से (1.5 प्रतिशत) की ही भरपाई करेंगे। डीएपी की कमी की भरपाई के लिए उसने जो कदम उठाने का दिखावा किया है, उसके कारण खाद संकट और गहरा गया है, क्योंकि अब केवल डीएपी की नहीं, यूरिया और एसएसपी की भी कमी हो गई है। लेकिन सरकार 5 लाख टन खाद की कमी की पूर्ति का दावा नैनो खाद से करने के दावे पर अड़ी है, तो फिर सरकार के इस चमत्कार को सराहा जाएं या फिर नमस्कार किया जाये!

छत्तीसगढ़ की 1333 सहकारी सोसाइटियों में सदस्यों की संख्या 14 लाख है, जिसमें से 9 लाख सदस्य ही इन सोसाइटियों से लाभ प्राप्त करते हैं। प्रदेश में 8 लाख बड़े और मध्यम किसान है, जो इन सोसाइटियों की पूरी सुविधा हड़प कर जाते हैं। इन सोसाइटियों से जुड़े 5 लाख सदस्य और इसके दायरे के बाहर के 20 लाख किसान, कुल मिलाकर 25 लाख लघु व सीमांत किसान इनके लाभों से वंचित हैं और बाजार के रहमो-करम पर निर्भर है। उनकी हैसियत इतनी नहीं है कि वे बाजार जाकर सरकारी दरों से दुगुनी-तिगुनी कीमत पर कालाबाजारी में बिक रहे खाद को खरीद सके। 

यदि किसानों को खाद सहज रूप से मिले, तो भी डीएपी की जगह यूरिया और एसएसपी खाद के उपयोग से प्रति एकड़ लागत 1000 रूपये बढ़ जाएगी। लेकिन यदि कालाबाजारी में उन्हें खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो खेती-किसानी पर 2000 रुपए प्रति एकड़ की अतिरिक्त लागत बैठेगी। यदि प्रति एकड़ औसतन 1500 रुपए अतिरिक्त लागत को ही गणना में लें, तो 1800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार किसान समुदाय पर पड़ेगा। इससे खेती-किसानी और ज्यादा घाटे में जायेगी। प्रधानमंत्री किसान योजना में या बोनस में भी इतनी राशि किसानों को नहीं मिलती। यह इस हाथ ले, उस हाथ दे वाली स्थिति है।

किसान आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ अग्रणी राज्यों में से एक है। जब तक एनसीआरबी के आंकड़े उपलब्ध थे, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि यहां हर साल एक लाख किसान परिवारों के बीच 45 किसान आत्महत्या कर रहे थे। मोदी राज में जितने बड़े पैमाने पर कृषि का कॉरपोरेटीकरण हुआ है और भाजपा के 'सायं-सायं' राज में इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेटों के हाथों में सौंपा जा रहा है, उससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कृषि संकट और बढ़ गया है और प्रदेश में किसान आत्महत्याओं में और बढ़ोतरी हो गई होगी। 

किसानों की दुर्दशा के लिए मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियां जिम्मेदार हैं। मोदी सरकार उर्वरक क्षेत्र में निजीकरण की जिन नीतियों पर चल रही है, उसके कारण खाद की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया है। इन नीतियों की कीमत किसान अपनी जान देकर चुका रहे हैं। वे लाइन में खड़े-खड़े मर रहे हैं, वे साहूकारी और माइक्रोफाइनेंस कर्ज के मकड़जाल में फंसकर मर रहे हैं या फिर वे आत्महत्या कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की खेती-किसानी के लिए यह खतरनाक स्थिति है।

लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। उनके साथ बात करने के लिए उनका संपर्क नंबर है: 94242-31650

Monday, September 1, 2025

सीपीआई ने भारत और चीन के बीच सहयोग में प्रगति का स्वागत किया

 CPI Roy Kutti Monday 1st September 2025 at 1:00 PM//CPI MSB-- 1st  September 2025 at 7:39 PM//प्रेस विज्ञप्ति:

नई दिल्ली:1 सितंबर, 2025: (एम एस भाटिया/ /कामरेड स्क्रीन)::

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिवालय ने आज (1 सितंबर, 2025) निम्नलिखित बयान जारी किया:

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक के सकारात्मक परिणामों का स्वागत करती है। दुनिया की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं - भारत और चीन - के नेताओं के बीच यह बातचीत इस बात की पुष्टि करती है कि हमारे देश प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदार बनने के लिए बने हैं।

