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Wednesday, February 27, 2013

...तथा 'देशाभिमानी' ने उसे तुरंत प्रकाशित कर दिया


26-फरवरी-2013 19:19 IST
संसदीय कार्य मंत्री श्री कमलनाथ द्वारा राज्‍य सभा में दिया गया वक्‍तय 
हाल ही में, माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, जिसे 'सूर्यानेली' प्रकरण का नाम दिया जा रहा है, के पश्‍चात एक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया के एक वर्ग तथा कुछ राजनैतिक दलों ने इस विवाद में राज्‍य सभा के उप-सभापति प्रो. पी. जे. कुरियन का नाम घसीटने की कोशिश की है। इस संबंध में, मेरा वक्‍तव्‍य निम्‍न प्रकार है:- 

यह बात जोरदार ढंग से कह गई है कि इस प्रकरण ('सूर्यानेली' प्रकरण के नाम से ज्ञात), जिसकी अपील पर पुन: सुनवाई कराए जाने के लिए इसे माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने केरल उच्‍च न्‍यायालय को वापिस लौटा दिया है, में प्रो. पी. जे. कुरियन कभी एक अभियुक्‍त नहीं रहे। 

सूर्यानेली प्रकरण 17/01/1996 में दायर किए गए एफआईआर सं. 71/96 के आधार पर शुरू हुआ जिसमें एक लड़की ने कतिपय लोगों द्वारा उस पर किए गए बलात्‍कार की शिकायत की थी। बाद में लड़की ने खुलासा किया कि 42 लोग अभियुक्‍त के रूप में सूचीबद्ध हैं। उस समय प्रो. पी. जे. कुरियन का कोई उल्‍लेख नहीं था। 

लगभग दो महीने बाद, 1996 के आम चुनाव की पूर्व संध्‍या पर उस लड़की ने यह शिकायत तत्‍कालीन मुख्‍य मंत्री श्री ए. के. एंटोनी के पास भेजी जिसमें उसने यह आरोप लगाया कि प्रो. पी. के. कुरियन भी इस प्रकरण में संलिप्‍त हैं तथा मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के मुख पत्र 'देशाभिमानी' ने उसे तुरंत प्रकाशित कर दिया। 

प्रो. कुरियन ने तुरंत इस मामले में पुलिस महानिदेशक से जांच का अनुरोध किया। उन्‍होंने, साथ ही, उस लड़की और 'देशाभिमानी' कि तत्‍कालीन मुख्‍य संपादक श्री ई. के नयनार के विरुद्ध मानहानि का नोटिस दिया। 

आरोप की जांच, एक वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी, श्री राजीवन द्वारा की गई जिन्‍होंने, 30 से भी अधिक साक्षियों, दूरभाष अभिलेखों, राज्‍य कार चालक के बयान, राज्‍य कार के लॉग बुक, दूरी कथित स्‍थान तक पहुंचने के लिए लगने वाले समय, की जांच करने के बाद इस ठोस नतीजे पर पहुंचे कि ''अपराध के कथित स्‍थान तक पहुंचना प्रो. कुरियन के लिए व्‍यावहारिक दृष्टि से असंभव था'' और इसलिए प्रो. कुरियन इस अपराध में बिल्‍कुल ही संलिप्‍त नहीं हैं। जांच से यह भी निष्‍कर्ष सामने आया कि प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप ''या तो वास्‍तव में एक गलती है अथवा लड़की का उपयोग उनके राजनैतिक विरोधियों द्वारा एक हथकंडे के रूप में किया जा रहा है।'' 

उसी चुनाव के दौरान लड़की के पिता ने सीबीआई की जांच कराने की मांग करते हुए उच्‍च न्‍यायालय में एक याचिका दायर की। तथापि, लोक सभा चुनावों के बाद न तो उन्‍होंने मामले को आगे बढ़ाया और न ही वे न्‍यायालय में उपस्थित हुए और इसीलिए, इस मामले को गैर अभियोजन के कारण खारिज कर दिया गया। इस बात से स्‍वाभाविक निष्‍कर्ष यह निकलता है कि वे जांच रिपोर्ट से संतुष्‍ट थे अथवा यह याचिका सिर्फ चुनावों के दौरान इस्‍तेमाल किए जाने के मकसद से दायर की गई थी। 

वाम मोर्चा के मुख्‍यमंत्री श्री ई. के. नयनार, जिन्‍होंने प्रो. कुरियन के विरुद्ध आरोप लगाए और जो अब प्रो. कुरियन द्वारा दायर किए गए अवमानना के मुकदमें में आरोपित हैं, ने पुलिस उप-महानिरीक्षक श्री सिबी मैथ्‍यू के नेतृत्‍व में जांच दल का गठन किया। विस्‍तृत जांच और सभी साक्षियों से पुन: पूछताछ करने पर यह दल इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा कि प्रो. कुरियन संलिप्‍त नहीं हैं। 

