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Saturday, September 3, 2022

कौन काटता है आम आदमी की जेब?

3rd September 2022 at 5:53 PM

 कहां जाता है आम आदमी का पैसा?

रविवार से शुरू बैंक मुलाज़िमों के सम्मेलन में खोले जाएंगे कई राज़ 


लुधियाना3 सितंबर 2022: (एम एस भाटिया//इनपुट-कार्तिका सिंह और कामरेड स्क्रीन डेस्क):: 

आम इंसान सिर्फ दुखी है कि आखिर मेहनत करके भी उसका गुज़ारा क्यों नहीं होता। उसकी कमाई उसकी जेब में आने की बजाए किसी और की जेब में क्यों और कैसे चली जाती है। वह कभी कभी सवाल भी करता है कि बैंकों से कर्ज़े ले कर फिर उन्हें अंगूठा दिखा देने वाले लोग दुनिया के सबसे बड़े अमीरों  की सूची में कैसे आ जाते हैं? वे लोग बैंकों से लोन ले कर देश के पब्लिक सेक्टरों को खरीदने की बातें कैसे सिरे चढ़ा लेते हैं? साथ ही उसे अपनी गरीबी का  है और वह सोचता है क्या कभी वह या उसकी औलाद भी अमीर बन भी पाएगी? इस तरह के बहुत से सवाल आम जनता के मन में हैं लेकिन जवाब कोई नहीं देता। आज लुधियाना में बैंक वालों की प्रेस कांफ्रेंस थी। उनका दो दिवसीय सम्मेलन कल रविवार से लुधियाना के गुरु नानक भवन में शुरू हो रहा है। इसमें पहुंच रहे वक्ता प्रवक्ता उन सभी बारीकियों को बताएंगे कि आम इंसान गरीब कैसे होता जा रहा है और सत्ता में  रहने वाले बड़े बड़े लोग दुनिया में बड़े बड़े अमीर कैसे होते जा रहे हैं। मंदहाली की हवा सिर्फ बेबस और गरीब लोगों तक ही क्यों पहुँचती है? वैश्विक मंडी सिर्फ आम जनता के लिए क्यूं? बड़े बड़े धन्ना सेठों के लिए क्यूं नहीं? कोरोना युग में भी कुछ लोग तेज़ी से अमीर हो गए थे और बाकियों में से ज़्यादातर को ख़ुदकुशी का रास्ता चुन्न्ना पड़ा था। बैंक वालों के आज के पत्रकार सम्मेलन में आल  इंडिया बैंक इम्प्लाईज़ एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलन, सचिव बी इस राम बाबू और एक अन्य सचिव संजय कुमार भी मौजूद रहे। आम जनता के प्रतिनिधि बन कर सवाल करने वाले पत्रकार आज भी कम ही थे। 

4  और 5 सितंबर 2022 को लुधियाना में आल इँडिया सेंट्रल बैंक इम्प्लाइज फैडरेशन और ऑल इँडिया सेंट्रल बैंकऑफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सम्मेलन के अवसर पर खोले जाएंगे ऐसे रहस्य जो आपको हैरान कर देंगें। इन लोगों ने अपनी स्वतंत्रता से ही शुरू की। हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ की जय करते हैं: हम अपने बुजुर्गों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हाथों से लड़ने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किए गए बलिदानों को तहे दिल से याद करते हैं। भारत ने पिछले 75 वर्षों में बहुत प्रगति की है और हमें उस पर गर्व भी है लेकिन साथ ही पूरी बेबाकी से बताया कि आज भी हमारा देश धन के असमान वितरण है। 

आज भी कुछ धनी लोगों के हाथों में बढ़ती जा रही है धन की एकाग्रता। आज भी  हमारे लोगों की एक बड़ी संख्या की गरीबी जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। जब हम इस खुशी के अवसर पर सभी को बधाई देते हैं, तो हम सभी के लिए एक बेहतर और समान समाज के लिए लड़ने का संकल्प भी  लेते हैं।

