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Friday, January 7, 2022

मोदी की सुरक्षा-इतना हो हल्ला क्यों?--*पावेल कुस्सा

6th January 2022 at 23.56 PM

यह सारा मसला एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश है


मोदी के पंजाब से बेरंग वापस जाने पर
खड़ा किया जा रहा हो-हल्ला, भाजपा की तरफ से मुद्दों को प्रतिगामी रंगत देने का प्रचलित चलन है। प्रधानमंत्री की राजनीतिक नमोशी को देश की सुरक्षा का मसला बनाने की भरकस कोशिश की जा रही है, और ऐसा हमेशा की तरह पूरी बेशर्मी से किया जा रहा है। भाजपाई प्रवक्ता देश के टी वी चैनलों पर चिंघाड़ रहे हैं- देश के अपमान की बातें कर रहे हैं और पंजाब में राष्ट्रपति राज लगाने का आह्वान कर रहे हैं। यह सारा मसला एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश है।
लेखक पावेल कुस्सा 
सबसे पहले तो यह मोदी की बुरी तरह विफल हुई रैली को ढकने का प्रयत्न है।
प्रधानमंत्री के लिए चुनावों में सहानुभूति बटोरने का प्रयास है। 'मोदी ही राष्ट्र है' के दम्भी वृतांत को मजबूत करने की कोशिश है। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी-पंजाब कांग्रेस को मात देने की कोशिश है।
हालांकि यह हकीकत जग जाहिर है कि प्रधानमंत्री को किसी ने पूर्वन्योजित फैसला करके नहीं घेरा, बल्कि खुद उसकी अपनी तरफ से ही ऐन मौके पर सड़क मार्ग का च्यन किया गया था। जिस कारण उसे मार्ग में हो रहे प्रदर्शनों के समीप 10 मिनट के लिए रुकना पड़ा। किसी ने प्रधानमंत्री के नजदीक जाने की कोशिश तक भी नहीं की। फिर भी अगर प्रधानमंत्री को अपने ही लोगों से इतना खतरा महसूस होता है तो यह उसके के लिए सचमुच ही सोच विचार का मसला बनना चाहिऐ।
इस 10 मिनट की रुकावट को सुरक्षा दृष्टि से बहुत ही खतरनाक घटना बनाकर पेश किया जा रहा है ताकि बुरी तरह विफल रही रैली की तस्वीर को इस सारे दृश्य से ओझिल किया जा सके। मोदी के वापस जाने का फैसला उसकी रैली को पंजाब के लोगों द्वारा नाकार दिए जाने के कारण करना पड़ा| पर उसने जाते-जाते अपनी घोर प्रतिगामी प्रवृत्ति के चलते नया बखेड़ा खड़ा कर दिया। शरीरक तौर पर तो किसी ने उसे छुआ तक भी नहीं है और ना ही ऐसा करने की किसी की तरफ से कोई मंशा व्यक्त हुई है।
सही बात तो यह है कि मोदी अपनी राजनीतिक पिछाड़ को सहन नहीं कर पा रहा। इस सारी बहस में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के तकनीकी नुक्तों के अलग-अलग पहलुओं पर जवावदेही तय करने का अपना स्थान है| पर यह लोगों के रोष प्रदर्शन के लोकतान्त्रिक अधिकार से ऊपर नहीं है| सबसे पहले लोगों के रोष प्रदर्शन के लोकतान्त्रिक अधिकार को बुलंद किया जाना चाहिए।
देश के प्रधानमंत्री के आगे अपना रोष व्यक्त करना लोगों का बुनियादी लोकतान्त्रिक अधिकार है। अगर लोग पूर्वन्योजित कार्यक्रम के तहित भी 2 घंटे मोदी की कार को घेरकर नारेबाजी कर देते तो भी कोई आसमानी बिजली नहीं गिर जाने वाली थी। लोग अपने लोकतान्त्रिक अधिकार को ही लागू कर रहे होते।