यह संवाद सभी स्तरों-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और लोगों के बीच - पर बेहतर समझ की दिशा में आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता का संकेत देता है। ऐसा सहयोग न केवल हमारे दोनों देशों के लिए, बल्कि वैश्विक दक्षिण की एकता को मज़बूत करने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सीपीआई इस बात पर संतोष व्यक्त करती है कि दोनों पक्षों ने औपनिवेशिक शक्तियों की विरासत रहे लंबे समय से चले आ रहे सीमा मुद्दों को शांतिपूर्ण और बातचीत के माध्यम से सुलझाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है। संवाद और आपसी सम्मान का मार्ग हमारे क्षेत्र में स्थायी शांति, स्थिरता और विकास के निर्माण में योगदान देगा।

ऐसे समय में जब साम्राज्यवादी ताकतें फूट डालने और हावी होने की कोशिश कर रही हैं, भारत और चीन की एकता और सहयोग राष्ट्रों के बीच समानता, न्याय और परस्पर सम्मान पर आधारित एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था को एक शक्तिशाली प्रोत्साहन प्रदान करेगा। भाकपा सभी वर्गों से भारत-चीन संबंधों में इस सकारात्मक गति का समर्थन करने का आह्वान करती है।

Saturday, March 29, 2025

निर्माण मज़दूर हाशिये पर हैं और सरकार लगातार उदासीन बनी हुई है

 From M S Bhatia on Friday 28th March 2025 at 19:25 Regarding Pretest at Jantar Mantar New Delhi 

प्रेस विज्ञप्ति में बताई मज़दूर नेता *विजयन कुनिसरी ने मज़दूरों की दयनीय हालत

नई दिल्ली के जंतर मंत्र में निर्माण श्रमिकों द्वारा बड़े पैमाने पर मोर्चा 


नई दिल्ली: 28 मार्च 2025: (एम एस भाटिया//कामरेड स्क्रीन डेस्क)::

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस से संबद्ध भवन और निर्माण श्रमिकों के अखिल भारतीय परिसंघ ने आज एक संसद मोर्चा, यानी 28 मार्च 2025 को देश भर के लगभग 25 राज्यों और केंद्र क्षेत्रों से, 5000 निर्माण श्रमिक जंतर मंतर नई दिल्ली पर एकत्रित हुए ताकि सरकार पर दबाव डाला जा सके केवल निर्माण मजदूरों के प्रति बेपरवाही छोड़ दे।

एआईसीबीसीडब्ल्यू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बासुदेब गुप्ता ने मोर्च की अध्यक्षता की। विजयन कुनिसरी के महासचिव (AICBCW) ने डिमांड चार्टर  प्रस्तुत किया। एम प्रवीण कुमार महासचिव ने सभी का स्वागत किया। अमरजीत कौर, महासचिव, AITUC ने धरना कार्यक्रम का उद्घाटन किया। के सुब्बारायण सांसद (सीपीआई), संथोश कुमार सांसद (सीपीआई, राज्यसभा) और वाहिधा निज़ाम और रामकृष्ण पांडा एटक के राष्ट्रीय सचिवों ने सभा को संबोधित किया।   

निर्माण क्षेत्र भारत में महिलाओं और बच्चों सहित 10 करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी प्रदान करता है। अधिकांश कार्यबल असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। विधायी संरक्षण का अभाव उन्हें सभी प्रकार के शोषण के लिए सबसे कमजोर बनाता है। मौजूदा कानूनों में से कोई भी जैसे कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, मातृत्व लाभ, अनुबंध श्रम अधिनियम आदि के हक में श्रमिकों को नहीं मिलते। वे सामाजिक रूप से उत्पीड़ित और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के बहुमत को बनाते हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में, BOCW अधिनियम 1996 के गैर-निष्पादन और भवन और अन्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण सेस अधिनियम, 1996 के बारे में अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है। संसद द्वारा लागू किए गए इन कानूनों को काफी हद तक राज्य सरकारों और संघ क्षेत्र प्रशासनों द्वारा  अवहेलना की गई है। 

यहां तक ​​कि जब मौजूदा कानून कार्यबल की रक्षा करने में विफल हुए हैं, पर श्रम कोड इस स्थिति को  बदतर बना देंगे। निर्माण श्रमिक लगातार अपने कानूनी अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहते हैं। यह संसद मोर्चा आजीविका के लिए गंभीर संघर्षों की श्रृंखला में एक और है।