पब्लिक सेक्टर के बैंकों के मौजूदा संकट की चर्चा करते हुए यहां उल्लेखनीय है कि इसी बीच अडानी ग्रुप पर बैंकों का बड़ा कर्ज बकाया है पड़ा है। वित्त वर्ष 2021-22 में अडानी समूह पर कर्ज बढ़ गया है और 40.5 फीसदी बढ़कर 2.21 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।  जबकि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में यह 1.57 लाख करोड़ रुपये था।  फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में अडानी एंटरप्राइजेज का कर्ज 155 बढ़ा है। आप इन लोगों की अमीरी के कारण और स्रोत जान सकते हैं सिर्फ इस तरह के आंकड़ों पर एक नज़र डाल कर। 

बैंकों का निजीकरण न करें: 1969 में, भारत में प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। पिछले 53 वर्षों में, इन राष्ट्रीयकृत बैंकों ने हमारे देश के आर्थिक विकास में बहुत योगदान दिया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों की सेवा के लिए हजारों शाखाएं खोली गई हैं। कृषि, लघु और मध्यम उद्योग, शिक्षा, प्रमुख उद्योग, ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा क्षेत्र आदि को बड़े पैमाने पर ऋण दिया जा रहा है। इन बैंकों द्वारा जनता की बचत को उनकी बचत के लिए सुरक्षा प्रदान करने के लिए जुटाया गया है।

राष्ट्रीयकरण से पहले और 1969 के बाद भी निजी बैंकिंग की सर्विस स्थिति बिगड़ती चली जा रही है। कई निजी बैंक कुप्रबंधन के कारण ध्वस्त हो गए हैं और लोगों की बचत खो गई है। राष्ट्रीयकृत बैंक लोगों की बचत की रक्षा कर रहे हैं। राष्ट्रीयकृत बैंक ही प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण दे रहे हैं।  इसके बावजूद इन्हीं सरकारी बैंकों को निजी सेक्टर के हवाले करने के अभियान चलाए जा रहे हैं। बैंक कर्मी इन नापाक कोशिशों के रास्ते में बार बार खड़े होते आ रहे हैं लेकिन सत्ता के सामने और बड़े ढहना सेठों के सामने उनकी शक्ति सीमित कर दी गई है। 

आज बैंकों की कुल जमाराशियां : रु. 170 लाख करोड़             दिया गया कुल ऋण : रु. 120 लाख करोड़

लोगों की सेवा के लिए इन राष्ट्रीयकृत बैंकों को और मजबूत करना होगा। लेकिन सरकार ने घोषणा की है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण किया जाएगा। यदि बैंकों का निजीकरण किया जाता है, तो ग्रामीण बैंकिंग प्रभावित होगी। निजी बैंक ग्रामीण बैंकिंग को बढ़ावा नहीं देंगे। वे अधिक लाभ में ही रुचि लेंगे। धीरे-धीरे केवल अमीर लोगों को ही खाते रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसलिए एआईबीईए बैंकों के निजीकरण के फैसले का विरोध कर रहा है।

हम अपनी मांग का समर्थन करने के लिए लोगों को शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चला रहे हैं। हम प्रधानमंत्री को एक सामूहिक याचिका दायर करने के लिए लोगों से हस्ताक्षर एकत्र कर रहे हैं।

एआई.बी.ई.ए ने बड़ी कंपनियों से खराब ऋण की वसूली की मांग की: आज बैंकों में एकमात्र बड़ी समस्या बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा डिफ़ॉल्ट रूप से बढ़ते खराब ऋण हैं। हम उनके खिलाफ कर्ज की वसूली के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार उन्हें अधिक से अधिक रियायतें दे रही है।

पिछले 6 वर्षों से, खराब ऋण खातों को दिवाला और दिवालियापन संहिता IBC के तहत न्यायाधिकरणों को संदर्भित किया जाता है। कर्ज वसूली की जगह ये कर्ज कुछ अन्य कंपनियों को सस्ते दर पर बेचे जा रहे हैं जैसे दूकान की वस्तु बिका करती है इस सब कुछ से  और बैंकों को भारी नुकसान हुआ है।

आईबीसी जनता का पैसा लूटने का एक तरीका बन गया है क्योंकि बैंकों को इन सौदों में बड़े पैमाने पर (हेयर कट) घोर घाटे पढ़ते  हैं। और बलिदान देना पड़ता है। चूककर्ता बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के भाग जाते हैं। एक अन्य कॉर्पोरेट कंपनी सस्ते दरों पर इन ऋणों को ले रही है।