श्री नयनार ने एक अन्‍य आईपीएस अधिकारी श्री सोम सुंदर मेनन द्वारा तीसरी जांच का आदेश दिया, जिसने पूर्ण जांच की और यहां तक कि प्रो. कुरियन से अलग हो चुके कर्मचारी से भी पूछताछ के उपरांत उसी निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि प्रो. कुरियन संलिप्‍त नहीं हैं। इस बीच निचली अदालत ने प्रो. कुरियन द्वारा दायर किये गये मानहानि के मुकदमे को उनके पक्ष में चलाने के लिए स्‍वीकार किया और श्री नयनार एवं उस लड़की ने उच्‍च न्‍यायालय में अपील दायर की। 

1999 के आम चुनाव की पूर्व संध्‍या पर इस लड़की ने पुन: इसी मुद्दे पर न्‍यायालय में एक निजी शिकायत दायर की थी, जिसको प्रो. कुरियन ने चुनौती दी और मामला उच्‍चतम न्‍यायालय तक गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने खारिज करने के लिए इसे उपयुक्‍त मामला समझा और प्रो. कुरियन को निचली अदालत से उन्‍मोचन के लिए याचिका दायर करने का निदेश दिया। तद्नुसार, उन्‍मोचन याचिका दायर की गई जिसे निचली अदालत में स्‍वीकार नहीं किया गया, परंतु उच्‍च न्‍यायालय ने अप्रैल, 2007 में 71 पृ‍ष्‍ठों के अपने निर्णय में शिकायतकर्ता द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद उन्‍हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। यहां इस बात का उल्‍लेख करना होगा कि स्‍वयं वाम मोर्चा सरकार द्वारा नियुक्‍त किए गए जांच अधिकारी, श्री के. के. जोशुआ, एसपी ने न्यायालय में यह लिखित वक्‍तव्‍य प्रस्‍तुत किया कि प्रो. कुरियन इसमें शामिल नहीं हैं। उच्‍च न्‍यायालन ने समुक्ति की थी कि- 

''मुझे पता चल रहा है कि इस मामले में पेश की गई परिस्थितियों और सबूतों से यह साबित होता है‍ कि याचिकाकर्ता पर थोपा गया मामला झूठा है। यह काफी दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता को पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कुत्सित स्‍वरूप के इस झूठे मामले के कटु अनुभव से गुजरना पड़ा है।'' 

इस निर्णय की जांच करने पर यह पता चलेगा कि उच्‍च न्‍यायालय ने निजी शिकायत का निर्णय इसके गुणागुण आधार पर किया जो सुर्यानेली मामले, जिसमें आरोपी व्‍यक्तियों को बरी कर दिया गया था, से स्‍वतंत्र रहकर दिया गया था। 

वाम मोर्चा सरकार ने अपील दायर की, परंतु उच्‍चतम न्‍यायालय ने उसे नवम्‍बर, 2007 में खारिज कर दिया और उन्‍मोचन की पुष्टि की। उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय को अब तक किसी ने चुनौती नहीं दी है। वाम मोर्चा सरकार, जो उस समय सत्‍ता में थी, ने पुनर्विलोकन याचिका भी दायर नहीं की। 

इस प्रकार की धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि कुछ नए तथ्‍य प्रकट हुए हैं। ये सभी नए तथ्‍य, विशेषकर, दोषसिद्ध व्‍यक्ति द्वारा 17 वर्ष बाद दिए गए वक्‍तव्‍य से, जिसे जांच दल के समक्ष अथवा न्‍यायालय में देने का मौका उसके पास था, उससे प्रो. कुरियन की कथित जगह पहुंचने की असंभाव्‍यता के सिद्ध तथ्‍य को चुनौती नहीं मिलती, जो टेलीफोन रिकार्ड, राज्‍य की कार के ड्राइवर सहित मुख्‍य गवाहों, राज्‍य की कार की लॉग बुक और इसमें लगने वाले समय और दूरी के आधार पर सिद्ध हु‍आ है- उक्‍त निष्‍कर्ष उपर्युक्‍त तीन जांच दलों द्वारा निकाला गया था। 

यह मामला विपक्ष द्वारा केरल विधानसभा में उठाया गया था। अभियोजन महानिदेशक और उच्‍चतम न्‍यायालय में शिकायतकर्ता लड़की का मुकदमा लड़ने वाले उच्‍चतम न्‍यायालय के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता और केरल सरकार के विधि सचिव की ओर से केरल सरकार को प्राप्‍त कानूनी राय में यह कहा गया है कि कोई मामला नहीं बनता है। (PIB)

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वि.कासौटिया/अरुण/मनोज-723

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