किसान आंदोलन अभी स्थगित किया गया है, खत्म नहीं हुआ। किसान दिल्ली के बॉर्डर से उठ गए हैं यद्यपि एम.एस.पी. और केसों को रद्द किए जाने सहित सारे मुद्दे अभी भी उसी तरह खड़े हैं और इन मसलों पर कोई भी बात ना सुनने वाली मोदी सरकार का रवैया सामने आ चुका है।
इस तरह की स्थिति में अगर किसान अपना रोष ना व्यक्त करें तो और क्या करें। यह बात प्रधानमंत्री को पंजाब में आने से पहले सोचनी चाहिए थी पर वह तो आया ही 'पंजाब विजय' के लिए था। वह तो केंद्रीय कोष पर काबिज होने के अहंकार के रथ पर सवार हो पंजाबियों को खरीदने आया था।
यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मसला नहीं है, बल्कि उसकी लोगों के प्रति जवाबदेही का मसला है। अगर वह पंजाब के लोगों को सचमुच की खुशहाल जिंदगी के पैकेज देने के ऐलान करने आ रहा था तो क्यों वही लोग उसके विरोध में सड़कों पर थे। तो उसको प्रश्न अपनी सुरक्षा के मसले में नहीं, बल्कि उसके लोगों के साथ रिश्ते के मामले में उठना चाहिए था। जब प्रधानमंत्री मोदी फिरोजपुर की तरफ जा रहा था, ठीक उसी समय पंजाब के शहरों और कस्बों में उसके पुतलो को फूंका का जा रहा था। गांव देहात के सीधे साधे लोगों को बसों में भर कर फिरोज़पुर ले जाना भाजपाइयों के लिए मुश्किल क्यों हो गया था!
प्रधानमंत्री की रैली बुरी तरह खाली रही।
जो कुछ हुआ वह-
कारपोरेटों से उसकी वफादारी का नतीजा है।
लखीमपुर खीरी में कुचल दिए गए किसानों की शहादतों का नतीजा है।
साल भर किसानों को दिल्ली की सड़कों पर परेशान करने का नतीजा है।
700 से ऊपर किसानों की जान लेने का नतीजा है।
अभी तक भी कारपोरेटों को मुल्क लुटाने की नीतियों को लागू करते रहने का नतीजा है।
लोगों को झूठे सुहावने ख़ुआब दिखाकर पंजाब विजय कर लेने की ख्वायिशें पालने का नतीजा है।
भाजपा की इस हाहाकार के दरमियान हमें डटकर कहना चाहिए कि यह धरती और इसके मार्ग हमारे हैं। हमारी जिन्दगीओं में तबाही मचाने वाले हाकिमों को इन रस्तों पर रोकना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
हमारी इज्जत और प्रधानमंत्री की इज्जत एक नहीं है। इसमें हमेशा से टकराव है। उसने तो हमेशा ही देश के लोगों की शान-इज्जत को अपने पैरों तले रौंदा है। और इस इज्जत को पैरों तले रौंदे जाने के बारे में सवाल करने के लिए लोग उसके सामने भी आएंगे और उसके मार्ग भी रुकेंगे। सभी इंसाफ पसंद और जागृत देशवासियों को भाजपा की इस झल्लाई महिम का डटकर विरोध करना चाहिए। लोगों के विरोध वयक्त करने के लोकतान्त्रिक अधिकार को डट कर बुलंद करना चाहिए। और इस को सुरक्षा मसले में प्रवर्तित कर भटकाने की कोशिशों का पर्दाफाश करना चाहिए। किसान संघर्ष की जय-जय कार करनी चाहिए, और इसकी हमायत करनी चाहिए।

*पावेल कुस्सा वाम लहर में काफी समय से सक्रिय हैं और सुर्ख लीह नामक पत्रिका से जुड़े हुए भी हैं
इसे सोशल मीडिया पर 6th January 2022 at 23.56 PM को पोस्ट किया गया।

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