एनपीए-आईबीसी (हेयर कट )घाटे पढने की कहानी 

करोड़ों रु में

बैंकों के लिए    ऋण राशि                ऋण राशि का निपटान         और समाधान %         के पक्ष में

एस्सार                    54,000                    42,000                                       23%                    आर्सेलर मित्तल

भूषण स्टील्स         57,000                    35,000                                       38                        टाटा

ज्योति संरचनाएं       8,000                    3,600                                          55                          शरद संघ

डीएचएफएल         91,000                 37,000                                           60                         पीरामल

भूषण पावर               48,000                 19,000                                          60                        जेएसडब्ल्यू

इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स 14,000                   5,000                                            62                       वेदांत

मोनेट इस्पात         11,500                   2,800                                          75                        जेएसडब्ल्यू

एमटेक                     13,500                  2,700                                          80                         डीवीआईएल

आलोक इंडस्ट्रीज    30,000              5,000                                          83                         रिलायंस + जेएम फिन

लैंको इंफ्रा              47,000                5,300                                              88                        कल्याण समूह

वीडियोकॉन            46,000               2,900                                             94                          वेदांत

एबीसी शिपयार्ड       22,000              1,200                                              95                          परिसमापन

शिवशंकरनीउद्योग     4,800                 320                                               95%                            ससुर

लाभ कहाँ जाता हैमार्च, 2022 तक - सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

कुल सकल परिचालन लाभ: 208,654 करोड़

 खराब ऋण आदि के लिए प्रावधान: 1,41,918 करोड़

 प्रावधानों के बाद शुद्ध लाभ: 66,736 करोड़

इस प्रकार, बैंकों द्वारा अर्जित अधिकांश लाभ (लाभ का 68%) खराब ऋणों के प्रावधान और खराब ऋणों को बट्टे खाते में डालने के लिए चला जाता है। इस प्रकार कॉरपोरेट्स द्वारा लोगों का पैसा लूटा जा रहा है।

शाखाओं का बंद होना: जब सरकार समावेशी विकास और सभी लोगों की सेवा लेने की बात करती है, तो वास्तव में शाखाओं की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। हम मांग करते हैं कि अधिक से अधिक नई शाखाएं खोली जानी चाहिए, विशेष रूप से गैर-बैंकिंग क्षेत्रों में।

हम बैंकों के निजीकरण पर पनागरिया रिपोर्ट का विरोध करते हैं:

13-7-2022 को, श्री अरविंद पनागरिया, पूर्व नीति आयोग और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के पूनम गुप्ता ने सभी बैंकों के निजीकरण का सुझाव देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है क्योंकि निजी बैंक अधिक कुशल हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक और प्रतिशोधात्मक रिपोर्ट है।

वे पूरी तरह से भूल गए हैं कि हमारे देश में दक्षता और सरकार के कारण इतने सारे निजी बैंक ध्वस्त हो गए हैं। बैंकों को विलय करना पड़ा और उन्हें बचाना पड़ा।

वे भूल गए हैं कि 90% बैड लोन बड़ी निजी कॉरपोरेट कंपनियों के कारण हैं।

वे भूल गए हैं कि जन धन योजना के 98% खाते सरकार के बैंक द्वारा खोले गए हैं और निजी बैंकों द्वारा नहीं।

वे भूल गए हैं कि कृषि, रोजगार सृजन, गरीबी में कमी, ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि के लिए ऋण केवल सरकार बैंक द्वारा दिया जाता है। और निजी बैंक नहीं।

वे भूल गए हैं कि केवल पीएसबी ने दूरस्थ ग्रामीण गांवों में शाखाएं खोली हैं, निजी बैंकों ने नहीं।

आज भी प्राइवेट बैंकों में बहुत सारी छिपी हुई गड़बड़ियां हैं। निजी बैंकों का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा है।

हम इस रिपोर्ट को खारिज करने की मांग करते हैं-सी.एच. वेंकटचलम, महासचिव ने बहुत ही सादगी से लेकिन स्पष्ट हो कर यह सब कहा। अब देखना है कि आम जनता कब इन बैंक वालों  का साथ देगी, कैसे देगी और जो लोग जनता का धन लूट कर ही अमीर बन रहे हैं उन्हें बेनकाब कब करेगी?

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