के सुब्बारायण-सांसद ने श्रम और रोजगार मंत्री से मुलाकात की और AICBCW की मांगों के चार्टर का एक ज्ञापन सौंपा। मांगों में शामिल हैं:

1। श्रम कोड को निरस्त करें और सख्ती से BOC अधिनियम को लागू करें 

2। काम की खतरनाक प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ईएसआई के तहत सभी बीओसी श्रमिकों को शामिल किया जाए।

3। BOC श्रमिकों के लिए बोनस, पीएफ, ग्रेच्युटी और त्योहार भत्ता के लिए कानूनी प्रावधान करें

4। न्यूनतम मजदूरी को  36000/ रुपए प्रति माह तक बढ़ाया जाना चाहिए ( जो कि 15 वें ILC के दिशानिर्देशों और रैप्टकोस और ब्रेट केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार है)

5। न्यूनतम पेंशन को बढ़ाया जाना चाहिए रुपए 6000/- प्रति माह तक ।

6। सभी भूमिहीन बीओ सी श्रमिकों के लिए भूमि और आवास प्रदान करें

7। अलग -अलग कानूनों के माध्यम से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य उपायों को सुनिश्चित करें।

8। सेस राशि को 2%तक बढ़ाएं, फंड को बढ़ाने के लिए उचित संग्रह सुनिश्चित करें

9। फंड के उचित उपयोग के लिए निगरानी समितियों की स्थापना करें।

10। कल्याण बोर्डों के माध्यम से मातृत्व लाभ अधिनियम में निर्धारित मातृत्व लाभ का भुगतान सुनिश्चित करें।

संसद मोर्चा व्यापक और मजबूत भागीदारी के संबंध में सफल है। लेकिन इस मामले का अल हाल  श्रमिकों की वास्तविक आजीविका के मुद्दों को संबोधित करने के लिए भाजपा सरकार की नीतियों में बदलाव पर निर्भर करता है। 

*विजयन कुनिसरी ऑल इंडिया कन्फेडरेशन ऑफ बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (AICBCW) महासचिव हैं और यह संगठन  AITUCसे  सबंधित है। 

Wednesday, February 26, 2025

क्रांति के लिए लेनिन के विचार आज भी प्रासंगिक हैं

वोह सुबह ज़रूर आएगी और बहुत जल्द आएगी !


इंटरनेट की दुनिया
:26 फरवरी 2025

(Post with AI with some input by कामरेड स्क्री डेस्क//Images by Meta AI)::

लेनिन का एक कथन इंटरनेट कुछ अरसे से पर घूम रहा है कि आप सफ़ेद दस्ताने में क्रांति नहीं ला सकते---लेनिन का यह कथन कब और कहां कहा गया और किस पुस्तक में है इसके बारे पट अलगाने के प्रयास जारी हैं। आज के वामपंथ में इसे लेकर क्या सोचा जाता है--इस संबंध में भी हमारी टीम कोशिशों में सक्रिय है। 

AI अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी इसे लेकर संक्षिप्त सी बात की गई।  AI ने लेनिन के इस कथन को लेकर कहा है कि यह कथन कि "आप सफ़ेद दस्ताने पहनकर क्रांति नहीं कर सकते" एक प्रसिद्ध कथन है जो उनकी विचारधारा और क्रांति के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह कथन उन्होंने कब और किस पुस्तक में कहा, इसका निश्चित रूप से पता लगाना मुश्किल है, लेकिन यह उनके लेखों और भाषणों के समग्र संदर्भ में समझा जा सकता है।

लेनिन का यह कथन संभवतः उस समय के संदर्भ में कहा गया था जब रूस में क्रांति की तैयारी चल रही थी। उस समय कई लोग थे जो क्रांति के समर्थक थे, लेकिन वे केवल ऊपरी तौर पर बदलाव चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि समाज में कोई गहरा परिवर्तन हो। लेनिन का मानना था कि ऐसे लोग क्रांति को सफल नहीं बना सकते। क्रांति के लिए जरूरी है कि लोग अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ दें और एक नए समाज के निर्माण के लिए तैयार रहें।

लेनिन के इस कथन को आज के वामपंथ में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। वामपंथी मानते हैं कि क्रांति केवल तभी सफल हो सकती है जब लोग पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों। उन्हें अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ना होगा और एक नए समाज के निर्माण के लिए एकजुट होना होगा।

लेनिन का यह कथन आज भी प्रासंगिक है। यह हमें याद दिलाता है कि क्रांति केवल तभी सफल हो सकती है जब लोग पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों। उन्हें अपने पुराने विचारों और आदतों को छोड़ना होगा और एक नए समाज के निर्माण के लिए एकजुट होना होगा।

अब जबकि कॉर्पोरेट का प्रभाव शिखरों पर है चीन और रूस भी इससे अछूते नहीं रहे तब क्या आज के दौर में लेनिनवाद और वाम का प्रभाव कम हो रहा है क्या

यह एक जटिल प्रश्न है जिसका सीधा जवाब देना मुश्किल है। यह सच है कि कॉर्पोरेट का प्रभाव आज दुनिया भर में बढ़ रहा है, और चीन और रूस भी इससे अछूते नहीं हैं।

लेनिनवाद और वामपंथ पर प्रभाव को स्वीकार तो किया जाता है कि यह प्रभाव कम हुआ है। प्रभाव कम होने के कारण भी चर्चा में हैं। 

इन कारणों में से एक कारण है वैश्वीकरण: वैश्वीकरण के कारण दुनिया भर में पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ा है। अब करीब हर कोने में पहुँच चुका है वैश्वीकरण। 

एक और बड़ा कारण रहा है सोवियत संघ का पतन: सोवियत संघ के पतन के बाद लेनिनवाद और वामपंथ की प्रतिष्ठा को धक्का लगा है। इसे दुनिया भर में नोट भी किया गया है। 

इसके साथ ही आर्थिक विकास भी वाम के प्रभाव को कम करने मेंसहायक रहा।  कई देशों में आर्थिक विकास होने के कारण लोगों का ध्यान गरीबी और असमानता जैसे मुद्दों से हट गया है।

इस सब के बावजूद वाम का प्रभाव बिलकुल खत्म नहीं हुआ है। यह प्रभाव अभी भी मौजूद है।  इसे मानने वाले और इसे चाहने वाले अभी भी बहुत बड़ी संख्या  में हैं। 

वाम को लगातार बढ़ती हुई असमानता मज़बूती भी दे रही है। जब तक असमनत है तब तक वाम की ज़रूरत महसूस की जाती रहेगी। इसे हटाने के लिए शायद और कोई रास्ता भी नहीं है। दुनिया भर में बढ़ती असमानता के कारण वामपंथ के विचारों को अभी भी समर्थन मिल रहा है। असमानता के खिलाफ वाम ही रास्ते दिखा रहा है। 

वाम का ज़ोर और प्रभाव अब भी दिखता  है सामाजिक आंदोलनों पर।  कई सामाजिक आंदोलनों में वामपंथी विचारधारा का प्रभाव अभी भी आम देखा जा सकता है।

जहां तक चीन और रूस का सवाल है तो चीन और रूस में अभी भी कम्युनिस्ट पार्टियां सत्ता में हैं।

कुल मिला कर अभी भी लोगों को वाम और वाम की विचारधारा से आशाएं बनी हुई हैं। यह कहना सही नहीं होगा कि लेनिनवाद और वामपंथ का प्रभाव पूरी तरह से कम हो गया है। आज भी कई लोग हैं जो वामपंथी विचारधारा में विश्वास करते हैं और सामाजिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि कॉर्पोरेट के बढ़ते प्रभाव के कारण वामपंथ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वाम में कई गुट होने के बावजूद मार्क्स और लेनिन में उनकी आस्था पूरी तरह से मज़बूत है। वे अभी भी मार्गदर्शन के लिए कार्ल  व्लादिमीर लेनिन के विचारों की ही चर्चा और अध्ययन करते हैं। कुछ गट माओवाद, स्टालिन  ट्रॉटस्की से भी प्रेरणा लेते हैं लेकिन इन सभी को इस बात का अटूट विश्वास है कि क्रान्ति आ कर रहेगी। 

वाम की एकता और मार्गदर्शन  सभी वामपंथी संगठनों के  बौद्धिक प्रतिनिधियों को आगे आना ही चाहिए। आप सभी के विचारों की इंतज़ार इस मंच पर भी रहेगी।